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स्थानीय स्वशासन की जड़ रही बिहार की धरती सीरीज - 3

बिहार की धरती संसार में लोकतंत्र की जननी रही है, बिहार के वैशाली स्थित लिच्छवी और मिथिला के विदेह को इसी रूप में जाना जाता है, जहां सभी प्रकार के सामाजिक फैसले कोई एक व्यक्ति नहीं वरन समाज के सभी लोग आम सहमति बनाकर लेते थे। बिहार ने न सिर्फ भारतीय उपमहाद्वीप को बल्कि दुनिया को स्थानीय प्रशासन का पाठ पढ़ाया। भगवान बुद्ध ने इसी धरती से विश्व के आरंभिक गणराज्यों को प्रज्ञा तथा करुणा की शिक्षा-दीक्षा दी थी, साथ ही उन गणराज्यों की लोकतांत्रिक व्यवस्था के आधार पर संघ के नियम निर्धारित किए थे। एक बार की बात है संविधान सभा के अपने अंतिम भाषण में बाबा साहब डॉ भीमराव आंबेडकर ने यह स्पष्ट किया था कि बौद्ध संघों के अनेक नियम आज की संसदीय प्रणाली में भी विद्यमान हैं जो इस देश को लोकतांत्रिक व्यवस्था की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। बिहार की धरती वो धरती रही जिसने डॉ. राजेंद्र प्रसाद और सच्चिदानंद सिन्हा जैसे महासपूतों को जन्म दिया जिन्होंने आजादी के बाद आधुनिक दौर के भारतीय लोकतंत्र का भविष्य बनाने में अहम भूमिका निभाई। इसके अलावा खासतौर से बिहार की धरती ने अनुग्रह नारायण सिन्हा, श्रीकृष्ण सिन्हा, दरभंगा के महाराजा कामेश्वर सिंह, जगत नारायण लाल, श्यामनंदन सहाय, सत्यनारायण सिन्हा, जयपाल सिंह, बाबू जगजीवन राम, राम नारायण सिंह और ब्रजेश्वर प्रसाद जैसी सख्सियतों ने भी इसी धरती में जन्म लिया। जिन्होंने भारतीय लोकतंत्र की नींव रखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

स्वतंत्रता प्राप्त होते ही बिहार ने अपनाई व्यवस्था

लंबे समय तक स्वतंत्रता संघर्ष चलने के बाद 1947 में आजादी मिलने के साथ ही राज्यों में अंतरिम सरकार का गठन हुआ। इसके तुरंत बाद सबसे पहले उत्तरप्रदेश में और उसके बाद बिहार में स्थानीय स्वशासन को सशक्त बनाने, गाँव के लोगों की उसमें भागीदारी बढ़ाने कल्याणकारी योजनाओं में गति लाने तथा स्थानीय स्तर पर छोटे-मोटे विवादों को आपस में सुलझाने के उद्देश्य से पंचायती राज व्यवस्था को अपनाने की कोशिश होने लगी। इसी के परिणाम स्वरूप बिहार पंचयात राज अधिनियम 1947 का गठन हुआ।1984 में इस अधिनियम को पूरे राज्य में लागू किया गया। इस अधिनियम के अंतर्गत ग्राम पंचायत का कार्यकाल 3 वर्ष, उम्मीदवारों की उम्र सीमा कम से कम 25 वर्ष तथा मतदाताओं की उम्र सीमा 21 वर्ष निर्धारित की गई। बाद में ग्राम पंचायत का कार्यकाल 5 वर्ष उनके उम्मीदवारों की उम्र सीमा कम से कम 21 वर्ष और मतदाताओं की उम्र सीमा कम से कम 18 वर्ष निर्धारित की गई जो आज भी लागू है। देश में पंचायत राज को सशक्त बनाने, व्यवस्थित विकास की जिम्मेदारी देने तथा लोकप्रिय बनाने के लिए राष्ट्र तथा राज्य स्तर पर कई समितियों का गठन किया गया। इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण बलवंत राय मेहता समिति, अशोक मेहता तथा सिंधवी समिति हैं।1957 में सिंघवी समिति ने निर्वाचित प्रतिनिधियों को भागीदारी देने तथा प्रशासन की भूमिका केवल कानूनी सलाह देने तक सिमित रखने से सम्बन्धित सुझाव दिए। और यहीं से त्रिस्तरीय पंचायती राज का शुभारम्भ हुआ। अधिकांश राज्यों ने इसी तर्ज पर अपने-अपने अधिनियम बनाये। बिहार ने भी संवैधानिक दर्जा प्राप्त होते ही पंचायती राज व्यवस्था संबंधित अपना प्रावधान लागू किया।

बिहार ने भी त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली प्रारंभ करते हुए पंचायत समिति/ जिला परिषद अधिनियम, 1961 पारित किया। क्योंकि बिहार पंचायती राज अधिनियम, 1947 में ग्राम पंचायतों का गठन, कार्य, शक्ति आदि का पहले से ही प्रावधान था। इन अधिनियमों के तहत सर्वप्रथम भागलपुर में 1964 में त्रिस्तरीय पंचायतों का गठन हुआ। इन्ही प्रावधानों के तहत आठ जिला परिषदों तथा इन जिलों के सभी प्रखडों में पंचायत समितियों ने कार्य की शुरूआत कर दी। पंरतु 1976 के बाद चुनाव न होने के कारण जिला परिषद एंव पंचायत समितियां स्वतः भंग हो गई और केवल ग्राम पंचायत ही कार्यरत रही। इन दोनों अधिनियमों के अंतर्गत पूरे राज्य में फिर से 1978 में ग्राम पंचायतों का, 1979 में पंचायत समितियों का और 1980 में जिला परिषदों का चुनाव हुआ। ये सभी पंचायतें पांच वर्ष की अवधि पूरी होने के बाद भी बिना चुनाव के बनी रही। केवल ग्राम पंचायत की व्यवस्था चलती रही।

बिहार में स्थानीय स्वशासन का वर्तमान स्वरूप

पंचायत का वर्तमान स्वरुप 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा गठित सिंधवी समिति की देन है। इसमें 73 वें संविधान के सारे प्रावधान शामिल किये गये। इन प्रावधानों के अलावा इस अधिनियम में नगर कचहरी की अवधारणा को भी सम्मिलित किया गया। साथ ही आरक्षण में महिलाओं एंव अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के साथ-साथ पिछड़े वर्गों की जातियों के लिए भी जनसंख्या के आधार पर आरक्षण का प्रावधान किया गया। इसके विरोध में माननीय पटना उच्च न्यायालय के समक्ष कई याचिकाएं दायर की गई। इन याचिकाओं का निरस्तारण करते हुए माननीय पटना उच्च न्यायालय की युगल पीठ ने मुख्य रूप से कुल आरक्षण का 50 प्रतिशत से अधिक नहीं करने तथा मुखिया, सरपंच, प्रमुख और अध्यक्ष का पद एकल मानकर इसके आरक्षण पर रोक लगा दी। साथ ही ग्राम कचहरी के प्रावधान को असंवैधानिक बताते हुए संरपंच एंव पंच के लिए शैक्षणिक योग्यता निर्धारित करने और उनके प्रशिक्षण की व्यवस्था कराने पर भी बल दिया। माननीय पटना उच्च न्यायालय के इस आदेश के आलोक में राज्य सरकार ने विवादित बिन्दुओं को छोड़कर राज्य निर्वाचन आयोग से 2001 में पंचायत चुनाव कराने का अनुरोध किया। इस चुनाव में लगभग 1,37,000 पंचायत प्रतिनिधि निर्वाचित हुए। लेकिन 2005 में राज्य में नई सरकार गठन के साथ ही सरकार ने देने संबंधी पंचायत राज को पूर्ण रूप से एवं प्रभावी ढंग से कार्यरत करने, कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लिये जो निम्नलिखित हैं।

महिलाओं को सभी स्तरों एवं स्थानों पर 50% आरक्षण देने आधार पर आरक्षण देने।

अत्यंत पिछड़ा वर्ग को सभी स्थानों एंव सभी स्तरों पर अधिकतम 20% का आरक्षण।

सरकार ने पुराने अधिनियम को निरस्त करते हुए बिहार पंचायत राज अध्यादेश 2006 जारी किया, जिसे बिहार पंचायत राज अधिनियम, 2006 के रूप में जाना जाता है। इस अध्यादेश के माध्यम से लोकहित के सभी महत्वपूर्ण बिन्दुओं के साथ ही ग्रामीण न्याय व्यवस्था, ग्राम कचहरी जैसी महत्वपूर्ण संस्था को भी शामिल किया और इसके लिए चुने जाने वाले प्रतिनिधि के लिए आरक्षण की व्यवस्था भी की।