इस तकनीक का नाम है- RAS तकनीक यानी RECIRCULATORY AQUACULTURE SYSTEM । इस तकनीक में पारंपरिक विधि के बजाय नियंत्रित वातावरण में पानी का सीमित उपयोग कर इंडोर टैंकों में मछली पालन किया जाता है। इसका उपयोग करके बहुत कम जगह में मछली पालन करके 8 से 10 गुना ज्यादा मछली उत्पादन कर सकते हैं। इस तकनीक से केवल 1200 गज छोटी ज़मीन में 60 टन मछलियों का उत्पादन किया जा सकता है।
अब तक आपने खुले तालाबों में मछली पालन की कई तकनीक देखी होगी। लेकिन आज हम आपको एक ऐसी तकनीक के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी सहायता से आप मछली उत्पादन को तीस गुना तक बढ़ा सकते हैं। इस तकनीक का नाम है- RAS तकनीक यानी RECIRCULATORY AQUACULTURE SYSTEM । इस तकनीक में पारंपरिक विधि के बजाय नियंत्रित वातावरण में पानी का सीमित उपयोग कर इंडोर टैंकों में मछली पालन किया जाता है। इसका उपयोग करके बहुत कम जगह में मछली पालन करके 8 से 10 गुना ज्यादा मछली उत्पादन कर सकते हैं। इस तकनीक से केवल 1200 गज छोटी ज़मीन में 60 टन मछलियों का उत्पादन किया जा सकता है।
इस तकनीक में रिसर्कुलेशन मेथड का इस्तेमाल होता है, जिससे 30 गुना तक मछली प्रोडक्शन बढ़ाया जा सकता है। पहले परंपरागत तकनीक में प्रति क्यूबिक मीटर पानी में 2-3 किलो मछली का उत्पादन होता था। अब RAS तकनीक से प्रति क्यूबिक मीटर पानी में 67 किलो मछली का उत्पादन किया जा रहा है।
RAS तकनीक में मछलियों को आमतौर पर नियंत्रित वातावरण में इनडोर और आउटडोर टैंकों में पाला जाता है। इस तकनीक में कम पानी में हाई डेंसिटी तकनीक के साथ बहुत कम जगह की जरूरत होती है। पानी का बहाव निरंतर बनाए रखने के लिए पानी के आने-जाने की व्यवस्था की जाती है। RAS एक ऐसी तकनीक है जिसमें पानी को मैकेनिकल और बॉयोलोजिकल फिल्टर से बेकार और हानिकारक तत्व को हटाने के बाद दोबारा मछली पालन के लिए उपयोगी बनाकर इस्तेमाल किया जाता है। जिससे पानी की बर्बादी नहीं होती है, इससे 10 साल तक एक ही पानी का इस्तेमाल किया जा सकता है। RECIRCULATORY SYSTEM पानी को रिसाइकिल करके फिल्टर से साफ करता है। और फिर फिश कल्चर टैंक में पानी को वापस भेजता है। इस तकनीक का इस्तेमाल मछली की किसी भी प्रजाति को पालने के लिए किया जा सकता है। इस तकनीक का इस्तेमाल शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में किया जा सकता है जहां भूमि और पानी की कमी है।
रिसर्कुलेशन एक्वाकल्चर प्रोजेक्ट में टेंपरेचर कंट्रोलर लगा होता है, जो खुद तापमान नियंत्रित करता है। जिससे सर्दी और गर्मी का असर मछलियों पर नहीं पड़ता। पहले जब तालाबों में मछली पालन होता था, तो प्रवासी पक्षी भी मछलियों को खा जाते थे, इससे किसानों की आय पर फर्क पड़ता था, लेकिन इस शेड के अंदर ऐसी समस्याएं किसानों के सामने नहीं आती। तालाब में एयर रेटर से ऊपर से पानी डाला जाता है, जिससे तालाब के पानी का ऑक्सीजन मेंटेन रहता है, जिससे मछलियों को सांस लेने में कोई परेशानी नहीं होती है और इससे मछलियों का विकास भी अच्छा होता है। इस तकनीक में समय-समय पर तालाब के पानी को फिल्टर भी किया जाता है। पानी के पीएच मान पर नज़र रखने के लिए ख़ास तरह की स्ट्रिप का इस्तेमाल करते हैं, ताकि पानी की क्वालिटी मेंटेन रहे। तालाब में बीमारियों से मछलियों को बचाने के लिए दवाओं का इस्तेमाल भी किया जाता है।
अगर कोई किसान व्यावसायिक रूप से RAS तकनीक से मछली पालन करना चाहता है तो उसके लिए यह तकनीक काफी फायदेमंद है। इससे उच्च गुणवत्ता वाली मछली का उत्पादन होता है। इस तकनीक से परजीवी कीटों पर नियंत्रण, परिचालन लागत में कमी और जलवायु कारकों का कम प्रभाव होता है। प्रतिकुल मौसम में मछलियों को आसानी से पाला जा सकता है। किसी भी तरह से मछलियां बाहरी प्रदूषण का शिकार नहीं होती है। रिसर्कुलेटिंग सिस्टम में कई फिल्टर डिजाइन का उपयोग किया जाता है, लेकिन सभी फिल्टरेशन का एक ही लक्ष्य होता है कि, पानी से अपशिष्ट पदार्थ, अतिरिक्त पोषक तत्व और ठोस पदार्थ निकालना और मछलियों के लिए अच्छे पानी की गुणवत्ता प्रदान करना है। जिससे मछलियों का बेहतर तरीके से विकास हो सके।
इस तकनीक में मछलियों पर असर डालने वाले कई पैरामीटर्स को लगातार मॉनिटर किया जा सकता है। जैसे तापमान, ऑक्सीजन लेवल और अमोनिया जैसे फैक्टर्स की क्या स्थिति है इसके लिए मशीने होती है। RAS सिस्टम का प्रबंधन मछलियों के फ़ीड की गुणवत्ता, मात्रा, और फिल्टरेशन पर बहुत अधिक निर्भर करता है। इसके तहत किसान साल में दो कार्प ले सकते हैं। एक बार बीज डालने के 6 महीने बाद बाजार में मछलियां बेचने के लिए तैयार हो जाती हैं. इस तकनीक से सिबास, चितल, देसी मंगूर झिंगा, नाइल, तपेलिया जैसी प्रजातियों की पैदावार की जा सकती है।
इस तकनीक को ऑनलाइन जोड़ सकते हैं, और ज़रूरत के मुताबिक अपने फार्म की देखभाल कहीं से भी कर सकते है। मछलियों के भाव 100 से लेकर 700 रुपए प्रति किलों तक प्रजातियों के अनुसार होता है। मॉडर्न फिश फार्मिंग आऱएएस तकनीक से आप अपने पुराने मछली पालन को कई मायनों में आधुनिक बना सकते हैं और अपना मुनाफ़ा पहले की अपेक्षा कई गुना बढ़ा सकते हैं।
अगर इसकी लागत की बात करें तो 8 टैंक वाले RAS सिस्टम में 50 लाख, 6 टैंक वाले में 25 लाख और एक टैंक वाले में 7.5 लाख की लागत आती है। इसमें केंद्र सरकार और राज्य सरकार की ओर से सब्सिडी का भी प्रावधान है। जिसमें से 50 फीसदी सब्सिडी राशि केंद्र सरकार द्वारा और अलग अलग राज्यों में राज्य सरकार द्वारा दी जाती है। इसको किसान व्यक्तिगत, समूह और एफपीओ (FPO) के माध्यम से कर सकते हैं।
इस तरह आपने देखा कि यह तकनीक किसानों के लिए कितनी फायदेमंद है और आप भी इस तकनीक का इस्तेमाल कर अपना मुनाफा बढ़ा सकते हैं।