हमारे देश में आम की कई वैरायटी देखने को मिलती हैं। लखनऊ का दशहरी आम हो या नासिक का मुंबइया, चौंसा, तोतापरी बाजार में खूब बिकते हैं, लेकिन इन सबके बीच गोरखपुर के गवरजीत आम ने शहर का गौरव बढ़ाया है। स्वाद,खुशबू और मिठास की बदौलत इसकी अलग पहचान है। पूर्वांचल के कुछ ही हिस्सों में इसकी पैदावार की जाती है और इसकी बिक्री कुछ ही सप्ताह की होती है। किसानों का कहना है कि अगर इसे सुरक्षित रखने का इंतजाम कर दिया जाए तो इसका बेहतरीन स्वाद देश को डॉलर दिलाने की क्षमता रखता है।
गवरजीत आम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। पूर्वांचल का गौरव गवरजीत जैसा नाम वैसा इसका स्वाद है, इसे देखते ही मुंह में पानी आ जाता है। अभी इसकी पैदावार पूर्वांचल के गोरखपुर-बस्ती मंडल में करीब 6 हजार हेक्टेयर में होती है। साथ ही बस्ती, देवरिया, महराजगंज, कुशीनगर और सिद्धार्थनगर के नौगढ़ में इसके बड़े-बड़े बाग देखने को मिल जाते हैं। कुछ स्थानों पर गवरजीत की बोली बगीचे में ही लग जाती है तो कुछ लोग पेड़ से ही आम खरीद लेते हैं। कुछ किसान इन्हें तोड़ कर सीजन में वाराणसी और लखनऊ की मण्डियों में बेचते हैं, जहां उन्हें अच्छी कीमत मिल जाती है। ये आम अब पश्चिम में भी धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रहा है।
गोरखपुर वाले पूरी दुनिया में कहीं भी रहें, अपने गवरजीत पर फिदा रहते हैं। ये आम अपनी मिठास और ख़ुशबू में बेजोड़ है। ये आम पूर्वांचल वासियों के लिए बेहद खास है। गोरखपुर शहर में जो ठेले वाला गवरजीत आम बेचता है वह एक दो सप्ताह खुद को ख़ास समझता है। गवरजीत खास इसलिए है क्योंकि ये खुद पक कर जमीन पर गिरता है। ये आम ठेले पर पत्तों के साथ नजर आता है। जिससे इसकी एक अलग पहचान होती है। अपने स्वाद और मिठास के चलते गवरजीत आम की दूसरी किस्मों से महंगा भी है। सीजन में ये आम बाजार में 60 से 70 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिकता है और बाद में मांग और पूर्ती के हिसाब से इसका दाम घटता-बढ़ता रहता है।
गवरजीत आम के हम सभी दीवाने हैं, लेकिन शायद ही किसी को पता होगा कि इसका नाम गवरजीत क्यों पड़ा, दरअसल इसके पीछे कई कहानियां हैं। कुछ जानकारों के मुताबिक एक बार विदेश में आम की प्रतियोगिता हुई। इसमें गोरखपुर से गया छोटे आकार का आम भी भेजा गया। कोई नाम न होने के चलते अंग्रेजों ने इसे गंवार आम कह कर पुकारा और इस प्रतियोगिता में इसने जीत हासिल कर ली। तब से इसका नाम गवरजीत पड़ गया।
वहीं उपकार के महानिदेशक डॉ. संजय सिंह ने वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह से बातचीत करते हुए बताया कि पूर्वांचल के इस आम का कोई मुकाबला नहीं है। क्योंकि ये अपनी क्वालिटी के लिए जाना जाता है। गवरजीत मिठास के कारण सभी आमों को पीछे छोड़ देता है, लेकिन जीआई रजिस्ट्रेशन नहीं होने की वजह से देश और विदेश में इसका बाजार नहीं बन पा रहा है। एक बार गवरजीत आम को जीआई टैग मिल जाए तो फिर मार्केट बनाने में और सुगमता होगी और ये किसानों को अच्छा मूल्य दिलाने में भी सहायक होगा।
बता दें गवरजीत गौहर जीत का बिगड़ा हुआ नाम है। गौहर यानी रत्न या यूं कहें राजा। गवरजीत आम की डिमांड इतनी है कि आज की तारीख में इसे पूरा करना संभव नहीं है। इसी के चलते लगातार इसके पौधे लगाए जा रहे हैं, जिससे ज्यादा से ज्यादा पैदावार हो सके और इसे बाहर भी भेजा जा सके। पेड़ की डाल पर पके गवरजीत के दीवानों की संख्या लाखों में हैं। इसका विशेष स्वाद और ताजगी इसे खास बनाता है इसलिए लोग मुंह मांगी कीमत देने को तैयार रहते हैं गोरखपुर के गीडा के कई उद्यमी तो अपने करीबियों को गवरजीत गिफ्ट में देते हैं। आपने इस पेड़ को कब देखा था, इसके स्वाद का मजा कब चखा था। इसे याद रखना होगा। ताकि आने वाली पीढि़यां इसके बारे में आपसे और किताबों से जान सकें कि इस लजीज गवरजीत आम का मजा कितना खास है