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समेकित कृषि प्रणाली से सब्जियों की करें खेती

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integrated farming यानी समेकित कृषि प्रणाली प्रबन्धन एक ऐसा विषय है जो किसानों की आर्थिक दशा सुधार सकता है लेकिन ये आसानी से किसानों की समझ में नहीं आता। जाने-अनजाने कृषि कार्य करते समय सदुपयोग करने योग्य अनेकों स्रोत्र व्यर्थ चले जाते हैं। सच्चाई ये है कि उचित समेकित कृषि प्रणाली प्रबंधन के माध्यम से किसानों की आर्थिक दशा में बदलाव आयेगा इसलिए समेकित कृषि प्रणाली प्रबंधन क्यों आज के समय की मांग है इसको पहले जानिए आज के बदलते परिवेश में परंपरागत खेती कई प्रकार की समस्याओं से जूझ रही है। एक तरफ जहां किसान कर्ज के बोझ तले दबे जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर रासायनिक खेती को जलवायु प्रदूषण और मनुष्य के स्वास्थ्य को प्रभावित करने का दोषी भी माना जा रहा है। यही कारण है कि कई किसान खेती छोड़कर दूसरे व्यवसायों की ओर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, बावजूद इसके कुछ ऐसे भी किसान हैं जो ICAR पूसा नई दिल्ली के प्रधान कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह के बताये गये आधुनिक तरीके से खेती से जुड़ी समस्याओं का स्थाई समाधान निकालने का प्रयास कर रहे हैं।

डॉ. राजीव कुमार सिंह का कहना है कि इस समय देश में 86 फीसदी से अधिक सीमांत और छोटे किसान हैं, इनके विकास के फलस्वरूप ही देश एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है। आज किसान गिनी-चुनी और अधिक लाभ देने वाली फसलों को ही उगातें हैं। बाकी अन्य सभी खाने की वस्तुओं के लिए साल भर स्थानीय बाजार पर निर्भर रहते हैं। इतना ही नहीं, साल के 4-5 महीने यानी अक्टूबर से जनवरी तक पशुओं के लिए हरा चारा भी उपलब्ध नहीं हो पाता है। नतीजतन दुग्ध उत्पादन के लिए पाले गए पशुओं को ज्यादातर समय सूखे भूसे, कड़वी और अदलहनी चारे पर निर्भर रहना पड़ता है। पशुओं की गर्भादान प्रक्रिया और बीमारियों पर अक्सर कम ध्यान दिया जा रहा है। फल उत्पादन भी अधिकतर मझोले या बड़े किसानों के फार्म पर किया जाता है। और तो और ठेकाप्रथा के कारण उनकी देखभाल भी ठीक ढंग से नहीं की जाती है। आम, अमरूद केला और अन्य फलों की बागवानी भी बिना किसी वैज्ञानिक सलाह के की जा रही हैं। सालभर फूलवाली फसलों के अभाव और बीमारियों के अधिक प्रकोप के चलते मधुमक्खी पालन और बागवानी करने वाले किसान और व्यापारी खेती तक ही सीमित होकर रह गए हैं। इसी प्रकार मछली पालन भी कुछ बड़े किसान और व्यापारियों का व्यवसाय बनकर रह गया है।

डॉ. राजीव कुमार सिंह का कहना है कि देश की 72.2 फीसदी आबादी गांवों में रहती है। इनमें से 65 फीसदी आबादी 35 साल से कम उम्र वाली है। इसका साफ मतलब है कि गांव में प्रचुर मात्रा में श्रम शक्ति मौजूद है। एक अनुमान के मुताबिक जिस तरह देश की आबादी तेजी से बढ़ रही है उसके मुताबिक 2025 तक देश की जनसंख्या एक अरब 46 करोड़ और 2060 तक यह आबादी एक अरब 70 करोड़ हो जायेगी। वर्तमान में भारत को 343 मिलियन टन अनाज, 171 मिलियन टन दूध, 168 मिलियन टन सब्जी, 81 मिलियन टन फल, 22 मिलियन टन चीनी, 13 मिलियन टन खाद्य तेल और 27 मिलियन टन मांस, मछली-अंडा की घरेलू आवश्यकता पड़ रही है। जनसंख्या वृद्धि की यदि यही रफ्तार रही तो 2050 तक देश को सालाना 2.6 मिलियन टन धान, 2.2 मिलियन टन गेहूं, 1.6 मिलियन टन दलहन, 4.2 मिलियन टन फल, 2.5 मिलियन टन सब्जी, 7.8 मिलियन टन दूध, 0.6 मिलियन टन मछली और 0.4 मिलियन टन मांस-अंडा की आवश्यकता पड़ेगी। लेकिन इसकी पूर्ति के लिये देश में औसतन खेतीहर भूमि सिकुड़ती जा रही है। बात करें साल 1970-71 की तो किसानों के पास औसतन खेतीहर भूमि 2.30 हेक्टेयर थी जो अब घट कर 1.11 हेक्टेयर से भी कम रह गई है। और तो और फसल उत्पादन में लागत के अनुपात में कृषि उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिल पाने की वजह से किसानों की आर्थिक दशा भी लगातार खराब होती जा रही है। लिहाजा जब तक किसानों की समस्याओं को ध्यान में रख कर कृषि वैज्ञानिक ऐसा कोई मॉडल विकसित नहीं कर लेते जिससे कि किसानों की आय में बढ़ोत्तरी हो, विशेषकर सीमांत और छोटे किसानों का विकास संभव हो सके तब तक किसानों को समेकित कृषि प्रणाली प्रंबधन को अपना ही होगा।

अब जानिए समेकित कृषि प्रणाली प्रबंधन से खेती करने से क्या लाभ होगा

डॉ. राजीव कुमार सिंह का कहना है कि इस प्रणाली के अंतर्गत किसान अपनी भूमि के 1/10 भाग पर तालाब या ट्रेंच बनाकर वर्षा जल संग्रहित कर सकते हैं। इस संचित जल में मछली तथा बत्तख पालन के साथ-साथ इसे सिंचाई के लिए साल भर इस्तेमाल किया जा सकता है। मछली पालन के तहत तालाब में छ: तरह की मछलियों रोहू, कतला, मृगाल, कामन कार्प, स्लिवर कार्य तथा ग्रास कार्य को पाला जा सकता है। ये मछलियां तालाब के पानी में विभिन्न स्तर पर रहती हैं। इस तरह तालाब में संग्रहित जल का भरपूर दोहन करते हुए मछलियों का उच्च उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। साधारणतया एक हेक्टेयर तालाब के लिए 6 से 7 हजार जीरा जिनकी लम्बाई 3-4 इंच हो तालाब में डाला जाता है। बत्तख के साथ मछली उत्पादन करने पर 8-10 इंच की 3 से 4 हजार जीरा तालाब में डाला जाता है ताकि बत्तख उन्हें खा न सकें। समन्वित कृषि प्रणाली के अन्य उद्यम जैसे मवेशी, सूकर, मुर्गी या बत्तख पालन द्वारा उनके परित्यक्त मल-मूत्र एवं अपशिष्ट पदार्थों को तालाब में निष्कासित किया जाता है जिससे मछलियों के लिए समुचित प्राकृतिक भोजन उपलब्ध हो जाता है। इस व्यवस्था में मछली के लिए अलग से पूरक आहार की आवश्यकता नहीं होती। बत्तख के साथ मत्स्य उत्पादन करने पर बत्तखों द्वारा तालाब में विचरण करने से पानी में जो उछाल होता है उससे वायुमंडल का ऑक्सीजन पानी में जाता है जो कि मछलियों के लिए जीवनदायी है, क्योंकि पानी में ऑक्सीजन की कमी होने पर मछलियां मर सकती हैं। तालाब में मछली के साथ बत्तख का उत्पादन करने पर बत्तख उन कीट-पतंगों को जो मछलियों के लिए हानिकारक होते हैं उनको खाती रहती हैं और मछलियों को हानिकारक रोगों से बचाती हैं। इन कीट-पतंगों को खाने से बत्तखों की भी 18 फीसदी तक प्रोटीन की जरूरत पूरी हो जाती है।

हमारे देश के कई भागों में कई मौसमों में उगाई जाने वाली मुख्य फसलों की उपज या तो स्थिर हो गई है या घट रही है। इसलिए खद्यान्न सुरक्षा को बनाये रखने के लिए समेकित कृषि प्रणाली ही सर्वात्तम उपाय है जिसमें अवषिष्ट पदार्थों यानी बेकार पदार्थों को पुनः चक्रण करके संसाधनों का संरक्षण किया जा सकता है।