धान उत्पादक देशों में भारत भले ही पूरी दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। लेकिन प्रति हेक्टेयर धान की फसल के औसत उत्पादन में बहुत पीछे है। इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि देश में परंपरागत तरीके से ही धान की खेती की जा रही है। और तो और धान की फसल में कीट लगने से फसल को भारी नुकसान हो रहा है। धान की फसल में कीट और रोगों पर कैसे नियंत्रण पा सकते हैं। इसके लिए हम आपको कृषि वैज्ञानिकों की राय लेकर कुछ सरल उपाय बता रहे हैं जिससे कि आप कम समय और कम लागत में धान की बंपर पैदावार पा सकते हैं।
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक खरीफ के मौसम में धान की फसल के लिए बिचड़ा तैयार करने का ये सही समय है। और इस समय धान की फसल पर कई तरह के कीटों और रोगों का प्रकोप रहता है। जिसकी वजह से फसल को भारी नुकसान होता है और पैदावार कम होती है। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक यदि किसान धान की फसल में कीटों और रोगों का सही से प्रबंधन करें तो फसल से अधिक पैदावार ले सकते हैं। इसके लिए धान की फसल के उत्पान को बढ़ाने के लिए किसानों को जमीन तैयार करने से लेकर रोपाई और कटाई तक छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देने की जरूरत है।
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक धान की फसल को मुख्यतः चार तरह के सूक्ष्म जीव जैसे कवक, जीवाणु, वायरस और नेमाटोड नुकसान पहुंचाते हैं और धान की फसल को कई प्रकार स क्षति पहुंचाने वाले कीट जैसे तना छेदक, गुलाबी तना छेदक, पत्ती लपेटक, धान का फूदका और गंधीबग काफी नुकसान पहुंचाते हैं वहीं धान की फसल में धान का झोंका, भूरा धब्बा, शीथ ब्लाइट, आभासी कंड और जिंक की कमी आदि की समस्या प्रमुख हैं और ऐसे में धान की फसल में कीट और रोगों का उचित प्रबंधन करना बेहद जरूरी है और इसके लिए किसानों को कृषि विशेषज्ञों से राय लेकर कीट-रोगों का उपचार करना चाहिए।
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक धान की फसल में तना छेदक कीट फसल को काफी नुकसान पहुंचाते हैं। दरअसल ये सबसे पहले अंडे से निकलने के बाद कलिकाओं की पत्तियों में छेदकर अन्दर घुस जाते हैं और अन्दर ही अन्दर तने को खाते हुए गांठ तक चले जाते हैं। पौधों की बढ़वार के समय में प्रकोप होने पर बालियां नहीं निकलती हैं। बाली वाली अवस्था में प्रकोप होने पर बालियां सूखकर सफेद हो जाती हैं। और इसके चलते पौधों में दाने नहीं बनते हैं इसके लिए किसानों को फसल की कटाई जमीन की सतह से करनी चाहिए और ठूठों को एकत्रित कर जला देना चाहिए। जिंक सल्फेट 100 ग्राम के साथ 50 ग्राम बुझा हुआ चूना प्रति नाली की दर से 15 से 20 लीटर पानी में घोल बनाकर इसका छिड़काव करना चाहिए और पौध रोपाई के समय पौधों के ऊपरी भाग की पत्तियों को थोड़ा सा काटकर रोपाई करनी चाहिए जिससे कि इसके अंडे नष्ट हो जाते हैं। इतना ही नहीं धतूरा के पत्ते नीम के पत्ते और तम्बाकू को 20 लीटर पानी में उबालें और जब ये पानी 4 से 5 लीटर रह जाए तो ठंडा करके 10 लीटर गौमूत्र में मिलाकर इसका छिड़काव करने से इसका प्रकोप खत्म हो जाता है।
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक पत्ती लपेटक कीट धान की फसल को काफी नुकसान पहुंचाते हैं। दरअसल ये पत्ती लपेटक कीट मादा कीट धान की पत्तियों के शिराओं के पास समूह में अंडे देते हैं और इन अण्डों से छह से आठ दिनों में सूड़ियां बाहर निकलती हैं और ये सूड़ियां पहले मुलायम पत्तियों को खाती हैं और बाद में अपनी लार से रेशमी धागा बनाकर पत्ती को किनारों से मोड़ देती हैं और अन्दर ही अन्दर खुरच कर खाती हैं। इसकी रोकथाम के लिए 560 मिलीलीटर मोनोसिल 36 SL या 20 मिलीलीटर फेम 480 SC या 170 ग्राम मोर्टर 75 SG को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करने से इसका प्रभाव कम होता है।
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक पेड़ के टिड्डे और इन टिड्डों के बच्चे दोनों ही पौधे का रस, जुलाई से अक्तूबर तक चूसते हैं, जिससे फसल थोड़े-थोड़े भागों में सूख जाती है। घास के टिड्डे धान की फसल के पत्तों को खाकर नुकसान पहुंचाते हैं इसकी रोकथाम के लिए 40 मिलीलीटर कॉन्फीडोर 17.8 SL या 800 मिलीलीटर एकालकस 25 EC को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करना चाहिए। वहीं जड़ों की सूड़ियां जुलाई से सितंबर तक जमीन में पौधे की जड़ों को खाती हैं और प्रभावित पौधे छोटे रह जाते हैं, पीले पड़ जाते हैं और पौधा फैलता नहीं है और इसकी रोकथाम के लिए खेत में 3 किलो थिमट या फोराटोकस 10 जी दानेदार दवाई का प्रति एकड़ खड़े पानी में छींटा देने से इस समस्या से निजात मिल जाती है।
धान की फसल को गंधी बग कीट से बहुत नुकसान होता है। इसके आक्रमण से धान की पैदावार में भरी कमी आ जाती है। जिससे किसानों को नुकसान का सामना करना पड़ता है। जब धान के पौधों में बालियां बनती हैं और बालियों में दाने बनते हैं उस दौरान यह कीट कभी भी उत्पन्न हो सकते हैं। शाम के समय यह कीट एक गंदी बदबू छोड़ते हैं। अगर आप भी गंधी बग कीट के प्रकोप से परेशान हैं तो इस कीट से आसानी से निजात पा सकते हैं। इसके लिए आपको प्रति एकड़ फसल में 150 मिलिलीटर इमिडाक्लोरपिड साढ़े 17 फीसदी एससी जो कि मार्केट में कोन्फिडोर, विक्टर आदि नाम से उपलब्ध है इसका छिड़काव या फिर 100 ग्राम थियामेथोक्सम जो कि बाजार में एकतारा, ग्रीनतारा आदि नाम से उपलब्ध है का छिड़काव सुबह 8 बजे से पहले या शाम 5 बजे के बाद कर सकते हैं इसके अलावा प्रति एकड़ जमीन में 200 लीटर पानी में 400 मिलीलीटर नीम का तेल मिलाकर भी छिड़काव कर सकते हैं।
आपको बता दें चावल की खेती वैश्विक स्तर पर की जाती है। और पूरी दुनिया की आधी आबादी का भोजन चावल को माना जाता है। देश में भी बड़े पैमाने पर धान की खेती की जाती है। जहां दुनियाभर में लगभग 148 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर धान की खेती की जाती है, वहीं धान की 90 फीसदी खेती एशियाई देशों में होती है। जबकि भारत में उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, छतीसगढ़, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश समेत कई राज्यों में धान की खेती की जाती है। लेकिन धान की फसल में कीट और रोगों के प्रकोप से सालाना लगभग 10 से 15 फीसदी उत्पादन कम होता है और इन कीटों और रोगों की पहचान करके इन पर नियंत्रण पाया जा सकता है।