प्रगतिशील राजनीति

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प्रगतिशील राजनीति

देश निरंतर विकास के पथ पर दौड़ता नजर आ रहा है, लेकिन विडंबना है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र वाले देश भारत में प्रगतिशील मुद्दे राजनीति के आधार नहीं बनते। आज़ादी के 75 साल हो चुके हैं, देश की आबादी 135 करोड़ पहुंच गई है, समाज का बुनियादी ढांचा बदल रहा है लेकिन जाति, धर्म जैसे ग़ैर जरुरी मुद्दे ही राजनीति के आधार बन गए हैं। हालांकि लोग इस बात से इनकार करते हुए ज़रुर नजर आते हैं साथ ही वह यह भी कहते हैं कि राजनीति का आधार प्रोग्रेसिव मुद्दे ही होने चाहिए, लेकिन इसका असर बहुत कम देखने को मिल रहा है। ऐसे में AIPPA लगातार अपनी मुहिम के जरिए समाज में जागरुकता लाने की कोशिश कर रही है कि राजनीति के मुद्दे प्रोग्रेसिव ही होने चाहिए। देश को जरुरत है प्रगतिशील राजनीति की जो सामाजिक सुरक्षा, कृषि, परिवहन,गतिशीलता, शिक्षा, पुलिस,सुरक्षा, आजीविका, ऊर्जा और उपयोगिताएँ, पर्यटन, महिला सशक्तिकरण, स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था, धार्मिक और सांस्कृतिक जैसे अहम मुद्दों पर सिर्फ बात ही नहीं बल्कि उस पर काम भी करें। AIPPA की कोशिश है कि राजनीतिक पार्टी के नेता हों या समाज के चुने हुए प्रतिनिधि या फिर वोट देने वाले मतदाता सबकी सोच प्रगतिशील हो।

प्रगतिशील समाज का संकल्प

देश की तरक्की समाज के विकास पर ही निर्भर होती है। ऐसे में ज़रुरत है समाज को प्रगतिशील बनाने की। देश और प्रदेश में जाति और धर्म की आड़ में चल रही राजनीति से समाज में ईर्ष्या और नफरत फैल रही है जो आने वाले कल के लिए बेहद खतरनाक है और समाज के हर वर्ग के लिए नुकसान दायक है। AIPPA का मकसद एक बेहतर समाज का निर्माण करना और प्रगतिशील मुद्दों को जन-जन तक पहुंचाना है ताकि हर किसी के चेहरे पर मुस्कुराहट आए।

पंचायतों को चाहिए समावेशी विकास

ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए देश में समावेशी विकास को बढ़ावा देना आवश्यक है। भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का सपना था। इसी उद्देश्य़ को देखते हुए भारत ने पंचायती राज प्रणाली को अंगीकार किया और इसे संवैधानिक रूप दिया गया। भारत सरकार वित्तीय बाधाओं के बावजूद ग्रामीण अर्थव्यवस्था को

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स्वशासन के उद्देश्य को प्रभावित करती खाप पंचायत

देश में शक्ति के विकेंद्रीकरण और लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करने के उद्देश्य से पंचायती राज व्यवस्था शुरू की गई थी। ताकि स्थानीय स्वशासन को मजबूत किया जा सके और लोगों की आकांक्षाओं की पूर्ति की जा सके, लेकिन पंचायती राज व्यवस्था के समानांतर देश में एक ऐसी व्यवस्था भी है

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प्रेरणास्रोत बना भारत का स्मार्ट गांव “ओडनथुरई”

देश में स्थानीय स्वशासन को मजबूत करने और विकास की अनोखी लकीर खीचने के उद्देश्य से पंचायती राज प्रणाली को अपनाया गया। हालांकि इस कार्यक्रम को सफल बनाने में कई परेशानियां भी सामनें आईं। इन सबके बावजूद तमिलनाडु के एक छोटे से गांव ओडनथुरई ने सही मायने में इस कार्यक्रम को सफल

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पंचायत को मजबूत करती “सांसद आदर्श ग्राम योजना”

पंचायती राज व्यवस्था और ग्राम स्वशासन को मजबूत करने के उद्देश्य से माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 11 अक्टूबर, 2014 को विज्ञान भवन, नई दिल्ली में लोक नायक जय प्रकाश नारायण की जयंती पर सांसद आदर्श ग्राम योजना (एसएजीवाई) का शुभारंभ किया था। इस योजना का लक्ष्य मार्च 2019 तक

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धारा-370 हटने के बाद जम्मू व कश्मीर में पंचायती व्यवस्था

अप्रैल 1999 में 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से भारत में पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई । इस व्यवस्था के तहत स्थानीय लोगों को न केवल स्थानीय आवाज को मंच देने का मौका मिलता है बल्कि स्थानीय स्तर पर एक ऐसी सरकार स्थापित करने का अवसर भी मिलता है

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मनरेगा से मजबूत होती ग्रामीण अर्थव्यवस्था

ग्रामीण योजनाओं की बात करें तो गांव से लेकर संसद तक सबसे अधिक चर्चा मनरेगा की होती है। कांग्रेस इसे अपनी सफल योजनाओं में से एक मानकर ग्रामीण बेरोजगारी के मामले में सरकार को घेरती रहती है। ये सच है कि लाख कमियों के बावजूद मनरेगा योजना लागू होने के बाद पंचायती राज व्यवस्था

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स्थानीय स्वशासन की परिकल्पना कितनी प्रभावशाली

आज किसान पारम्परिक खेती छोड़ ऐसी खेती की ओर देख रहा है जो कम लागत, कम श्रम के साथ समय की बर्बादी से भी उसे बचाये और मुनाफा भी अधिक कमाकर दे सके। इसी कड़ी में आज हम एलोवेरा की खेती की बात करेंगे जो कम लागत और कम मेहनत के बावजूद बम्पर मुनाफा देती है।

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स्थानीय स्वशासन के माध्यम से सपना साकार करता उत्तर प्रदेश

भारत प्राचीन काल से लोकतंत्र जैसी पंरपरा को अपनाता रहा है। हमारे ग्रन्थ ऋग्वेद में भी ‘सभा’ और ‘समिति’ के रूप में लोकतांत्रिक संस्थाओं का जिक्र मिलता है। इतिहास के विभिन्न कालखंडों में राजनैतिक उथल-पुथल के बावजूद ग्रामीण स्तर पर यह प्रजातांत्रिक व्यवस्था निरन्तर किसी न किसी रूप में

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स्थानीय स्वशासन की जड़ रही बिहार की धरती सीरीज - 3

बिहार की धरती संसार में लोकतंत्र की जननी रही है, बिहार के वैशाली स्थित लिच्छवी और मिथिला के विदेह को इसी रूप में जाना जाता है, जहां सभी प्रकार के सामाजिक फैसले कोई एक व्यक्ति नहीं वरन समाज के सभी लोग आम सहमति बनाकर लेते थे। बिहार ने न सिर्फ भारतीय उपमहाद्वीप को बल्कि दुनिया को

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ग्राम सभा, ग्राम पंचायत और पंचायतों के संवैधानिक अधिकार - सीरीज-2

ग्राम पंचायत स्थानीय स्वशासन की एक संवैधानिक इकाई है। ग्राम पंचायत हेतु ग्राम सभा में से लोग उम्मीदवार होते हैं। और इन उम्मीदवारों को ग्राम सभा के लोग अपने मत के द्वारा चुनने का काम करते हैं। ग्राम पंचायत का एक निश्चित कार्यकाल होता है।

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प्राचीन काल से ग्राम स्वशासन व्यवस्था भारतीय लोकतंत्र को करता रहा है मजबूत सीरीज- 1

वैदिक काल से ही देश में ग्राम को क्षेत्रीय स्वशासन की आधारभूत इकाई माना जाता है। रामायण के अध्ययन से संकेत मिलता है कि प्रशासन दो भागों-पुर और जनपद अर्थात् नगर और गांव में विभाजि महाभारत पुराण के अनुसार,

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