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जैव उर्वरकों के इस्तेमाल से बढ़ाएं पैदावार

आज के वक्त में हमारी खेती को रासायनिक उर्वरकों और हानिकारक पेस्टीसाइड ने पूरी तरह से जकड़ लिया है, जिसकी चपेट में अनाज और सब्जियां भी आ रही हैं, इन्हें खाने से लोगों में कई गंभीर प्रकार की बीमारियों का ख़तरा बढ़ता जा रहा है। रासायनों के बढ़ते खतरे को देखते हुए किसान अब जैविक खेती पर जोर देने लगा है, इस पर गंभीरता से काम करने की जरूरत है। हमें यह मानकर रासायनिक खादों और कीटनाशकों को बंद करना होगा कि हम जितना इनका प्रयोग करेंगे धरती मां उतनी ही तबाह होगी। हरित क्रांति के बाद जिस तरह अपने देश में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल किया जा रहा है इसकी वजह से खेत की मिट्टी में कार्बन तत्वों की मात्रा कम हो गई है और पीएच का स्तर बिगड़ता जा रहा है, जिसके चलते किसानों को हर साल फसल उत्पादन में ज्यादा उर्वरक का इस्तेमाल करना पड़ता है। इसका परिणाम है कि आज खेती में लागत खर्च दिन- ब-दिन बढ़ रहा है। अगर इन सब परेशानियों से निजात पाना है तो जैव उर्वरकों के इस्तेमाल पर जोर देना होगा ।

जैव उर्वरक क्या है?

जैव उर्वरक एक जीवाणु खाद है, जिसमें मौजूद लाभकारी सूक्ष्म जीवाणु वायुमण्डल में पहले से उपस्थित नाइट्रोजन को अवशोषित कर और मिट्टी में मौजूद अघुलनशील फास्फोरस को पानी में घुलनशील बनाकर पौधों को देते हैं। जिससे पौधों की नाइट्रोजन और फास्फोरस की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है। यह जैव उर्वरक मानव स्वास्थ, पर्यावरण और खेत की मिट्टी की उर्वरता के लिए भी लाभकारी होते हैं। अगर नाइट्रोजन की पूर्ति करने वाले जैव उर्वरक राइजोबियम कल्चर, एजेक्टोबैक्टर का इस्तेमाल करते हैं, तो इसके प्रयोग से 30 से 40 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर खेतों को मिल जाती है और फसलों की उपज में लगभग 10 से 20 प्रतिशत तक बढ़ोत्तरी देखी गई है। इसलिए अगर किसान रासायनिक उर्वरकों की जगह अपने खेतों में जैव उर्वरक का इस्तेमाल करते हैं, तो फसलों से भरपूर उपज ली जा सकती है। अगर किसान फास्फोवैक्टीरिया और माइकोराइजा जैव उर्वरकों का इस्तेमाल करते हैं तो वे अपने खेतों में 20 से 30 प्रतिशत फास्फोरस की मौजूदगी बढ़ा सकते हैं। इन जैव उर्वरकों के इस्तेमाल से एक तरफ जहां किसान की फसल लागत घटती है वहीं दूसरी तरफ उनके खेतों की मृदा संरचना बेहतर होती है ।

जैव उर्वरक का क्यों करना चाहिए इस्तेमाल और इसके फायदे क्या हैं?

दलहनी फसलों में नाइट्रोजन की पूर्ति के लिए जैव उर्वरक राईजोबियम कल्चर का इस्तेमाल बीजों के उपचार और मृदा उपचार के रुप में किया जाता है। बुवाई के बाद राइजोबियम के जीवाणु पौधों की जड़ों में प्रवेश करके छोटी-छोटी गांठें बना लेते हैं और इन गांठों में जीवाणु अपनी संख्या बढ़ाते हुए प्रकृति में मौजूद नाइट्रोजन को शोषित करके उसे पोषक तत्वों में परिवर्तित कर पौधों को उपलब्ध कराते हैं। इसका इस्तेमाल दहलनी फसलों जैसे अरहर, चना, मूंग, उड़द, मटर, मसूर, सोयाबीन, मूंगफली व सेम इत्यादि में किया जाता है |
खाद्यान्न फसलों में नाइट्रोजन की पूर्ति के लिए एजोटोबैक्टर जैव उर्वरक का इस्तेमाल किया जाता है इसके जीवाणु पौधों की जड़ क्षेत्र में स्वतंत्र रहते हुए नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर पौधों को नाइट्रोजन उपलब्ध कराते हैं। इसके जीवाणु वायुमंडल से नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करने के साथ-साथ जिब्रलिक एसिड, और एसिटिक एसिड जैसे हार्मोन्स का उत्सर्जन भी करते हैं, जिससे बीजों के जमाव और पौधों की बढ़वार पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। इस जैव उर्वरक का इस्तेमाल सभी प्रकार के अनाज वाली फसलों जैसे गेहूं, धान, जौ, जई, मक्का और बाजरा के अलावा तिलहनी फसलों जैसे सरसो, और सूरजमुखी में इस्तेमाल किया जाता है।

एजोस्पाइलम जैव उर्वरक

एजोस्पाइलम कल्चर फसलों को नाइट्रोजन पूर्ति करने वाला एक जैव उर्वरक है जिसके जीवाणु एजोबैक्टर के जीवाणु की तरह कार्य करते हैं यह अधिक नमी में उगाई जाने वाली फसलों के लिए काफी लाभकारी होता है। विभिन्न रिसर्च में पाया गया है कि अगर धान की रोपाई के पहले एजोस्पाइलम का इस्तेमाल किया जाता है, तो धान की फसल की अच्छी बढ़वार होती है और उपज में भी बढ़ोत्तरी होती है। एजोस्पाइलम का इस्तेमाल धान, मक्का, गन्ना सहित छोटे अनाज वाली फसलों में करना काफी लाभकारी पाया गया है। अगर एजोस्पाइलम कल्चर से बीज का उपचार करते हैं तो, प्रति किलो बीज के लिए 5 से 6 ग्राम एजोस्पाइलम कल्चर की जरुरत पड़ती है। इसके प्रयोग से बीजों की अंकुरण क्षमता में सुधार होता है और पौधे की जड़ें मजबूत होती हैं।
फसलों की अच्छी बढ़वार के लिए नाइट्रोजन के बाद सबसे महत्वपूर्ण पोषक तत्व फास्फोरस की जरूरत पड़ती है, इसके लिए फास्फोरस घोलक जीवाणु, यानि पीएसबी कल्चर का इस्तेमाल किया जाता है। इस कल्चर के जीवाणु जमीन में मौजूद अघुलनशील फास्फोरस को घुलनशील अवस्था में बदल कर पौधों को उपल्बध कराते हैं। इसके इस्तेमाल से प्रति हेक्टेयर 10 से 40 किलोग्राम फास्फोरस पौधों को मिल जाता है। पीएसबी कल्चर का इस्तेमाल बीजों के उपचार और मृदा उपचार के रुप में किया जाता है इसके इस्तेमाल से पौधों की जड़ों और ग्रन्थियों का विकास होता है ।

जैव उर्वरकों के इस्तेमाल के लिए बीज उपचार सबसे अच्छी विधि है। जैव उर्वरक से बीजों के उपचार के लिए पहले आधा लीटर पानी में 50 ग्राम गुड़ या गोंद को मिलाकर घोल बना लेते हैं, और इस घोल में 200 ग्राम किसी भी एक जैव उर्वरक जैसे राइजोबियम कल्चर, एजोक्टो बैक्टर पीएसबी कल्चर को मिलाते हैं। इसके बाद तैयार घोल का 10 किलोग्राम बीज पर इस प्रकार छिड़काव करते हैं, जिससे प्रत्येक बीज पर घोल की एक परत बन जाय। इसके बाद उपचारित बीजों को कुछ देर तक छाया में सुखा लेते हैं और सूखने के बाद तुरन्त बुवाई कर देते हैं।

इसके अलावा बीज उपचार की दूसरी तकनीक का भी इस्तेमाल किया जाता है। इस विधि में सबसे पहले एक लीटर पानी में 125 ग्राम गुड़ को मिलाकर घोल बनाते हैं। इसके बाद घोल को किसी बर्तन में रखकर कुछ देर तक आग पर गरम करते हैं, जिससे एक गाढ़ा घोल बन बन जाता है, इसके बाद इस घोल को कुछ समय रखकर ठंडा कर लेते हैं और जब घोल ठंडा हो जाता है, उसमें कल्चर को अच्छी तरह से मिलाते हैं। इसके बाद इस तैयार घोल को बीजों पर छिड़काव कर इस प्रकार मिलाते हैं, जिससे कि प्रत्येक बीज पर घोल की एक परत बन जाए और इन उपचारित बीजों को छाया में कुछ देर तक सुखाते हैं और सुखने के बाद खेतों में तुरन्त बुवाई कर देते हैं ।

अब बात आती है रोपाई करने वाले पौधों की तो इसके लिए पौधे की जड़ का उपचार किया जाता है इसके लिए चौड़े बर्तन में 5 से 7 लीटर पानी में 250 ग्राम गुड़ को मिलाकर घोल बनाते हैं और इसमें एक किलो एजैक्टोबैक्टर और एक किलो पीएसबी कल्चर मिलाते हैं। इस घोल में नर्सरी से पौधों को उखाड़कर जड़ों की मिट्टी को साफ कर 50 से 100 पौधों को 10 मिनट तक डुबोकर उपचारित करते हैं इसके बाद खेतों में पौधों की ऱोपाई की जाती है। इस विधि से धान, टमाटर, फूलगोभी, प्याज इत्यादि फसल के पौधों को उपचारित किया जा सकता है।

कन्द वाली फसलों जैसे आलू , अदरक, घुईया के अलावा गन्ना आदि को भी इन जैव उर्वरकों से उपचारित कर इन फसलों को नाईट्रोजन और फास्फोरस की पूर्ति कर सकते हैं। कन्दो को उपचारित करने के लिए 20 से 30 लीटर पानी में एक किलो एजैक्टोबैक्टर और एक किलो पीएसबी कल्चर मिलाते हैं और उसमे कन्दों को उपचारित करते हैं। इसके बाद खेतों में कन्दों की बुवाई करते हैं। जैव उर्वरकों के द्वारा फसलों को नाइट्रोजन और फास्फोरस की पूर्ति के लिए मृदा उपचार विधि का इस्तेमाल किया जाता है इसके तहत 7से 10 किलोग्राम जैव उर्वरक एजैक्टोबैक्टर और पीएसबी कल्चर को 100 किलो कम्पोस्ट में मिलाकर रात भर छोड़ दिया जाता है इसके बाद खेतों में अन्तिम जुताई के समय एक हेक्टेयर खेत में छिड़काव कर दिया जाता है ।

जैविक उर्वरकों का चयन फसलों की किस्म के अनुसार ही करना चाहिए। जैविक उर्वरक प्रयोग करते समय पैकेट के ऊपर उत्पादन तिथि, उपयोग की अन्तिम तिथि व संस्तुत फसल का नाम अवश्य देख लें। प्रयोग करते समय जैविक उर्वरकों को धूप व गर्म हवा से बचाकर रखना चाहिए।

बड़े स्तर से लेकर छोटे स्तर पर की जाने वाली खेती के साथ साथ बागवानी में भी इन जैव उर्वरकों का इस्तेमाल करके हम केमिकल उपज से होने वाले नुकसान के साथ बीमारियों से भी बच सकते हैं, साथ ही कम लागत में फसलों से अच्छी पैदावर के साथ खेत की मृदा उर्वरता को स्थायी बनाए रख सकते हैं। इस तरह इन जैविक विधियों को अपनाकर खेती में क्रांतिकारी बदलाव लाए जा सकते हैं।