देश के अधिकांश ग्रामीण और आदिवासी पिछड़े इलाकों में मछली बीजोत्पादन की व्यवस्था नहीं है। जिसके कारण मछली पालकों को मछली पालन के लिए काफी दूर-दराज से मछली के बीजों को खरीद कर लाना पड़ता है, इसकी वजह से मछली बीज के खरीदारी में लागत ज्यादा आती है, साथ ही मछली बीजों की मृत्यु होने का खतरा भी बना रहता है। ऐसे में अगर बेरोजगार ग्रामीण युवा एवं किसान मछली बीजोत्पादन का प्रशिक्षण ले कर इस व्यवसाय को अपने क्षेत्र में ही शुरू करें तो यह आमदनी का एक बेहतरीन ज़रिया हो सकता है। आइए एक विषय बिशेषज्ञ मछली बीज उत्पादन तकनीक के बारें में जानते हैं।
आज के वक्त में मछली पालन पूरी दुनिया में एक बड़ा व्यवसाय का रूप ले चुका है। भारत दुनिया में मछली उत्पादन के क्षेत्र में दूसरे स्थान पर आता है। मछली की बढ़ती मांग के चलते आज के वक्त में अपने देश में लाखों मछुआरों के अलावा अब बड़ी संख्या में पढ़े-लिखे युवा भी इस रोजगार से जुड़ कर लाभ कमा रहे हैं। इस समय हमारे देश में प्रति साल लगभग 95 लाख मिट्रिक टन से अधिक मछली का उत्पादन हो रहा है। इसमें मीठे जल में पाली जाने वाली मछलियां जो तालाब और पोखरों मे पाली जा रही भी शामिल हैं। इतने बडे पैमाने पर उत्पादन के लिए वाजिब है कि बड़ी मात्रा में मछली बीज यानी की स्पान की जरूरत पड़ेगी और इस लिए जरूरी है कि मछली पालन कर रहे लोगों को सही समय पर सही मछली बीज उनके इलाकों में उपलब्ध कराया जाए। मछली बीजों की हर समय जबरदस्त मांग रहती है, लेकिन इनकी आपूर्ति होने की स्थिति में इन बीजों के दाम और भी अधिक बढ़ जाते हैं। इस अवसर का लाभ उठाकर अपने इलाके में बेरोजगार ग्रामीण युवा और किसान मछली बीजोत्पादन का प्रशिक्षण ले कर इस व्यवसाय को अपने क्षेत्र में ही शुरू करें तो यह आमदनी का बेहतरीन ज़रिया हो सकता है।
मछलियां बारिश में नदी, तालाबों इत्यादि में प्रजनन करती हैं। इस दौरान इन जगहों पर मछलियों के लाखों अंडो से निषेचित होकर मछलियों के बच्चे बाहर निकल आते हैं, जिन्हें मत्स्य बीज कहते हैं। इन बीजों को आकार के हिसाब से स्पान, फ्राई औऱ फिंगरलिंग्स कहा जाता है। इन तालाबों और जलाशयों में केवल एक प्रजाति की मछलियों के बीज नहीं होते हैं बल्कि कई प्रजातियों के मछलियों के बीज होते हैं, जिनका संग्रहण करना खतरों से भरा होता है क्योंकि इनके साथ परभक्षी मछलियों के बीज की संभावना ज्यादा रहती है। इसलिए पालने वाली मछलियों के शुद्ध बीज प्राप्त करने का एक तरीका मत्स्य हैचरी है। आज के वक्त में मछली पालक मत्स्य हैचरी के मछली बीजों पर अधिक भरोसा करते हैं।
VO- दरअसल मत्स्य हैचरी में वयस्क नर और मादा मछलियों को उत्प्रेरित कर प्रजनन करवाया जाता है। इसके लिए स्थाई टैंक में कृत्रिम रुप से बारिश कराते हैं। प्रजनक मछलियों को निश्चित मात्रा में हार्मोन्स के इंजेक्शन देकर इन्हें प्रजनन हेतु जल्दी से प्रेरित कर देते हैं। ये हार्मोन रसायन बाजार में हर जगह उपलब्ध हो जाते हैं। इससे इन मछलियों में निषेचन प्रकिया जल्दी से हो जाती है। यह प्रकिया प्रजनन तालाब में रखे मच्छरदानी के कपड़े से निर्मित आयताकार बक्सा जिसे हापा कहते हैं उसमें भी कराई जाती है।
बड़ी आकार की मछलियों की प्रजाति की बात की जाए तो इनमें भारतीय मेजर क्रॉप रोहू मादा है, जिसका वजन 1 किलो होता है। प्रजनन करने के बाद उसकी 1 लाख अंडे देने की क्षमता होती है। हैचरियों की बात करें तो इसमें सीमेंट और कंक्रीट के 7 मीटर व्यास परिधि के टैंक बनाए जाते हैं इससे जोड़कर दो छोटे व्यास से 2 टैंक बनाए जाते हैं, छोटे टैंक के अंदर पाइप की गोल आकार होने के साथ उसमे 12 डक माउथ आकार खुले होते हैं जो पानी को लगातार घुमाते रहते हैं। जिससे कि अंडे इसी में रन करते रहें, टैंक में पानी चलता रहता है बच्चे को अंडे से बाहर आने में 36 घंटे लगते हैं। इन मछली के बच्चों को 72 घंटे तक आहार की जरुरत नहीं पड़ती है, इसी में एक में महीना जाली लगी रहती है । जिससे अंडे से बच्चे बने तो इसमें तैयार हो सके।
दरअसल स्पान जिसे जीरा कहते हैं उसका भरण-पोषण नर्सरी में करते हैं। मछली के बच्चे 5 MM के अंडे से निकलते हैं, 3 से 4 हफ्ते नर्सरी में रहने के बाद इनका आकार 20 से 25 mm तक हो जाता है। इनको फ्राई यानि पौना भी कहते है, इसके बाद यह 3 माह तक बड़े पौंड में रखे जाते हैं जहां ये 75 से 100 MM साइज के तैयार हो जाते हैं। तब इनको तालाब में डाल दिया जाता है। इनको फिंगरलिंग यानी अंगुलिकाएं कहा जाता है। अच्छी प्रजाति के गुणवत्ता वाले मछली बीज के लिए हैचरी बनवाई जाती है। इस तरह की हैचरीयों से साल में लगभग 3 करोड़ मछली के बीज यानि फ्राई तैयार किए जा सकते हैं।
इससे अच्छी प्रजाति के मछली जैसे रेहू, कतला , मृगल, ग्रास कार्प ,सिल्वर कार्प एवं कॉमन कार्प मछलियों के बीज उत्पादन होता है। इसके पौना बीज यानी फ्राई आकार मछली बीज लगभग 120 रुपये प्रति हजार बीज की दर से बाजार में बेचे जाते हैं। इस प्रकार कुल 36 लाख रुपए का मछली बीज हैचरी मे हर साल तैयार होता है, और मछली बीज उत्पादन पर लगने वाले खर्च की बात की जाए तो 50% से 60% इसके उत्पादन पर खर्च हो जाता है और जो बचता हैं वह शुद्ध मुनाफा हो जाता है।
मछली बीज उत्पादन करना इतना सरल भी नहीं कि इसे हर कोई कर ले, इसमें जोखिम भी हो सकता है। इसलिए जो व्यक्ति मछली बीज उत्पादन का कार्य करना चाहता है, उस व्यक्ति को पूरी जानकारी होनी जरूरी है। इसके लिए राजकीय मतस्य विभाग ,कृषि विश्वविद्यालयों, मात्सिकीय महाविद्यालयों, मात्सिकीय शोध संस्थानों व आईसीएआर के संस्थानो में प्रशिक्षण लिया जा सकता है ।
VO- मछलियों के प्रजनन का समय जून से सिंतबर तक रहता है। जुलाई से अगस्त महीना प्रजनन के लिए सबसे अच्छा होता है। ऐसे में किसान इस तकनीक को लगाकर अच्छी कमाई कर सकता है वहीं दूसरी तरफ मछली व्यवसाय से निरन्तर लाभ बना रहे इसके लिए जरूरी है कि अच्छी प्रजाति के मछलियों के बीज गांव स्तर पर उपलब्ध हो। इसके लिए बेहद जरूरी है कि मछली पालन की नई तकनीकों को आप अपनाए।
Vइस तरह से मछली पालन की नई तकनीकों को अपनाकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत की जा सकती है, साथ ही ग्रामीण युवाओं और बेरोजगारों को रोजगार के अवसर भी मिलते हैं।