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आवारा मवेशियों की क्‍या समस्या है, कैसे हो निदान ?

नई दिल्‍ली. ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव पॉलिटिक्स एसोसिएशन इस बात से एकदम सहमत है कि उत्तर प्रदेश समेत देश के कई भागों में किसानों का एक बड़ा वर्ग आवारा मवेशियों से परेशान है. आरोप लगाए जाते हैं कि किसानों की इस समस्या के लिए वो व्यवस्था जिम्मेदार है जिसने मवेशियों को स्लॉटर हाउस भेजने पर प्रतिबंध लगाया है. लेकिन मवेशियों को स्लॉटर हाउस भेजना ही इस समस्या का समाधान कैसे हो सकता है.

क्योंकि दूध देने वाले मवेशियों में गाय और पूरे गोवंश का तो, ना केवल भारतीय ग्रामीण व्यवस्था से बल्कि हमारी जीवन शैली से गहरा नाता रहा है. इसलिए आवारा मवेशियों की समस्या से छुटकारा पाने के लिए हमें कोई और पुख्ता उपाय करना होगा. मवेशियों की हत्या ना हो, उनका लाभकारी इस्तेमाल हो इसके लिए नए रास्ते तलाशने होंगे.

भारतीय गाय का विकास वन्यजीव से नहीं हुआ

भारतीय नस्ल की गाय या गोवंश के बारे में ये दावा करना गलत नहीं होगा कि ये हमारी जानकारी में उपलब्ध एक मात्र प्राणी है जिसका कि वन्य जीव होने का कोई इतिहास नहीं मिलता.

आज हमारी नज़र में जितने भी प्राणी आते हैं उसमें हम मनुष्यों के अलावा कुता, बिल्ली, भैंस, गधा, घोड़ा, बकरी या ऊंट चाहे जिसे भी शामिल कर लें हर किसी का वन्य जीव होने का प्रमाण मौजूद है. इनमें से लगभग सभी आज भी वन्य जीव अवस्था में जंगल में पाए जाते हैं.

लेकिन भारतीय गाय ही एकमात्र प्राणी है जिसके बारे में ये नहीं कहा जा सकता कि अमुक वन्यजीव से इसका विकास हुआ है. जबकि जर्सी और ऐसी ही दूसरी नस्लों की गाय जिसे अंग्रेजी में COW कहते हैं उसकी मूल उत्पत्ति URUS नाम के जंगली जानवर से हुई है. यही वजह है कि इन विदेशी नस्लों की गायों को BOS TAURUS भी कहा जाता है.

जर्सी गाय से भारतीय गाय क्‍यों है बेहतर ?

जेनेटिकली मॉडिफाइड होने के कारण जर्सी गाय भारतीय नस्लों की गायों से दूध तो ज्यादा देती है. लेकिन उसके दूध में वो उपकारी तत्व नहीं होते जो देशी भारतीय गाय की दूध में होते हैं. यही वजह है कि विदेशों में पशु पालक दूध के अलावा अपनी जर्सी गाय का इस्तेमाल मीट उद्योग के तौर पर भी करते हैं. लेकिन उनकी देखादेखी करना ना तो हमारी गायों के साथ न्याय होगा और ना ही हमारी संस्कृति से मेल खाता है.