ब्लॉग विवरण

Blog

सॉयल सोलराइजेशन से बेहतर होगी पैदावार

प्रतिस्पर्धा की इस दौड़ में खेती में उपलब्ध सीमित संसाधनों से अधिक से अधिक उत्पादन लेने की होड़ मची हुई है। इसके लिए किसान खेतीबाड़ी में खरपतवारों, कीड़ों और बीमारियों की रोकथाम के लिए रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे न केवल हमारे पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है बल्कि इसका हमारे स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। और तो और किसानों को खेती में ज्यादा लागत लगानी पड़ रही है और उससे मुनाफा कम हो रहा है। इसलिए किसानों को बदलते परिवेश में संरक्षण खेती की जरूरत पर जोर देना होगा, जिससे फसल की अच्छी पैदावार के साथ ही साथ मिट्टी के स्वास्थ्य और पर्यावरण को बचाया जा सके। इसके लिए सॉयल सोलराइजेशन यानि मृदा सौर्यीकरण तकनीक कारगर साबित हो रही है। कृषि वैज्ञानिक किसानों को सॉयल सोलराइजेशन तकनीक अपनाने के लिए जागरूक कर रहे हैं।

खेत में छिपे शत्रुओं को बिना केमिकल दूर करने का तरीका

अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर ये सॉयल सोलराइजेशन यानि मृदा सौर्यीकरण क्या है? जैसे हम बीज लगाने से पहले बीजों के उपचार के लिए कई तरह की दवाओं का प्रयोग करते हैं। ठीक उसी तरह बोई जाने वाली फसल की जगह का उपचार एक खास तकनीक से किया जाता है। जिसको सॉयल सोलराइजेशन यानि मृदा सौर्यीकरण कहा जाता है। मृदा सौर्यीकरण के लिए लंबे समय तक वातावरण में गर्मी होनी चाहिए। जब तापमान 40 से 45-डिग्री सेंटीग्रेड हो, तो उस समय सॉयल सोलेराइजेशन करना उचित रहता है। इसके लिए मई-जून का महीना सबसे कारगर रहता है।

सॉयल सोलराइजेशन से कम लागत में बेहतर फसल उगाएं

कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक इस तकनीक में मिट्टी के शोधन के लिए किसान को सबसे पहले खेत की अच्छी तरह जुताई कर लेनी चाहिए। खेत की जुताई के बाद हल्की सिंचाई करनी पड़ती है और उस खेत को 200 गेज की पारदर्शी पन्नी से ढककर इसके किनारों को दबा देना चाहिए। जिससे बाहर की हवा अंदर प्रवेश न कर पाए। इससे मिट्टी का तापमान 3 डिग्री तक अधिक हो जाता है और खेत की जुताई होने के चलते इसकी गर्मी से भूमि में करीब एक फीट नींचे तक मिट्टी में मौजूद पिछली फसल के रोग-कीट, खरपतवार के बीज नष्ट हो जाते हैं। इसके साथ ही हानिकारक विषाणु, फफूंदी, कीटों के अंडे, प्यूपा और निमेटोड आदि भी नष्ट हो जाते हैं। इस पारदर्शी पॉलिथीन शीट को पूरे खेत में तीन से चार सप्ताह तक ढककर रखना पड़ता है। किसान इसका उपयोग धान की नर्सरी डालने वाली जगह पर भी कर सकते हैं। इससे फसल पर लगने वाले कीटनाशकों की जरूरत नहीं पड़ती और खेती की लागत में कमी आती है। साथ ही प्रति एकड़ उत्पादन भी ज्यादा होता है।

सॉयल सोलराइजेशन से बेहतर होगा मिट्टी का शोधन

बता दें किसानों के उचित फसल चक्र नहीं अपनाने और कुछ अन्य कारणों से फसल में रोग बढ़ाने वाले कारक मिट्टी में स्थिर हो जाते हैं और बुआई करते ही फसल मृदा जनित रोग से ग्रसित हो जाती है। इसके चलते फसल को काफी नुकसान होता है। रोगग्रस्त फसलों के उपचार के लिए किसान काफी मंहगे कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं। इससे फसल की लागत में खासा इजाफा हो जाता है और पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है। ऐसे में ये तकनीक और भी उपयोगी साबित हो सकती है।

देश में खाद्यान्न आपूर्ति के लिए रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध इस्तेमाल किया जा रहा है और मिट्टी का अधिक दोहन किया जा रहा है। यदि समय रहते हमने प्राकृतिक संसाधनों प्रमुख रूप से मृदा और जल संरक्षण पर विशेष जोर नहीं दिया तो भविष्य में गम्भीर खाद्य समस्या का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए हमें अभी से आने वाली पीढ़ियों के लिए भी अपने से अच्छा वातावरण सुनिश्चित करने के साथ जलवायु परिवर्तन, भुखमरी और कुपोषण जैसी गम्भीर समस्याओं से मुक्ति दिलानी होगी।