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इंटर क्रॉपिंग पद्धति फसलें देंगी कम समय में ज्यादा मुनाफा

आज कल किसान नई तकनीक से खेती करके अच्छा पैसा कमा रहे हैं। ऐसे में अगर आप भी पारंपरिक फसलों से हटकर कोई अलग और अधिक मुनाफे वाली खेती करना चाहते हैं, तो हम आपको इंटर क्रॉपिंग पद्धति के बारे में बताएंगे, जो कम लागत में गजब का मुनाफा देगी और खेती में आपकी आमदनी का जरिया हमेशा बना रहेगा। ICAR पूसा नई दिल्ली के कृषि वैज्ञानिक किसानों की आय दोगुना करने के लिए इंटर क्रॉपिंग पद्धति अपनाने के लिए जागरूक कर रहे हैं। इस पद्धति के जरिए खेती करने से अधिक मुनाफा प्राप्त होता है।

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ICAR पूसा नई दिल्ली के प्रधान कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजीव सिंह का कहना है कि आमतौर पर किसान एक खेत में एक समय एक ही फसल करते हैं। लेकिन किसान दो या दो से अधिक फसलें भी एक ही खेत में एक मौसम में उगा सकते हैं। देश में फसल उत्पादन मौसम की प्रतिकूल दशाओं जैसे- बाढ़,पाला, सूखा और ओला आदि से प्रभावित रहता है। इसके अलावा कीट और रोगों द्वारा भी कई बार फसलों को भारी नुकसान होता है। डॉ. राजीव सिंह के मुताबिक एक तरह की फसलों की खेती कई बार जोखिम से भरी होती है। रबी या खरीफ के मौसम में मुख्य फसलों के साथ सहफसलों की खेती करने से न केवल फसलों की पैदावार अच्छी होती है बल्कि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी फसल के नुकसान की संभावना कम रहती है। और तो और इससे खेती में लगने वाली लागत को भी कम किया जा सकता है। साथ ही खेत में उपलब्ध पोषक तत्वों और सूर्य की रोशनी का प्रभावी उपयोग किया जा सकता है। ऐसे में समझदारी इसमें है कि आप मुख्य फसल के साथ दूसरी फ़सलों की खेती भी जरूर करें। इससे खेती में आपकी आमदनी का जरिया हमेशा बना रहेगा।

ICAR पूसा नई दिल्ली के प्रधान कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजीव सिंह के मुताबिक एक ही क्षेत्र में दो या दो से अधिक फसलों को अलग-अलग कतारों में एक साथ एक ही समय में लेना इंटरक्रॉप पद्धति है। किसान चाहे तो मुख्य फसल के बीच में खाली पड़ी जगह का सदुपयोग कर प्रति इकाई क्षेत्र से अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं। अब आपको बताते हैं कि किस मुख्य फसल के साथ किस सब्जी की खेती करें। डॉ. राजीव सिंह के मुताबिक कपास के साथ भिंडी, लौकी, करेला, टमाटर, तुअर, लोबिया या ग्वार की फसल लगा सकते हैं। अरंडी के साथ ग्वार, भिंडी, लोबिया, लौकी, करेला और तुअर की खेती की जा सकती है। गन्ने के साथ लौकी, करेला, चना, उड़द, हरी मूंग और हल्दी की फसल लगा सकते हैं। मूंगफली के साथ भिंडी, तुअर या तिल की खेती कर सकते हैं। मक्का के साथ भिंडी, लौकी, करेला या चने की खेती कर सकते हैं। वहीं बाजरा के साथ लौकी, करेला, उड़द, मूंग, लोबिया या तुअर की खेती कर सकते हैं। धान के साथ भिंडी, तुअर, उड़द और हरी मूंग की खेती अनुकूल रहती है और गेहूं के साथ आलू, फूल गोभी, पत्ता गोभी, मूली, शलजम, धनिया या मेथी की फसल लगा सकते हैं।

आपको बताते हैं कि intercropping यानि सहफसली खेती कैसे करें ?

डॉ. राजीव सिंह के मुताबिक सहफसली खेती में मुख्यतः दो फसलें यानि मुख्य फसल और सहफसल होती है। इन फसलों की खेती करने के चुनाव के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखना जरूरी है। इंटर क्रॉपिंग में ऐसी फसलों का चुनाव करना चाहिए जो एक-दूसरे के लिए सहायक हों। जैसे, दोनों फसलें एक ही जाति की न हों और एक फसल की छाया दूसरे पर न पड़े। उपयुक्त ये रहेगा कि दो फसलों में से एक फसल दलहनी हो। डॉ. राजीव सिंह के मुताबिक गहरी जड़ वाली फसल के साथ उथली जड़ वाली फसल लगाना चाहिए। जैसे कपास के साथ मूंग या उड़द। दलहनी फसल के साथ अदलहनी फसल लगाना चाहिए। जैसे सोयाबीन के साथ मूंग अथवा उड़द के साथ मक्का या बाजरा लगाना चाहिए। अधिक पोषक तत्व लेने वाली फसल के साथ कम पोषक तत्व लेने वाली फसल लगाना चाहिए। इसी प्रकार मुख्य फसल और सहफसल पर लगने वाले रोगों और कीटों की रोकथाम भी की जा सकती है।

अब आपको intercropping खेती के फायदे बताते हैं

डॉ. राजीव सिंह के मुताबिक इंटरक्रॉपिंग से बरसात के दिनों में मिट्टी का कटाव रोकने में मदद मिलती है। परोक्ष रूप से दो या दो से अधिक फसल लेने से भूमि का क्षेत्रफल बढ़ जाता है और ये पद्धति अधिक या कम बारिश में फसलों की विफलता के खिलाफ एक बीमा के रूप में कार्य करती है। जिससे किसान जोखिम से बच जाते हैं, क्योंकि एक फसल के नष्ट हो जाने के बाद भी सहायक फसल से उपज मिल जाती है। वहीं फसलों में विविधता से रोग व कीट प्रकोप से फसल सुरक्षित रहती है।

डॉ. राजीव सिंह के मुताबिक ठीक इसी तरह देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने और करोड़ों किसानों को पैसे से मजबूत करने में गन्ने की खेती और चीनी व गुड़ उद्योगों का विशेष योगदान है। इससे देश के करोड़ों किसानों और मजदूरों को रोजगार मिल रहा है। लेकिन गन्ना किसानों को अपनी उपज का मूल्य लेने के लिए लम्बा इंतजार करना पड़ता है। कभी कभी भुगतान में चीनी मिलों की ओर से होने वाली देरी से भी समस्या का समाना पड़ता है। इसलिए गन्ने की खेती के साथ अतिरिक्त आय कमाने के लिए इंटर क्रॉपिंग पद्धति को अपनाना चाहिए।

डॉ. राजीव सिंह के मुताबिक इंटर क्रॉपिंग पद्धति से खेती करने में किसानों को प्रति एकड़ आमदनी में इजाफा होता है। साथ ही उन्होंने बताया कि अगर किसान बसंत काल में गन्ने की उन्नत तरीके खेती करता है, तो 12 महीने बाद उसे प्रति एकड़ 38 से 40 टन उपज से 55 से 60 हजार रूपये शुद्ध लाभ मिलता है। लेकिन अगर किसान बंसत काल में गन्ने में इंटरक्रॉप के रूप में मक्का की खेती करते हैं तो उसे तीन से चार महीने के भीतर प्रति एकड़ 80 हजार रुपये की अतिरिक्त शुद्ध आमदनी हो जाती है। वहीं अगर इंटर क्रॉप फ्रेचबीन की खेती करते हैं तो 65 हजार रुपये प्रति एकड़ की अतिरिक्त शुद्ध आमदनी होगी। यदि गन्ने के साथ उर्द, मूंग, और लोबिया की खेती करते हैं तो 35 से 40 हजार प्रति एकड़ की शुद्ध आमदनी होगी। वहीं किसान यदि बसंत कालीन गन्ने के साथ प्याज, लौकी, खीरा और भिंडी की इंटरक्रॉपिंग करते हैं तो, 40 से 45 हजार रूपये प्रति एकड़ अतिरिक्त आमदनी की जा सकती है।

डॉ. राजीव सिंह के मुताबिक गन्ने की बुवाई विधियों में कुंड विधि, समतल विधि, गड्ढा विधि और नाली विधि परिस्थितियों के हिसाब से विकसित की गई हैं। इसमें नाली विधि एवं गड्ढा विधि द्वारा बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती की जाती है। नाली विधि द्वारा गन्ने की बुवाई 30 सेंटीमीटर चौड़ी एवं 30 सेंटीमीटर गहरी नालियों में की जाती है। एक नाली में गन्ने की दो पंक्तियां रखी जाती हैंI वर्तमान में नई बुआई पद्धतियों में गन्ना पौध रोपण विधि बहुत उपयोगी पाई गयी है। इस तकनीक में पहले गन्ने की नर्सरी तैयार की जाती है इसके बाद तैयार नर्सरी पौध की मुख्य खेत में रोपाई की जाती है। डॉ सिंह का कहना है कि, यह विधि इंटरक्रॉपिंग फसल लेने के लिए अधिक उपयोगी पाई गयी हैI इस विधि में दो तरीकों से पौध रोपण किया जाता है I पहली विधि में लाइन से लाइन की दूरी पांच फीट और पौधे से पौधे की दूरी 2 फीट रखी जाती है साथ ही रोपाई के लिए 5000 पौध प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है। दूसरी विधि में लाइन से लाइन की दूरी 4 फीट और पौधे से पौधे की दूरी 1.5 फीट रखकर पौध रोपण करते हैं। इस तरीके से रोपण करने में 8000 पौध प्रति एकड़ जरूर पड़ती हैI इन लाइनों के बीच इंटरक्रॉपिंग वाली फसलों की बुवाई करने से किसानों को 12 महीने इंतजार करने की जगह तीन से चार महीनें के अंदर अतरिक्त आमदनी मिलना शुरू हो जाती है और साथ ही गन्ने की उपज भी बेहतर मिलती है।

डॉ. राजीव सिंह के मुताबिक गन्ने की बुवाई विधियों में कुंड विधि, समतल विधि, गड्ढा विधि और नाली विधि परिस्थितियों के हिसाब से विकसित की गई हैं। इसमें नाली विधि एवं गड्ढा विधि द्वारा बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती की जाती है। नाली विधि द्वारा गन्ने की बुवाई 30 सेंटीमीटर चौड़ी एवं 30 सेंटीमीटर गहरी नालियों में की जाती है। एक नाली में गन्ने की दो पंक्तियां रखी जाती हैंI वर्तमान में नई बुआई पद्धतियों में गन्ना पौध रोपण विधि बहुत उपयोगी पाई गयी है। इस तकनीक में पहले गन्ने की नर्सरी तैयार की जाती है इसके बाद तैयार नर्सरी पौध की मुख्य खेत में रोपाई की जाती है। डॉ सिंह का कहना है कि, यह विधि इंटरक्रॉपिंग फसल लेने के लिए अधिक उपयोगी पाई गयी हैI इस विधि में दो तरीकों से पौध रोपण किया जाता है I पहली विधि में लाइन से लाइन की दूरी पांच फीट और पौधे से पौधे की दूरी 2 फीट रखी जाती है साथ ही रोपाई के लिए 5000 पौध प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है। दूसरी विधि में लाइन से लाइन की दूरी 4 फीट और पौधे से पौधे की दूरी 1.5 फीट रखकर पौध रोपण करते हैं। इस तरीके से रोपण करने में 8000 पौध प्रति एकड़ जरूर पड़ती हैI इन लाइनों के बीच इंटरक्रॉपिंग वाली फसलों की बुवाई करने से किसानों को 12 महीने इंतजार करने की जगह तीन से चार महीनें के अंदर अतरिक्त आमदनी मिलना शुरू हो जाती है और साथ ही गन्ने की उपज भी बेहतर मिलती है।

डॉ. राजीव सिंह के मुताबिक बसंत कालीन गन्ने के साथ मूंग उड़द लोबिया या फ्रेचबीन के इंटरक्रॉपिंग करने से आय में बढ़ोत्तरी के साथ गन्ने की फसल को पोषक तत्व भी प्राप्त होते हैं। इन दलहनी फसलों की फली तोड़ने के बाद पौधों को हरी अवस्था में ही गन्ने की दो पंक्तियों के बीच पलट कर दबा देने से 12 से 15 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति एकड़ की बचत होती है। डॉ. राजीव सिंह के मुताबिक जहां गन्ने में इंटरक्रॉपिंग फसलों की खेती किसानों को देर से गन्ना मूल्य मिलने से आने वाली समस्याओं को दूर करने में मददगार है तो वहीं प्रति एकड़ इनकम में बढ़ोतरी करने में भी सहायक है । उन्होंने कहा कि, किसान गन्ने के साथ एक फसल लगा सकते हैं, जिससे गन्ना तैयार होने में लगने वाले समय के बीच अच्छी आमदनी होगी। आगे उन्होंने बताया कि बसंत कालीन गन्ने की फसल के बीच में इंटरक्राप के लिए मक्का, प्याज, फ्रेंच बीन, उड़द, मूंग की फसल के अलावा खीरा और ककड़ी जैसी सीधी उगाने वाली सब्जियां लगाई जा सकती हैं। इस तरह बिना फसल को नुकसान पहुंचाए 40 हजार से 50 हजार प्रति एकड़ तक की अतिरिक्त आमदनी ली जा सकती है।

आपको बता दें बहुत से क्षेत्रों में वर्षा और सिंचाई जल में कमी के कारण वर्ष में एक फसल ही ली जाती है, लेकिन समय के साथ सिंचाई की सुविधाओं में विकास होता चला गया। जिसके परिणम स्वरूप एक ही खेत से एक साल में तीन से चार फसलें उगाई जाने लगीं। जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ उनकी आवासीय मांगों को पूरा करने के लिए खेती योग्य भूमि पर भी अब आवास बनाए जाने लगे हैं। ऐसे में एक समय वह भी आ सकता है जब खेती योग्य जमीन काफी कम रह जाएगी। बड़ी आबादी के कारण खाद्य पदार्थों की मांग भी बढ़ जाएगी। ऐसे में किसानों को इंटर क्रॉपिंग पद्धति के तौर-तरीके अपनाने ही होंगे जिससे कि आपका खेत सोना उगले।