भारत प्राचीन काल से लोकतंत्र जैसी पंरपरा को अपनाता रहा है। हमारे ग्रन्थ ऋग्वेद में भी ‘सभा’ और ‘समिति’ के रूप में लोकतांत्रिक संस्थाओं का जिक्र मिलता है। इतिहास के विभिन्न कालखंडों में राजनैतिक उथल-पुथल के बावजूद ग्रामीण स्तर पर यह प्रजातांत्रिक व्यवस्था निरन्तर किसी न किसी रूप में अपने महत्व को सिद्ध करता रहा। उत्तर प्रदेश में स्थानीय स्वशासन के विकास की बात की जाय तो संयुक्त प्रान्त पंचायत राज अधिनियम 1947 के द्वारा दिनांक 7 दिसम्बर, 1947 ई0 को तत्कालीन गवर्नर जनरल द्वारा यूपी प्रांत में 15 अगस्त, 1949 को पंचायतों की स्थापना की गई। इसके बाद जब भारतीय संविधान का निर्माण हुआ तो उसमें पंचायतों की स्थापना की व्यापक व्यवस्था की गई। संविधान में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत के अनुच्छेद- 40 में यह निर्देश दिया गया कि राज्य पंचायतों की स्थापना के लिए आवश्यक कदम उठायें और ग्रामीण स्तर पर सभी प्रकार के कार्य एवं अधिकार पंचायतों को देने की कोशिश करें। आजादी के बाद तत्कालीन 5 करोड़ 40 लाख ग्रामीण जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए 35 हजार पंचायतों का गठन किया गया और इसके साथ ही लगभग 8 हजार पंचायत अदालतें भी स्थापित की गईं । लेकिन बीतते समय के साथ वर्ष 1951-52 में ग्राम सभाओं की संख्या बढ़कर 35,943 तथा पंचायत अदालतों की संख्या बढ़कर 8492 हो गई। 1952 से पंचायतों ने ग्रामीण जीवन में विशेष परिवर्तन करने के लिए सुनियोजित तरीके से राष्ट्र निर्माण का कार्य करना आरम्भ किया। इस वर्ष भारत की पहली पंचवर्षीय योजना प्रारम्भ हुई। योजना की सफलता के लिए सरकार द्वारा पंचायत अदालत स्तर पर विकास समितियों के सदस्य मनोनीत किए गए। ग्राम पंचायत स्तर पर पंचायत मंत्री, विकास समितियों का भी मंत्री नियुक्त किया गया। जिला नियोजन समिति में भी प्रत्येक तहसील से एक प्रधान मनोनीत किया गया। 1952-53 में जमींदारी प्रथा की समाप्ती के बाद ग्राम समाज की स्थापना हुई और ग्राम सभाओं को कई अधिकार दिये गए।
साल 1960-61 के दौरान गावों को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने के लक्ष्य से ग्राम पंचायत क्षेत्रों में कृषि उत्पादन तथा कल्याण उपसमितियों का गठन ग्रामीण स्तर पर किया गया। इसी वर्ष पंचायत राज अधिनियम में संशोधन द्वारा ग्राम पंचायतों तथा न्याय पंचायतों की चुनाव पद्धति में आंशिक परिवर्तन किया गया जिसके अनुसार ग्राम सभा के प्रधान का चुनाव गुप्त मतदान विधि द्वारा किए जाने का निश्चय हुआ। 10 फरवरी, 1961 ई0 से 7 फरवरी, 1962 ई0 के मध्य पंचायतो का तृतीय सामान्य निर्वाचन सम्पन्न हुआ। श्री बलवन्त राय मेहता समिति की सिफारिशों के आधार पर भारत सरकार के निर्देशानुसार सत्ता के विकेन्द्रीकरण के लिए उत्तर प्रदेश ने भी क्षेत्रीय समिति एवं जिला परिषद अधिनियम 1961 को लागू किया और इस अधिनियम के अनुसार प्रदेश में ग्राम सभा, क्षेत्र समिति तथा जिला परिषद की इकाईयों को एक सूत्र में बांधा गया और प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था प्रारम्भ हुई। पंचायतों के तीसरे आम चुनावों के पश्चात् प्रदेश में गांव पंचायतों की संख्या 72233 तथा न्याय पंचायतों की संख्या 8594 थी। भारतीय संविधान के निर्माण के समय ही राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्त के अन्तर्गत अनुच्छेद - 40 में आधारभूत स्तर पर पंचायतों को मान्यता देते हुए यह कहा गया कि राज्य गांव पंचायतों को संगठित करने के लिए उपाय करेगा और उन्हें ऐसी शक्तियां और अधिकार प्रदान करेगा जो उन्हें स्वायत्त शासन की इकाई के रूप में कार्य करने के लिए आवश्यक हैं। साल 1994 में देश की गांव पंचायतो को संवैधानिक इकाई मानते हुए स्वशासन व्यवस्था के रूप मे स्थापित करने, उनमें एक रूपता लाने, निश्चित समय पर उनके चुनाव सुनिश्चित कराने, आर्थिक रूप से मजबूत करने तथा पंचायतों को संवैधानिक दर्जा देने के उद्देश्य से 72वा संविधान संशोधन लोकसभा में प्रस्तुत किया गया जो बाद में 73वां संविधान संशोधन 1992 के रूप में 24 अप्रैल, 1993 से सम्पूर्ण देश में लागू हुआ। 73वें संविधान संशोधन को मानते हुए प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश पंचायत विधि (संशोधन) अधिनियम सं०-9 विधेयक 1994 पारित किया, जो 22 अप्रैल, 1994 को प्रदेश भर में लागू हो गया। इस अधिनियम के तहत संयुक्त प्रान्त पंचायत राज अधिनियम 1947 तथा उत्तर प्रदेश क्षेत्र समिति तथा जिला परिषद अधिनियम 1961 में संशोधन कर राज्य में तीनों स्तर की पंचायतो (ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत तथा जिला पंचायत) में एकरूपता लाते हुए निम्नलिखित व्यवस्था सुनिश्चित की गयी है:-
उपर्युक्त व्यवस्थाओं के तहत करीब 1000 की आबादी पर ग्राम पंचायतों का गठन, संवैधानिक व्यवस्थाओं के अनुरूप आबादी के प्रतिशत के आधार पर पंचायती राज के प्रत्येक स्तर पर अध्यक्ष पदों एवं सदस्यों के स्थानों पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा पिछड़ा वर्ग ( 27 प्रतिशत) एवं प्रत्येक वर्ग में महिलाओं के लिए एक तिहाई पदों एवं स्थानो पर आरक्षण व्यवस्था सुनिश्चित की गई है। यह भी सुनिश्चित किया गया है कि पंचायतों का कार्य काल 5 वर्ष हो एवं वह उसे पूरा कर सकें। संविधान एवं राज्य के पंचायत राज अधिनियमों मे किये गए प्रावधानों के अनुसार प्रदेश में 23 अप्रैल, 1994 को उत्तर प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग की स्थापना की गई और वर्ष 1994 से राज्य निर्वाचन आयोग की देखरेख में 73वें संविधान संशोधन के अनुसार त्रिस्तरीय पंचायतों के सामान्य निर्वाचन सम्पन्न कराये जाते हैं।