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संकर धान की उत्पादकता कैसे बढ़ाएं

पूरे विश्व की लगभग 2.7 बिलियन से अधिक आबादी का मुख्य भोजन चावल ही है। विश्व में खद्यान्न सुरक्षा में चावल की अहम भूमिका है। धान ही एक मात्र ऐसी फसल है जिसकी खेती सभी परिस्थितियों यानी सिंचित, असिंचित, जल प्लावित, ऊसरीली और बाढ़ ग्रस्त भूमियों में सुगमता से की जा सकती है। इसकी खेती पूरे विश्व में तकरीबन 150 मिलियन हेक्टेयर और एशिया में 135 मिलियन हेक्टेयर में की जाती है जबकि भारत में लगभग 44 मिलियन हेक्टेयर में धान की खेती की जाती है। आपको बता दें देश में हरित क्रांति की सफलता में मुख्य भूमिका निभाने वाली धान की उत्पादकता में जनसंख्या वृद्धि दर के अनुरूप बढ़त नहीं हो पा रही है। भारत के अनेक राज्यों में धान की औसत उपज राष्ट्रीय औसत से काफी कम बनी हुई है। धान की औसत उपज की दॄष्टि से हम चीन से काफी पीछे हैं। देश के लगभग 58 फीसदी इलाके में धान की खेती सिंचित परिस्थितियों में की जाती है। धान की औसत उपज के मामले में क्षेत्रीय विभिन्नता बहुत अधिक है। पंजाब में चावल की औसत उपज 3838 किग्रा प्रति हेक्टेयर है तो धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में महज 1581 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से चावल पैदा किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में करीब 5.9 मिलियन हेक्टेयर में धान की खेती की जाती है। इसलिए देश में घटती कृषि योग्य भूमि, पानी, श्रम और अन्य प्राकृतिक स्त्रोतों की कमी के बावजूद हमें धान की उत्पादकता को बढ़ाना होगा।

देश में करोड़ों किसान धान की खेती करते हैं। खरीफ सीजन की मुख्य फसल धान की खेती पूरे देश में की जाती है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान यानी ICAR पूसा नई दिल्ली के कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर कुछ बातों का शुरु से ही ध्यान रखा जाए तो कम लागत में धान की खेती से ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि देश में बढ़ती जनसंख्या के चलते खाद्यान्न के मामले में आत्म निर्भरता बरकरार रखने के लिए हमें हर साल 5 मिलियन टन की दर से खाद्यान्न जिसमें 2 मिलियन टन धान की उपज को बढ़ाना होगा। इसलिए धान की उपज में क्षेत्रीय असमानता को दूर करने के लिए चीन के जैसे ही हमें संकर धान की खेती को बढ़ावा देना होगा। चीन में संकर धान की खेती बढ़े पैमाने पर प्रचलित है। वहां के किसान सामान्य किस्मों की अपेक्षा संकर किस्मों के धान से 30 फीसदी अधिक उपज ले रहे हैं।

आपको बताते हैं कि संकर धान खेत की तैयारी कैसे करते हैं ?

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि संकर धान की उपज क्षमता स्थानीय अति उत्तम प्रजाति किस्मों के धान से 10 से 25 फीसदी अधिक होती है। संकर धान से औसतन 7 टन तक एक हेक्टेयर में उपज प्राप्त की जा सकती है । संकर धान 110 से 140 दिनों में पक कर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। धान की खेती करने से पहले खेत की अच्छी तरह से गहरी जुताई कर लेना चाहिए जिससे पुरानी फसल के अवशेष निकल जाएं। इसके बाद खेत में पानी लगा देना चाहिए, पानी लगने के बाद उसे कुछ दिन के लिए ऐसे ही छोड़ दें और मई माह के मध्य यानी 15 मई से 15 जून में जब भी बारिश हो इसकी फसल के लिए खेत की अच्छी जुताई कर, पाटा चला कर खेत को समतल कर लेना चाहिए। समतल किये गये खेत में संकर धान की पैदावार अच्छी होती है। प्रति हेक्टेयर जमीन की बुवाई के लिए 15 किलोग्राम संकर धान बीज की आवश्यकता पड़ती है।

संकर धान की खेती सिंचित एवं असिंचित दोनों प्रकार की जमीन में की जा सकती है। मई के महीने में पहली बारिश के बाद खेत में प्रति हेक्टेयर 5 टन गोबर की सड़ी खाद डाल कर खेत की जुताई कर लेना चाहिए। खेत की मेड़ को चारों ओर से अच्छी तरह से बांध देना चाहिए। रोपाई के 10-15 दिन पूर्व खेत की सिंचाई एवं कदवा करना चाहिए ताकि खरपतवार सड़कर मिट्टी में मिल जाए। रोपाई के 1 दिन पहले दोबारा खेत को समतल कर लेना चाहिए उसके बाद रोपाई करना चाहिए और रोपाई कतारों में और पौधों के बीच की दूरी 20 से 15 सेंटीमीटर रखना चाहिए। कतार में रोपी गई संकर धान की फसल के लिए नाइट्रोजन, फॉस्फोरस,पोटाश क्रमशः 120, 75, 90 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है। नाइट्रोजन की एक चौथाई मात्रा, फॉस्फोरस (स्फुर) की पूरी मात्रा तथा पोटाश की तीन चौथाई मा़त्रा खेत में रोपाई के समय डालना चाहिए। नाइट्रोजन की शेष चौथाई मात्रा 3 बार में यूरिया के रूप में रोपाई के क्रमशः 25, 45 तथा 60 दिनों के बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में डालना चाहिए। पोटाश की बची हुई एक चौथाई मात्रा फसल में फूल आने पर टॉप ड्रेसिंग के रूप में डालना चाहिए। खरपतवार की समस्या से निजात पाने के लिए खेत में पहली निकाई-गुड़ाई रोपाई के 3 सप्ताह बाद और दूसरी निकाई-गुड़ाई 6 सप्ताह के बाद करना चाहिए। संकर धान की फसल 110 से 140 दिनों में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है।

एक अनुमान के मुताबिक देश में अब भी लगभग 25 करोड़ लोग ऐसे हैं जो लोग गरीबी में जीवन-यापन करते हैं और लगभग 4.5 करोड़ 5 साल से कम आयु के बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। हरित क्रांति के 50 साल बाद भी देश को घटती उत्पादकता, मिट्टी की स्थिति का खराब होना, मिट्टी में सतही जल का प्रदूषण, कीटों और रोगों का प्रकोप, जलवायु परिवर्तन और खेतीबाड़ी में लागत ज्यादा और मुनाफा कम होना जैसी चुनौतियां का सामना करना पड़ रहा है। संकर धान को बढ़ावा देने के लिए छोटी जोत के किसानों को खेती में उत्पादकता क्रांति लाने की आवश्यकता है।