पशुपालन पहले से ही किसानों के लिए अतिरिक्त आमदनी का एक अच्छा स्त्रोत रहा है। लेकिन किसानों के बीच जागरूकता की कमी के कारण वे अब तक इसे मुख्य व्यवसाय के रूप में नहीं अपना पा रहे हैं। इसी वजह से वे अब तक इस व्यवसाय से बढ़िया मुनाफा नहीं कमा पा रहे थे। लेकिन हाल के दिनों में सरकार ने पशुपालकों को प्रोत्साहित करने के लिए कई महत्वाकांक्षी योजनाओं को लॉन्च किया है।
समय के साथ बढ़ती संचार व्यवस्था से किसानों के लिए काफी चीजें आसान हो गई हैं... इसलिए अब गांव के लोग भी खेती के अलावा पशुपालन को धीरे-धीरे अपना रहे हैं जो उनके लिए फायदेमंद विकल्प के रुप में निकल कर सामने आया है। हाल के दिनों में देखा गया है कि पशुपालन के व्यवसाय को अपनाने वाले किसानों की संख्या काफी तेजी से बढ़ी है।
किसानों के लिए पशुपालन पहले से ही एक बेहतर विकल्प रहा है, लेकिन किसानों के बीच जागरूकता की कमी की वजह से इस व्यवसाय से वह बढ़िया मुनाफा नहीं कमा पा रहे थे। लेकिन इधर कुछ सालों में सरकार ने पशुपालकों को प्रोत्साहित करते हुए कई योजनाओं को लॉन्च किया है। इसके माध्यम से पशुपालक अच्छा-खासा मुनाफा अर्जित कर रहे हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में डेयरी फार्मिंग के व्यवसाय को बढ़ावा देने और इसमें स्वरोजगार के अवसर पैदा करने के लिए पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन विभाग ने साल 2005-06 में नाबार्ड के अंतर्गत "डेयरी और पोल्ट्री के लिए उद्यम पूंजी योजना" नामक एक पायलट योजना शुरू की थी। बाद में साल 2010 में इसका नाम 'डेयरी उद्यमिता विकास योजना' कर दिया गया था।
नाबार्ड की इस योजना के लिए किसान, व्यक्तिगत उद्यमी, गैर सरकारी संगठन और कंपनियां आदि आवेदन कर सकती हैं। इसके अलावा डेयरी सहकारी समितियां, दुग्ध संघ भी इस योजना का लाभ उठा सकते हैं। योजना के तहत एक परिवार के एक से अधिक सदस्यों की सहायता की जा सकती है बशर्ते वे अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग बुनियादी ढांचे के साथ अलग-अलग इकाइयां स्थापित करें। ऐसे दो डेयरी फार्मों की सीमाओं के बीच की दूरी कम से कम 500 मीटर जरूर होनी चाहिए।
नाबार्ड की ओर से परियोजना लागत का 25 प्रतिशत (एसटी/एससी किसानों के लिए 33.33 प्रतिशत) सब्सिडी के तौर पर दिया जाता है। इस योजना के बारे में अधिक जानकारी के लिए पशुपालक स्टार्टअप इंडिया और नाबार्ड की अधिकारिक वेबसाइट पर विजिट कर सकते हैं।