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स्वच्छ दूध का उत्पादन कैसे करें जिससे बेहतर लाभ और स्वास्थ्य मिले

हाल के दिनों में देखा गया है कि लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरुक हो रहे हैं। वे अच्छे स्वास्थ्य के लिए अच्छा खान-पान और बेहतर दिनचर्या पर ध्यान दे रहे हैं। किसी भी व्यक्ति के लिए आहार का सर्वोत्तम साधन दूध होता है, जो हर जगह और बहुत आसानी से उपलब्ध है। लेकिन हर कोई स्वच्छ दूध पीना चाहता है, इसलिए दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में काफी संभावनाएं बढ़ी है। जिससे दुग्ध उत्पादकों के लिए दुग्ध उत्पादन मुनाफे का सौदा साबित हो रहा है। आज हम जानेंगे कि दुग्ध उत्पादक किस तरह से स्वच्छ दूध का उत्पादन कर सकते हैं और कैसे ग्राहकों को स्वच्छ दूध उपलब्ध कराने के साथ-साथ बेहतर मुनाफा कमा सकते है।

डेयरी फार्मिंग में जितना महत्वपुर्ण दूध का उत्पादन होता है, उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण स्वच्छ दूध का उत्पादन होता है। एक तरफ दूध जहां मनुष्य के लिए सर्वोत्तम पेय पदार्थ तथा कैल्सियम और प्रोटीन का अच्छा स्त्रोत है, वहीं दूसरी ओर अस्वच्छ दूध कई किस्मों की बीमारियों का वाहक भी हो सकता है। अस्वच्छ दूध शीघ्रता से खराब होता है तथा बाजार में इसका उचित मूल्य भी नहीं मिलता। आखिर स्वच्छ दूध होता क्या है? यदि दूध में कोई हानिकारक जीवाणु, हानिकारक कैल्सियम, धूल के कण, गोबर, मक्खी आदि न हो तो उसे हम स्वच्छ दूध कहते हैं। स्वच्छ दूध का उत्पादन करने के लिए हमें कई महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान देना चाहिए। इनमें सबसे महत्वपुर्ण है पशु का स्वास्थ्य।

निरोग एवं स्वस्थ हो दुधारू पशु

स्वच्छ दूध उत्पादन के लिए दुधारू पशु का निरोग तथा स्वस्थ होना जरूरी है। पशुओं के कई रोग दूध के माध्यम से पशुओं से मनुष्य में फैलते हैं, इसलिए केवल निरोग गाय का उपयोग ही दूध उत्पादन के लिए करना चाहिए। अगर बहुत जरुरी हो तो रोगी पशु के दूध को अलग रखना चाहिए तथा इसे जीवाणु रहित बनाने के बाद ही उपयोग करना चाहिए। गाय का दूध दूहने से पहले उसकी एवं पशुशाला की अच्छी प्रकार से सफाई कर लेनी चाहिए।

यदि गाय को थनैला रोग की संभावना है तो प्रथम दूध (Fore Milk) की कुछ धारों का Strip Cup के माध्यम से जांच करें तथा ऐसे पशुओं का दूध आखिर में दूहें और उसे अलग रखें। सामान्य पशु से भी दुहाई के समय प्रत्येक थन से कम से कम दो-दो धारें अलग बर्तन में निकालें जिसे सामान्य दूध में न मिलाया जाए। इससे दूध में जीवाणुओं की संख्या में कमी आएगी।

स्वच्छ दूध के लिए पशु की नियमित सफाई (Cleaning of Animal):

गाय का दूध दुहने से कम से कम एक घंटा पहले ब्रुश करें। पिछले भाग को पानी से धोकर साफ करें। अयन पर यदि बाल हो तो उन्हें काट कर छोटा कर लें। अयन को धोकर साफ तौलिया से पोछें। दोहन से पहले अयन को कीटाणु नाशक घोल से पोंछ कर सूखा लें। पुंछ को पैरों के साथ बांध कर दुहाई करें, जिससे दूध के अधिक से अधिक स्वच्छ होने की संभावना बनी रहती है।

दुग्ध शाला की सफाई (Cleaning of Barn):

यह जरुरी हो जाता है कि दुग्ध शाला में प्रकाश तथा वायु की पूरी व्यवस्था हो। सीमेंट तथा कंक्रीट का बना फर्श अच्छा रहता है जिसे धोकर साफ रखा जा सकता है फर्श नाली की तरफ को उचित ढलान युक्त हो ताकि पानी न रुके तथा धोने और सुखाने में सुविधा रहे। दीवारों पर 2.5 से 3.0 मी. ऊंचाई तक सीमेंट का प्लास्टर करके चिकना करवा कर रखें ताकि धुलाई में आसानी रहे।

दुग्ध शाला को प्रतिदिन दो बार धोकर साफ करें। दुग्ध दुहने से पहले गोबर आदि हटा कर रोगाणुनाशक घोल से धुलाई करें। मक्खी-मच्छर आदि से छुटकारा पाने के लिए गोशाला में समय-समय पर DDT आदि का छिड़काव करते रहें। यदि दीवार चिकनी न हो तो उन पर सफेदी कराते रहें। दीवारों या छत पर जाले, धूल तथा गन्दगी न जमने दें। इस बात का खास ख्याल रखें कि दुग्धशाला में किसी प्रकार की कोई असामान्य गन्ध न हो।

दूध दुहने वाले की सफाई (Cleanliness of Milker):

भारत में पशुओं की कम दुग्ध उत्पादकता तथा प्रतिफार्म पशुओं की कम संख्या के कारण दूध दूहने में मशीनों का प्रयोग प्रचलित नहीं हुआ है । दूध दूहने का काम ग्वालों द्वारा कराया जाता है तथा ग्वालों की सफाई तथा उनकी आदतों का दूध की स्वच्छता पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। दूध दूहने में स्वस्थ एवं अच्छी आदतों के ग्वालों को ही लगायें। उनके कपड़े साफ, नाखून कटे हुए, सिर टोपी से ढका हुआ तथा काम शुरू करने से पहले हाथ रोगाणुनाशक घोल से धुले होने चाहिए। ग्वाले के लिए दूध दुहने के समय बातचीत करना, थूकना, पान खाना, सिगरेट पीना तथा छींकना दूध को अस्वच्छ कर सकता है।

वर्तन एवं उनकी सफाई (Milking Pail and their Cleaning):

दूध के प्रयोग में आने वाले बर्तन साफ होने चाहिए। बर्तन जंग रहित धातु से बने हों तो बहुत अच्छे हैं। स्वच्छ दूध के उत्पादन में बर्तनों की सफाई का बड़ा महत्व है। दूध के प्रयोग में आने वाले बर्तनों को प्रत्येक प्रयोग के बाद धोना जरुरी है।

दूध के बर्तनों को पहले बाहर और अंदर से ठण्डे पानी से, उसके बाद गर्म पानी से, फिर डिटरजेन्ट से, उसके बाद फिर गर्म पानी तथा ठंडे पानी से धोना चाहिए.. इन सबसे के बाद 2 मिनट तक बर्तन को भाप देकर सुखा लें। अगर भाप न मिले तो 5 मिनट तक बर्तन को उबलते पानी में या क्लोरीन के घोल में डुबोकर निकालें।

पशुआहार और उसके खिलाने की विधि (Feed and Feeding):

चारे में हानिकारक और तेज गन्ध युक्त खरपतवार नहीं होने चाहिए। भूसा या धूल युक्त चारा दूध निकालने के बाद ही खिलाएं। तीखे गंध युक्त भोज्य पदार्थ जैसे साइलेज आदि पशु को दुग्ध दोहन से कम से कम एक घंटा पहले या दोहन के बाद खाने को दें।

पानी और उसकी गुणवत्ता (Water and Its Quality):

दुग्ध शाला की सफाई में साफ और पर्याप्त जल जरुरी होता है। गायों को पिलाने तथा बर्तनों की सफाई में शुद्ध और स्वच्छ जल का प्रयोग करें। उपलब्ध जल स्वच्छ होने के साथ-साथ सुरक्षित भी होना चाहिए।

दूध दुहने का ढंग (Method of Milking):

दूध दूहने में पूर्ण हस्त विधि (Fisting) सर्वोत्तम है। चुटकी विधि (Stripping) तथा मुट्ठी में अंगूठा दबा कर (Knuckling) दूध दूहने की विधि पशु के लिए कष्टकारी होती है। जिनके प्रयोग में पशु को कष्ट होने के कारण उसका उत्पादन घटता है। पूर्व हस्त विधि में समस्त थन पर समान दबाव पडता है तथा पशु कष्ट की बजाय दूध निकलवाने में आराम महसूस करता है साथ ही ग्वालों को दूध दुहने के समय हाथों को सूखा रखना चाहिए।

अपने हाथों पर झाग या पानी न लगायें। हाथों को धोकर तथा पोंछकर दूध दुहे। दूध का दोहन शुरू करते समय प्रत्येक थन से पहली 3-4 धारें जमीन पर गिरा दे। क्योंकि इस दूध में जीवाणुओं की संख्या सबसे अधिक होती है।

दूध का भंडारण (Storage of Milk):

स्वच्छतापूर्वक निकाले गये दूध में जीवाणुओं की संख्या की वृद्धि को नियंत्रित रखने के लिए आवश्यक है कि दूध को निकालते ही उसे अवशीतन ताप) पर ठण्डा कर के रखें। ।

हेल्दी दूध (Pasteurization of Milk):

स्वच्छ दूध को उपयोग के लिए सुरक्षित बनाने के लिए उसका निरोगीकरण किया जाता है निरोगीकरण में दूध को निश्चित ताप क्रम पर निश्चित समय के लिए गर्म करते हैं। ताकि दूध में उपस्थित रोग नष्ट हो जायें। निरोगीकरण के तुरन्त बाद दूध को लगभग 4.5०C ताप पर ठण्डा करके रखें ताकि दूध में बचे हुए जीवाणुओं की वृद्धि कम से कम हो तथा वह खराब न हो। निरोगीकरण के बाद दूध का हाथ से स्पर्श न होने दें ।

दूध का वितरण (Disposal of Milk):

दूध को निरोगीकरण के बाद अधिक समय तक संग्रहित नहीं रखना चाहिए यथा शीघ्र दूध का वितरण उपभोक्ताओं में कर दें। देश में उत्पादक के पास दुग्ध शीतलन की सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसलिए यदि रखना पड़े तो दूध को उत्पादन के 3-4 घण्टे के बाद उबाल कर रखें ।

यदि दही जमाना हो तो उसी के अनुसार व्यवस्था करें। दूध के वितरण हेतु टोंटीयुक्त कैन या बोतल का प्रयोग करना सुरक्षित विधि है। गर्मी के मौसम में दूध को ठण्डा रखने के लिए बर्फ का प्रयोग करना उचित है।