अप्रैल 1999 में 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से भारत में पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई । इस व्यवस्था के तहत स्थानीय लोगों को न केवल स्थानीय आवाज को मंच देने का मौका मिलता है बल्कि स्थानीय स्तर पर एक ऐसी सरकार स्थापित करने का अवसर भी मिलता है जो 'सशक्त स्थानीय सरकार' रुपी एक संस्था की स्थापना करती है। पंचायती राज व्यवस्था का सार विकास प्रक्रिया में निचले स्तर के साथ सहभागिता करके स्थानीय शासन को मजबूत करना है। यह व्यवस्था न केवल स्थानीय स्तर पर लोगों को सशक्त करती है बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था को भी मजबूत करती है। पंचायती राज व्यवस्था सामाजिक सशक्तिकरण के लिए लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने के साथ-साथ लोकतंत्र को मजबूत करने में भी अहम भूमिका निभाती है। शुरुआत में जब पंचायती राज व्यवस्था पूरे देश में लागू की गई उस वक्त धारा-370 की वजह से जम्मू और कश्मीर में यह व्यवस्था बहाल नहीं हो पाई। अनुच्छेद 370 हटाने के बाद 21 अक्टूबर, 2020 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जम्मू और कश्मीर पंचायती राज अधिनियम 1989 को मंजूरी दी, जिससे केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में स्थानीय निकाय चुनावों का मार्ग प्रशस्त हुआ।
जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में पहली बार स्वतंत्र, निष्पक्ष और शांतिपूर्ण पंचायत चुनाव हुए, जिसके कारण यहां जीवंत पंचायती राज संस्थानों का गठन हुआ। इन पंचायत चुनावों में 74.1 प्रतिशत रिकार्ड मतदान हुआ। जम्मू-कश्मीर में तीन स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की नींव रखने के लिए पहली बार कुल 3650 सरपंच और 23660 पंच चुने गए। पंचायत चुनावों के सफल आयोजन के बाद जम्मू-कश्मीर के इतिहास में पहली बार ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल (बीडीसी) के चुनाव हुए। बीडीसी चुनावों में 98.3 प्रतिशत का भारी मतदान हुआ जिसमें 276 अध्यक्षों का पारदर्शी तरीके से चुनाव किया गया। अंत में जिला विकास परिषद के चुनाव 8 चरणों में हुए जिसमें 51.7 प्रतिशत मतदान हुआ। इस प्रक्रिया में 20 डीडीसी अध्यक्षों और 20 उपाध्यक्षों के अलावा कुल 278 डीडीसी सदस्यों का भी चुनाव किया गया इस प्रकार त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली को उसके मूल स्वरूप में लागू किया गया।
जम्मू-कश्मीर में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना के बाद मनरेगा, मध्याह्न भोजन योजना और आईसीडीएस के तहत 1727.50 करोड़ रुपये दिए गए हैं। इसके अलावा, 1889 पंचायत लेखा सहायकों और 317 पंचायत सचिवों की भर्ती की गई। इसके अलावा पंचायतों को सामाजिक लेखा परीक्षा और शिकायत निवारण करने का अधिकार दिया गया है। पीआरआई प्रतिनिधियों के कौशल और दक्षता को और बढ़ाने के लिए प्रतिष्ठित प्रशिक्षण संस्थानों जैसे आईएमपीएआरडी और बाहरी संस्थानों में भी सरपंचों और पंचों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इसके अलावा नवनिर्वाचित बीडीसी अध्यक्षों के लिए इंडक्शन कोर्स, डिजिटल साक्षरता प्रशिक्षण, ग्राम पंचायत विकास योजना प्रशिक्षण और प्रशिक्षण कार्यशालाओं का आयोजन किया गया है। लगभग 750 निर्वाचित प्रतिनिधियों को केंद्र शासित प्रदेश के बाहर प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई है। आजादी के बाद पहली बार जम्मू-कश्मीर में स्थानीय स्तर से निर्वाचित प्रतिनिधियों को स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए औपचारिक प्रोटोकॉल दिया गया। निर्वाचित प्रतिनिधियों को मानदेय एवं वरीयता क्रम में औपचारिक पद दिया जा रहा है साथ ही पंचायत प्रतिनिधियों के साथ जिला अधिकारियों के संवाद की नियमित व्यवस्था को संस्थागत रूप दिया गया है। प्रशासन ने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की अध्यक्षता में ऐतिहासिक 'जिला स्तरीय योजना प्रक्रिया' बैठक का आयोजन किया जिसमें सभी डीडीसी अध्यक्षों और सदस्यों ने भाग लिया। इसके अलावा पंचायतों के लिए योजना आवंटन के तौर पर 2020-21 में 5136 करोड़ रुपये से दोगुना करके 2021-22 में 12600 करोड़ रुपये कर दिया गया है। नियोजन प्रक्रिया को संवैधानिक तरीके से पूरा किया गया है। साथ ही सभी पंचायतों के निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिए 25 लाख रुपये के बीमा का भी प्रावधान किया गया है।