गन्ने की फसल के लिहाज से देखा जाए तो उत्तर प्रदेश देश में सर्वाधिक गन्ना उपजाने वाला राज्य है। जहां देश के कुल रकबे का 46 फीसदी और कुल उत्पादन का 45 फीसदी गन्ना उपजाया जाता है। लेकिन यह राज्य गन्ने के प्रति एकड़ उत्पादन के मामले में तमिलनाडु, महाराष्ट्र और कर्नाटक से काफी पीछे है। जहां तमिलनाडु और महाराष्ट्र में गन्ने की उपज 35 से 40 टन प्रति एकड़ होती है। वहीं उत्तर प्रदेश सहित बिहार, हरियाणा, उतराखंड और पंजाब के किसान प्रति एकड़ 25 से 30 टन गन्ने का ही उत्पादन ले पा रहे हैं। मगर प्रति एकड़ उपज लागत खर्च देखें तो लगभग दोनों क्षेत्रों में एक समान है। नतीजन उत्तर भारत के किसानों को गन्ने की खेती से कम ही लाभ मिलता हैं।
अब सवाल है कि उत्तर भारत के राज्यों में प्रति एकड़ गन्ना उत्पादन कम क्यों है और इसे कैसे बढ़ाया जाए? इस पर गौर किया तो पाया गया कि उत्तर भारत के राज्यों में गन्ने की सबसे अधिक बुआई बसंत ऋतु में होती है। उनका मानना है कि फरवरी, मार्च का महीना, गन्ने की बुआई के लिए बेहद अनुकूल होता है। इस समय गन्ने की फसल से अच्छी पैदावार मिलती है, लेकिन अधिकतर किसान गन्ने की बुआई फरवरी-मार्च की जगह आलू, सरसों और गेहूं की कटाई के बाद अप्रैल-मई महीने में करते हैं।
भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान लखनऊ (आई आईएसआर) के सस्य विज्ञान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ शिव नारायण सिंह ने बाताया कि इसकी वजह से गन्ने की बढ़वार और विकास के लिए 7-8 महीने की जगह 5-6 महीने का कम समय ही मिल पाता है क्योंकि अक्टूबर महीने से तापमान में गिरावट के कारण गन्ने में गुल्लियों का कम निर्माण और विकास हो पाता है। नतीजन गन्ने की उपज में 30 से 35 फीसदी की गिरावट आ जाती है।
आई आई एस आर वैज्ञानिक ने बताया कि गन्ने की खेती से अधिक लाभ लेने और इन सब समस्याओं से निजात पाने के लिए पुरानी तकनीकों को दरकिनार कर सस्टेनेबल शुगरकेन इनोवेटिव यानी बडचिप जैसी नई तकनीक से गन्ने की खेती करनी होगी। इससे गन्ने की देर से बुआई वाली समस्या भी दूर हो जाएगी और लागत खर्च में भी कमी आएगी। साथ ही गन्ने की अधिक पैदावार भी मिलेगी। जिससे किसानों को ज्यादा फायदा मिलेगा।
आई आई एस आर के एक वैज्ञानिक ने बताया कि गन्ने की खेती में किसान गन्ने की तीन आंख या दो आंख के गुल्लियों वाले बीज बोते हैं जिसमें एक एकड़ खेत के लिए 25 से 30 कुन्तल गन्ना बीज की जरूरत पड़ती है। जबकि बड चिप विधि में एक एकड़ खेत में 80 से 100 किलो गन्ने के बीज की जरुरत होती। इससे जाहिर है कि किसानों को गन्ने के बीज के रुप में लगने वाले खर्च में 99 फीसदी की बचत हो रही है। इससे किसानों को प्रति एकड़ 8 से 10 हजार रुपये की बचत होगी।
उन्होंने बताया कि अधिकतर किसान गन्ने की बुआई के लिए रबी फसलों की कटाई का इंतजार करते हैं। नतीजतन फरवरी-मार्च की जगह वे अप्रैल-मई में गन्ने की देर से बुआई करते हैं। इसकी जगह किसान छोटी सी जगह में जनवरी-फरवरी माह में बड चिप तकनीक से गन्ने की नर्सरी पौध तैयार करें। जब तक रबी फसलें कटाई के लिए तैयार होती हैं, वहीं दूसरी ओर नर्सरी में गन्ना पौध 45 से 60 दिन में एक फुट के तैयार हो जाते हैं। इस नर्सरी पौध की रबी फसलों की कटाई के तुरंत बाद मुख्य खेत में रोपाई कर दें। इससे गन्ने की देरी से बुआई में होने वाले नुकसान से बच सकते हैं।
बड चिप तकनीक में सबसे पहले बड चिप मशीन से गन्ने का बड यानी आंख निकालते हैं। इसके बाद बड को उपचारित कर प्लास्टिक ट्रे के बने खानों में रखते हैं। ट्रे के खानों को वर्मी कम्पोस्ट या कोकोपिट से भरते हैं। अगर किसान के पास वर्मी कम्पोस्ट और कोकोपिट उपलब्ध नही हैं तो सड़ी हुई पत्तियों का इस्तेमाल कर सकते हैं। ट्रे में बड की बुआई करने के बाद फब्बारे से समय-समय पर हल्की सिंचाई करते हैं। जब गन्ना नर्सरी की पौध चार से पांच सप्ताह की हो जाती है तो ट्रे से नर्सरी पौध को सावधानी पूर्वक निकाल कर मुख्य खेत में निश्चित दूरी पर गन्ना पौध का रोपण किया जाता है। इस विधि में गन्ने की पौध को खेत में पौधे की लाईन से लाईन 4 फीट और पौधे से पौधे की दूरी 1.5 फीट के हिसाब से रखा जाता है। इस तकनीक में किसान गन्ने के बीच में अन्तरासस्य फसलें जैसे दलहनी, तिलहनी, सब्जी और नगदी फसलें आसानी से उगाकर अतिरक्त लाभ भी ले सकते हैं।
उत्तर प्रदेश, गन्ना विकास विभाग, गोला लखीमपुर ने बताया कि गन्ना विकास विभाग की ओर से यूपी के 36 गन्ना बहुल जिलों में स्वयं सहायता समूह बनाए गए हैं। इन समूहों द्वारा बड चिप तकनीक का उपयोग करके गन्ने की नर्सरी पौध तैयार की जाती है। इस क्षेत्र के किसान इन समूहों से गन्ने की नर्सरी पौध खरीदते हैं और उन्हें अपने खेतों में लगाते हैं। गन्ना विभाग इस तकनीक को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहा है क्योंकि इससे गन्ना किसानों को लागत बचाने और गेहूं और धान की कटाई के बाद सीधे खेत में गन्ना बोने से बेहतर उपज प्राप्त करने में मदद मिलती है।
उत्तर प्रदेश के जिला लखीमपुर खीरी के पहाड़पुर गांव के प्रगतिशील किसानों ने बताया कि उन्होंने वर्ष 2020 में अक्टूबर माह में जागृति महिला समूह के सदस्यों से 10 हजार बड चिप तकनीक से तैयार गन्ने की पौध खरीदकर अपने खेतों में लगाया। गन्ने के लाइन से लाइन के बीच में सहफसली फसल के रूप में मटर की खेती से उन्हें अतिरिक्त आमदनी हुई। पौधों की संख्या पुरानी गन्ना तकनीक से 25 प्रतिशत अधिक है और गन्ने के पौधे की वृद्धि बहुत अच्छी होती है, इसलिए स्वाभाविक है कि गन्ने की पैदावार अधिक होगी। पुरानी तकनीक की तुलना में बुआई की लागत में काफी कमी आती है।
छोटे किसान बड चिप तकनीक से नर्सरी की पौध तैयार कर उसे बेचकर आय अर्जित कर सकते हैं। इसे महिला उद्यमी भी अपना सकती हैं। गन्ना विकास विभाग महिला रोजगार सृजन कार्यक्रम के तहत गन्ने की नई बुआई तकनीक अपनाकर स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को स्थानीय रोजगार प्रदान कर रहा है। गन्ना उत्पादन में वृद्धि से महिला रोजगार का सृजन हो रहा है। गन्ना विकास विभाग की देख-रेख में चलने वाला लखीमपुर खीरी जिले के पहाड़पुर गांव के जागृति महिला स्वयं सहायता समूह की कोषाध्यक्ष ने बताया कि उनके समूह ने वर्ष 2020 शरदकालीन सत्र में 1 लाख 25 हजार पौध और वर्ष 2021 में वसंत ऋतु में 60 हजार पौध किसानों को बेचकर 2 लाख 77 हजार रुपये आय अर्जित की। इस तकनीक से गन्ने का पौधा तैयार करने में महज एक रुपये का खर्च आता है।