बदलते परिवेश में देश के किसानों का झुकाव खेती की तरफ ज्यादा हो रहा है। खेती में अधिक पैसे लागने के बावजूद कई किसानों को अच्छा मुनाफा नहीं मिल पाता है। इसलिए खेतीबाड़ी में उन्नत तकनीक अपनाना समय की मांग है। लिहाजा किसान अब गेहूं, मक्का की पारंपरिक खेती को छोड़कर नकदी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं। उन्हीं फसलों में एक है केला, केला आम के बाद दूसरी महत्वपूर्ण फल की फसल है। केला सभी वर्गों के लोगों का पसंदीदा फल है। इसके स्वाद, पोषक तत्व और औषधीय गुणों के चलते ये लगभग पूरे साल बाजार में उपलब्ध रहता है। कम लागत कम समय के साथ कम मेनहत के बावजूद केले की खेती 5 साल में एक हेक्टेयर में लाखों का मुनाफा देती है।
केला देश का प्राचीनतम स्वादिष्ट पौष्टिक पाचक और लोकप्रिय फल है। इसकी खेती मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, बिहार और असम में बड़े पैमाने पर की जाती है, वहीं उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में भी इसकी खेती की जाती है। केला पकने के बाद फल की रूप में खाने और कच्चे में सब्जी बनाने के आलावा आटा बनाने के साथ चिप्स बनाने के काम आता है। केले का पौधा एक बार लगाने के बाद 5 साल तक फल देता है। केला नकदी फसल है इसमें किसानों को तुरंत पैसा मिलता है।
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक वैसे तो केला लगाने का सबसे अच्छा समय जून-जुलाई है। लेकिन कुछ किसान इसे अगस्त तक लगाते हैं और इसकी खेती जनवरी-फरवरी के आसपास भी की जाती है। ये फसल लगभग 12-14 महीनों में पूरी तरह तैयार हो जाती है। केले की खेती के लिए गहरी गाद वाली चिकनी दोमट और उच्च दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। केले की अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी का पीएच मान 6 से 7.5 होना चाहिए। और जिस मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश जैसे पोषक तत्वों की अच्छी मात्रा हो उसमें केले की अच्छी पैदावार होती है। इसकी खेती कैल्शियम युक्त रेतीली मिट्टी में नहीं करनी चाहिए।
आपको बता दें केले की खेती बीजों से नहीं, बल्कि पौधों से की जाती है। केले के पौधे आपको कई जगह मिल जाएंगे। आप इसके पौधे नर्सरी से प्राप्त कर सकते हैं। राज्य सरकारें भी केले की खेती को बढ़ावा देने के लिए पौधे उपलब्ध कराती हैं, इसलिए जिले के कृषि विभाग से संपर्क कर केले के पौधे ले सकते हैं। एक केले का पौधा आपको तकरीबन 15-20 रुपये के बीच में मिल जाता है। केले की खेती में प्रति एकड़ तकरीबन 2 लाख तक की लागत आती है जबकि 1 एकड़ की केले की पैदावार 4 लाख तक में बिकती है। इस तरह किसान 5 साल तक दोगुना मुनाफा कमा सकते हैं। यदि केले के पौधों को पानी देने के लिए किसान ड्रिप सिस्टम लगाते हैं तो उन्हें सरकारी स्तर पर करीब 70 हजार रुपए का अनुदान मिलता है। इस तरह एक हेक्टेयर में किसान को महज एक लाख रुपए ही जेब से लगाने होते हैं। एक हेक्टेयर की खेती में करीब 3000 केले के पौधे रोपे जाते हैं।
केले की खेती के लिए खेत की तैयारी विशेष रूप से करनी चाहिए। केले की खेती के लिए तलवारनुमा पत्तियों का रोपण गड्ढों या नालियों में किया जाता है। बता दें गड्ढे केले की किस्मों के आधार पर बनाए जाते हैं, जैसे हरी छाल के लिए कतार से कतार की दूरी 1.8 मीटर पौधे से पौधे की दूरी 1.5 मीटर रखते हैं, और सब्जियों के लिए कतार से कतार की दूरी 2 से 3 मीटर की दूरी पर 50 सेंटीमीटर लंबे 50 सेंटीमीटर चौड़े 50 सेंटीमीटर गहरे गड्ढे मई के माह में खोदकर छोड़ दिये जाते हैं। और मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की जुताई करवा लेनी चाहिए। उसके बाद खेत को 15 से 20 दिन के लिए खुला छोड़ देना चाहिए। जिससे कि खेत में धूप आदि अच्छी तरह लग जाए और मिट्टी में पाए जाने वाले कीट-पतंगे धूप से मर जाएं। उसके बाद 1 या 2 बार खेत की जुताई कल्टीवेटर या रोटावेटर से करवानी चाहिए। उसके बाद पाटा लगवा करके खेत को समतल और मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए। खेत की अंतिम जुताई के समय तैयार गड्ढों में 20 से 25 किलो ग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद या 3 मिली वर्मी कम्पोट को 5 लीटर पानी में घोल बनाकर आवश्यक्तानुसार ऊपर की मिट्टी के साथ मिलकर गड्ढों में भर देते हैं याद रहे कि गड्ढों को भरते समय मिट्टी को अच्छी तरह से दबा देना चाहिए।
केले की खेती के लिए दो प्रकार की उन्नतशील प्रजातियां पाई जाती हैं। फल खाने वाली किस्मों में बसराई, ड्वार्फ, हरी छाल, सालभोग, अल्पान, रोवस्ट तथा पुवन इत्यादि प्रजातियां हैं और दूसरा सब्जी बनाने वाली किस्मों में कोठिया, बत्तीसा, मुनथन और कैम्पिरगंज शामिल हैं।
केला पानी प्रिय फसल है। लेकिन खेत में भरा पानी इसके अनुकूल नहीं है। केले के रोपण के तुरंत बाद पानी देना चाहिए, सर्दी और गर्मी में पानी की कमी नहीं होनी चाहिए। सर्दियों में 10 से 12 दिन के अंतराल पर और गर्मियों में 8 से 10 दिन के अंतराल पर पानी देना चाहिए। केले के खेत में प्रचुर नमी बनी रहनी चाहिए, इसलिए केले के थाले में पुवाल अथवा गन्ने की पत्ती की 8 से 10 सेंमीटर मोटी पर्त बिछा देनी चाहिए। ऐसा करने से सिंचाई कम करनी पड़ती है और खरपतवार भी कम या नहीं उगती है साथ ही भूमि की उर्वरता शक्ति और उपज भी बढ़ जाती है तथा फूल और फल एक साथ आ जाते हैं। पौधे रोपने के 11 से 12 महीनों बाद ही केले की तुड़ाई शुरू हो जाती है। इस दौरान इस बात पर विशेष ध्यान दें कि लोकल मार्केट के लिए केले के पूरी तरह पकने के बाद ही तुड़ाई करना चाहिए। वहीं दूर की मंडियों में ले जाने के लिए केले की तुड़ाई उस समय करें जब केला 75-80 फीसदी तक पका हो।
आपको बता दें कि देश में केले की खेती लगभग 4.9 लाख हेक्टेयर में की जाती है, जिससे 180 लाख टन केले का उत्पादन होता है। केले से कई तरह के उत्पाद जैसे चिप्स, केला प्यूरी, जैम, जैली, जूस आदि बनाये जाते हैं। केले के फाइबर से बैग, बर्तन और वॉल हैंगर जैसे उत्पाद बनाये जाते हैं। केला उत्पादन में भारत पहले स्थान पर और फलों के क्षेत्र में तीसरे नंबर पर है और सबसे आसान, सबसे कम कीमत और सबसे कम मेहनत की फसल केले की है इसलिए केले की खेती से आपको काफी मुनाफा हो सकता है।