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क्वीन ऑफ राइस कही जाने वाली बासमती की खेती के फायदे

खाने में जब बात चावल की होती है तो सबसे पहले दिमाग में बासमती चावल का ही नाम आता है। ये चावल की सबसे अच्छी किस्म है, जिसकी खुशबू हमें दीवाना बना देती है। लजीज भारतीय बासमती चावल के कद्रदान पूरी दुनिया में हैं। पूरी दुनिया में करीब 90 फीसदी बासमती चावल का निर्यात अकेले भारत ही करता है। बासमती चावल की महक और स्वाद दोनों ही लाजवाब हैं। यही वजह है कि बासमती को क्वीन ऑफ राइस भी कहा जाता है। बासमती धान की पैदावार पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में होती है। जबकि पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के 14 जिलों में बासमती चावल का उत्पादन होता है। हरित क्रांति के बाद देश में खाद्यान्न की आत्मनिर्भरता और विश्व में इसकी बढ़ती मांग को देखते हुए इसकी वैज्ञानिक खेती काफी महत्वपूर्ण हो गई है।

देश के बासमती चावल की सुगंध अब विदेशों में भी फैल रही है। इसलिए बासमती चावल की मांग इन दिनों तेजी से बढ़ रही है। साल 2020-21 में देश से 30 हजार करोड़ का 46.30 लाख मीट्रिक टन चावल विदेशों में भेजा गया। इससे जहां किसानों को आर्थिक लाभ हो रहा है वहीं देश में बासमती धान का रकबा भी बढ़ रहा है। इस समय देश में किसान बासमती चावल की करीब 33 प्रजातियों की बुआई कर रहे हैं। देश से बासमती चावल चीन, पाकिस्तान, अमेरिका, खाड़ी देशों समेत दुनिया के लगभग 125 देशों में निर्यात किया जा रहा है। जिसके चलते किसानों का गैर बासमती चावल की तुलना में बासमती चावल की खेती के प्रति रूझान तेजी से बढ़ रहा है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा नई दिल्ली के कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि किसान बासमती धान की खेती में बुआई से लेकर कटाई तक कुछ जरूरी बातों पर अगर ध्यान देते हैं तो बेहतर क्वालिटी के साथ बासमती धान की अच्छी पैदावार ले सकते हैं।

किसान खेती के लिए बासमती की किन-किन किस्मों का कर सकते हैं चुनाव

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि बासमती धान की पैदावार और गुणों पर रोपाई के समय का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है। लंबी बासमती किस्में जैसे तरावड़ी बासमती, सीएसआर 30 किस्में पकने मे 130 से 150 दिन लेती हैं। धान की बौनीं बासमती किस्में पूसा 1121, पूसा बासमती नंबर-वन, पूसा बासमती 1509, और पूसा बासमती-छह छोटे कद की 115 से 140 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। पूसा 1509 किस्म बहुत ही कम समय लगभग 115 दिन में पक जाती है। किसान इसकी रोपाई जुलाई माह में भी कर सकते हैं। किसान बासमती धान की 25 से 30 दिन आयु की पौध रोपाई के लिए लें। पौध उखाड़ने से पहले नर्सरी में सिंचाई कर लें और एक जगह दो से तीन पौधे लगाएं।

बता दें बासमती धान का पौधा एक गर्म और नम जलवायु का पौधा है। इसके पौधे के विकास के लिए 21 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। बासमती धान की खेती 50 से 500 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में आसानी से की जा सकती है। इतना ही नहीं बासमती चावल में प्रोटीन 7.7, कार्बोहाइड्रेट 72.5,वसा-5.9,सेलूलोज 11.8 फीसदी पाया जाता है।

कैसे और कब करें बासमती धान की खेती

बासमती धान की खेती के लिए अच्छी जल धारण क्षमता वाली चिकनी मिट्टी उपयुक्त होती है। धान की खेती के लिए समय से 2 से 3 बार जुताई करनी चाहिए। साथ ही खेतों का मजबूत मेड़ भी बनाना चाहिए। बासमती धान की नर्सरी की बुवाई से पहले खेत को लेजर लेवलर से समतल करा लें और सम्भव हो तो छोटी-छोटी क्यारियां बनाएं। हरी खाद का प्रयोग अवश्य करें। इसके लिए ढैंचा/सनई/लोबिया या मूंग फसल की बुवाई करें। बासमती धान की रोपाई से पहले खेत में पानी भर कर हरी खाद को ट्रैक्टर से खेत में पलट दें। इससे जुताई लागत भी कम की जा सकती है।

धान की रोपाई करते समय किन बातों का रखें ध्यान

बासमती धान के लिए प्रजातियों के मुताबिक 25-30 किग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज की मात्रा पर्याप्त होती है। बासमती के बीज प्रमाणित संस्था या कृषि अनुसंधान केन्द्र से ही खरीदें और नर्सरी में बीज बुवाई से पहले बीज का शुद्धिकरण अवश्य करें। इसके लिए एक टब या बाल्टी में 10 लीटर पानी लें, उसमें बीज को धीरे-धीरे डालें । ऐसा करने से बीज सतह पर तैरने लगते हैं। तैरते हुए बीजों को निकाल कर अलग कर देना चाहिए। अच्छे बीजों को पानी में दो बार जरूर धोएं और 20 ग्राम कार्बेडाजिम और एक ग्राम स्ट्रप्टोसाइक्लीन और पानी की उचित मात्रा के घोल में 10 किलो बीज 24 घन्टे के लिए छाया में रखें। इसके बाद बीजों का ढेर बनाकर छायादार जगह पर अंकुरित होने के लिए 24 घंटे के लिए रख दें और बीजों को सड़ने से बचाने के लिए नमी जरूर बनाये रखें। ऐसा करने से एक समान अंकुरण होता है। एक किलोग्राम बीज को बोने के लिए कम से कम 25 वर्ग मीटर क्षेत्रफल होना चाहिए। नर्सरी की क्यारी अच्छी तरह से समतल होनी चाहिए। नर्सरी क्षेत्र की अन्तिम पडलिगं से ठीक पहले नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, जिंक एवं आयरन की सन्तुलित मात्रा का प्रयोग करना चाहिए। अंकुरित बीजों को शाम के समय एक सामान रूप से छिटक कर बोना चाहिए। बीज छिटकते समय नर्सरी में 2-3 सेन्टीमीटर पानी भरा होना चाहिए। नर्सरी क्षेत्र में खरपतवार नहीं होना चाहिए एवं पानी का स्तर धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए। पौध को पानी में भरकर ही उखाड़ना चाहिए।

किसान मिट्टी की जांच कराने के बाद ही खेत में जुताई से ठीक पहले फॉस्फोरस, पोटाश, जिंक और आयरन जैसी रासायनिक खाद का सन्तुलित मात्रा में प्रयोग करें और रोपाई के लिए 20 से 25 दिन की पौध का ही प्रयोग करना चाहिए। पूसा बासमती 1509 की 18-22 दिन की पौध होने पर रोपाई कर देना चाहिए। पौधे को उपचारित करने के लिए 2 ग्राम की मात्रा कार्बेन्डाजिम या 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा हरजेनियम प्रति लीटर पानी की दर के घोल में कम से कम 1 घन्टे के लिए डुबो कर अवश्य रखें। रोपाई से पहले पौध का ऊपरी भाग लगभग 3 से 4 सेन्टीमीटर तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए। पौध की रोपाई सदैव पंक्तियों में ही करनी चाहिए। 2 से 3 मीटर रोपाई करने के बाद 40 सेन्टीमीटर का रास्ता छोड़ देना चाहिए। ऐसा करने से हवा और सूर्य का प्रकाश मिलने के कारण कीटों और बीमारियों का प्रकोप कम होता है और उपज में बढ़ोत्तरी होती है। किसान रोपाई करते समय पंक्ति से पंक्ति और पौधे से पौधे की दूरी 20 सेन्टीमीटर रखनी चाहिए। पौध की रोपाई 2 से 3 सेन्टीमीटर से ज्यादा गहरी नहीं करनी चाहिए। नाली, मेड़ों, खेतों और उसके आस-पास के क्षेत्र को साफ रखना चाहिए। और अधिक फुटाव के लिए रोपाई के 15 से 25 दिन के बीच खेत में पानी भरकर 15 से 18 किलोग्राम वजन का पाटा एक से दो बार चलाना चाहिए।

आज देश भर में 33 तरह के बासमती धान उगाए जाते हैं। देश के कई राज्यों को जीआई टैग भी मिल चुका है। असुगंधित धान की तुलना में सुगंधित बासमती धान कम खाद और कम पानी में ज्यादा पैदावार देता है। बासमती चावल अपने सुगंध, पकने और खाने के बढ़िया गुणों के कारण बाजार में ज्यादा पसंद किया जाता है।