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मनरेगा से मजबूत होती ग्रामीण अर्थव्यवस्था

ग्रामीण योजनाओं की बात करें तो गांव से लेकर संसद तक सबसे अधिक चर्चा मनरेगा की होती है। कांग्रेस इसे अपनी सफल योजनाओं में से एक मानकर ग्रामीण बेरोजगारी के मामले में सरकार को घेरती रहती है। ये सच है कि लाख कमियों के बावजूद मनरेगा योजना लागू होने के बाद पंचायती राज व्यवस्था काफी ताकतवर हुई है। इसका सबसे ज्यादा फायदा यह हुआ कि लोगों का गांव से पलायन कुछ हद तक रुका है। यह इसलिए संभव हो पाया क्योंकि लोगों को उनके ही गांव में काम के साथ सम्मान भी मिला। हालांकि पहले की सरकारों ने भी गांवों में रोजगार मुहैया कराने के लिए कई प्रयास किए। साल 1960 -61 में ग्रामीण मैन पावर और क्रैश स्कीम फॉर रूरल एम्प्लायमेंट, 1971-72 में नमूना सघन ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम, लघु कृषक विकास एजेन्सी ,सीमान्त कृषक एवं कृषि श्रमिक योजना, अस्सी के दशक में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम, ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारंटी कार्यक्रम शुरू किए गए। इसी तरह साल 1993-94 में जवाहर रोजगार योजना, रोजगार आश्वासन योजना चलाई गई। इन दोनों को मिलाकर साल 1999-2000 में जवाहर ग्राम समृद्धि योजना शुरू की गई। 2000-01 में इस कार्यक्रम को संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना नाम दिया गया। साल 2005 में इस योजना को राष्ट्रीय काम के बदले अनाज योजना कार्यक्रम में शामिल कर लिया गया। इन योजनाओं के बावजूद देश का हर व्यक्ति रोजगार से नहीं जुड़ पाया। इसके बाद यूपीए की सरकार ने साल 2005 में विकसित एवं विकासशील देशों की स्थिति की समीक्षा कर तय किया कि वह देश के हर नागरिक को रोजगार उपलब्ध कराएगी। क्योंकि सरकार का मानना था कि न्यूनतम साझा कार्यक्रम के तहत सरकार की ओर से ऐसे प्रावधान किये जाएं जिसमें अगर किसी व्यक्ति को रोजगार नहीं मिलता है तो उसे बेराजगारी भत्ता देना सरकार की जिम्मेदारी होगी। इस कानून को 7 सितंबर, 2005 को संसद में पारित किया गया और 2 फरवरी, 2006 को लागू किया गया। जिसे नरेगा के नाम से प्रसिद्धि मिली।

ग्रामीण आजीविका की गारंटी देता मनरेगा कार्यक्रम-

मनरेगा कानून में व्यवस्था की गई कि रोजगार मांगने वालों के लिए रोजगार उपलब्ध कराना सरकार की कानूनी जिम्मेदारी होगी। अगर सरकार रोजगार मुहैया नहीं पाती तो उसे बेरोजगारी भत्ता देना होगा। इस तरह देखा जाए तो इस अधिनियम के बाद देश के हर नागरिक को रोजगार की गारण्टी मिल गई। इस योजना को देश में चरणवार तरीके से लागू किया गया। पहले इस योजना को दो सौ जिलों में लागू कर स्थितियों की समीक्षा की गई। इसके बाद योजना में आ रही परेशानियों को दूर किया गया। जब योजना अपने उद्देश्य में सफल होती दिखाई दी तो उसे अलग-अलग चरणों में पूरे देश में लागू कर दिया गया। इस योजना के लिए साल 2006-07 में 6204.09 करोड़ रूपये खर्च किये गए। इनमें 54 फीसदी कार्य जल संरक्षण से जुड़े थे जो स्थाई खेती और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण के लिए हितकारी साबित हुए। इस योजना का सबसे अधिक लाभ अनुसूचित जाति, जनजाति, लघु एवं सीमान्त किसानों को मिला। क्योंकि इस योजना से उन्हें न्यूनतम मजदूरी की गारंटी मिल सकी।