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समेकित कृषि प्रणाली से कैसे करें जीरा मसाले की खेती

मसालों में जीरे का अपना एक अहम स्थान है। कोई भी सब्जी, दाल या कोई अन्य डिश बनानी हो सभी में जीरे का इस्तेमाल होता है। जीरे के बिना सभी मसालों का स्वाद फीका सा लगता है। जीरे को भूनकर छाछ, दही आदि में डालकर पिया जाता है। बता दें जीरा न केवल खाने के स्वाद को बढ़ता है बल्कि ये हमारे स्वास्थ्य के लिए भी काफी फायदेमंद है। जीरे का पौधा दिखने में सौंफ की तरह होता है। संस्कृत में इसे जीरक कहा जाता है, जिसका अर्थ है, अन्न के जीर्ण होने में यानी पचने में सहायता करने वाला। ICAR पूसा नई दिल्ली के कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक यदि कुछ जानकारियों के साथ जीरे की खेती की जाए तो इसका बेहतर उत्पादन किसानों को मालामाल बना सकता है।

आपको बताते हैं कि जीरे की उन्नत खेती कैसे करें और इससे क्या लाभ होता है ?

ICAR पूसा नई दिल्ली के प्रधान कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह के मुताबिक देश का 80 फीसदी से अधिक जीरा गुजरात और राजस्थान में उगाया जाता है। राजस्थान में इसकी औसत पैदावार 380 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर जबकि गुजरात में 550 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है।

डॉ. राजीव कुमार सिंह के मुताबिक जीरा एक बेहतरीन एंटी-ऑक्सिडेंट के साथ यह शरीर की सूजन को कम करने और मांसपेशियों को आराम पहुचांने में कारगर है। इसमें फाइबर भी पाया जाता है और ये आयरन, कॉपर, कैल्शियम, पोटैशियम, मैगनीज, जिंक व मैगनीशियम जैसे मिनरल्स का अच्छा सोर्स भी है। इसमें विटामिन ई, ए, सी और बी-कॉम्प्लैक्स जैसे विटामिन भी खासी मात्रा में पाए जाते हैं। आयुर्वेद में भी जीरा बेहद उत्तम माना गया है।

डॉ. राजीव कुमार सिंह के मुताबिक जीरे की खेती करने का उपयुक्त समय नवंबर महीने के मध्य का होता है। जीरे की खेती की बुवाई 1 से 25 नवंबर के बीच कर देनी चाहिए। जीरे की बुवाई छिड़काव विधि के स्थान पर कल्टीवेटर से 30 सेंटीमीटर के अंतराल में पंक्तियां बनाकर करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से जीरे की फसल में सिंचाई करने और खरपतवार निकालने में आसानी होती है। जीरे की खेती के लिए शुष्क एवं साधारण ठंडी जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। जीरे की फसल के लिए वातावरण का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक व 10 डिग्री सेल्सियस से कम नहीं होना चाहिए, ऐसा होने पर जीरे के अंकुरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। अधिक पालाग्रस्त क्षेत्रों में जीरे की फसल अच्छी नहीं होती है।

आपको बता दें वैसे तो जीरे की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन रेतीली, चिकनी, बलुई और दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती है। जीरे की सिंचाई में फव्वारा तकनीक का इस्तेमाल करना सबसे अच्छा रहता है। इससे जीरे की फसल को आवश्यकतानुसार समान मात्रा में पानी मिल जाता है। दाना पकने के समय जीरे में सिंचाई नहीं करनी चाहिए ऐसा करने से बीज हल्का हो जाता है।

डॉ. राजीव कुमार सिंह के मुताबिक जीरे की खेती के लिए मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई तथा देशी हल या हैरो से दो या तीन उथली जुताई करके पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए। इसके बाद 5 से 8 फीट की क्यारी बनाएं। ध्यान रहे क्यारियां समान आकार की बनानी चाहिए जिससे बुवाई एवं सिंचाई करने में आसानी रहे। इसके बाद 2 किलो बीज प्रति बीघा के हिसाब से 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम नामक दवा से प्रति किलो बीज को उपचारित करके ही बुवाई करें। बुवाई हमेशा 30 सेमी दूरी से कतारों में करनी चाहिए। कतारों में बुवाई सीड ड्रिल से आसानी से की जा सकती है।

डॉ. राजीव कुमार के मुताबिक जीरे की खेती के लिए बुवाई के ठीक 2 से 3 सप्ताह पहले गोबर खाद को मिट्टी में मिलाना लाभदायक है। अगर खरीफ की फसल में 10-15 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डाली गई हो तो जीरे की फसल के लिए अतिरिक्त खाद की आवश्यकता नहीं पड़ती । वैसे आम तौर पर जीरे की खेती के लिए 30 किलो नाइट्रोजन 20 किलो फॉस्फोरस और 15 किलो पोटाश उर्वरक प्रति हेक्टेयर की दर से आवश्यकता पड़ती है। फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के पहले आखिरी जुलाई के समय मिट्टी में मिला देना चाहिए। शेष बचे नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के 30 से 35 दिन बाद सिंचाई के साथ देना चाहिए। बुवाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई और 8 से 10 दिन बाद दूसरी सिंचाई करनी चाहिए। इसके बाद आवश्यकतानुसार हल्की सिंचाई कर सकते हैं। ध्यान रहे कि जब दाना पक जाए तो सिंचाई नहीं करनी चाहिए ऐसा करने से बीज की पैदावार हल्की होती है।

डॉ. राजीव कुमार के मुताबिक जीरे के बेहतर उत्पादन के लिए फसल चक्र अपनाना बेहद जरूरी है। इसके लिए एक ही खेत में बार-बार जीरे की फसल नहीं बोनी चाहिए, इससे फसल में उखटा रोग की संभावना बढ़ जाती है। इससे बचने के लिए बाजरा-जीरा, मूंग-गेहूं जैसे तीन वर्षीय फसल चक्र को अपनाया जा सकता है। जीरे की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के बाद सिंचाई करने के दूसरे दिन पेंडिमिथेलीन 1.0 किलो प्रति हेक्टेयर का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर समान रूप से छिड़काव करना चाहिए और 20 दिन बाद जब फसल 25-30 दिन की हो जाये तो इसकी गुड़ाई कर देनी चाहिए। जब इसका बीज और पौधा भूरे रंग का हो जाए और फसल पूरी तरह से पक जाए तो तुरंत इसकी कटाई कर लेनी चाहिए। पौधों को अच्छी प्रकार से सुखाकर थ्रेसर से मड़ाई कर दाना अलग कर लेना चाहिए। दाने को अच्छी तरह सुखाकर साफ बोरों में इसका भंडारण करना चाहिए।

डॉ. राजीव कुमार के मुताबिक जीरे की औसत उपज से 7 से 8 क्विंटल बीज प्रति हेक्टयर प्राप्त किया जाता है। इसमें लगभग 30 से 35 हजार रुपए प्रति हेक्टयर का खर्च आता है। यदि 100 रुपए प्रति किलो भी जीरे के दाने का भाव मिले तो भी 40 से 45 हजार रुपए प्रति हेक्टयर का शुद्ध लाभ मिलता है। पूरी दुनिया की करीब 60 फीसदी मसाले की आपूर्ति भारत से ही होती है। देश में हर साल अनुमानित 12.50 लाख हेक्टेयर में मसालों की खेती होती है। जिससे करीब 10.5 लाख टन मसालों का उत्पादन होता है। इनमें अकेले जीरा और धनिया का करीब 10 लाख टन उत्पादन होता है।

डॉ. राजीव कुमार सिंह के मुताबिक कई प्रकार की मिट्टी और जलवायु होने के कारण देश में कुल 63 प्रकार के मसालों की खेती की जाती है। लेकिन इनमें से मुख्य तौर पर 21 मसालों का व्यावसायिक उत्पादन किया जाता है, जिनमें मिर्च, काली मिर्च, इलायची (छोटी और बड़ी), धनिया, जीरा, सौंफ, मेथी, हल्दी, अदरक, लहसुन, अजवाइन, सोया बीज, जायफल, लौंग, दालचीनी, इमली, केसर, वेनिला, करी पत्ता और पुदीना आदि प्रमुख हैं । मसालों में सबसे ज्यादा उत्पादन की बात करें तो लहसुन पहले स्थान पर वहीं मिर्च दूसरे स्थान पर अदरक तीसरे स्थान और हल्दी का उत्पादन चौथे नंबर पर होता है। लेकिन क्षेत्रफल के हिसाब से जीरे की पैदावार पहले स्थान पर है, उसके बाद मिर्च, धनिया, लहसुन आदि मसालों की खेती की जाती है।

आपको बता दें जीरा मसाला हमारे खाने में जान ही नहीं डालता, बल्कि इसकी खेती पौष्टिकता और औषधीय गुणों के साथ ही किसानों को समृद्ध भी बनाती है। हां इसकी खेती के लिए कृषि वैज्ञानिकों की सटीक जानकारी, इसकी देखभाल और सावधानियों की भी जरूरत होती है। साथ ही समय पर खाद और पानी देने के साथ बीमारियों पर भी पैनी नजर रखनी होती है। इससे कम क्षेत्रफल में अन्य फसलों के मुकाबले इसकी खेती से अधिक धन कमाया जा सकता है।