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पौष्टिक गुणों से भरपूर किनोवा, जिसे क्यों कहते हैं मदर ग्रेन, जानिए इसके बारे में क्यों इसकी सबसे ज्यादा मांग है.

कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि यदि 21वीं सदी के अंत तक देश को अपनी बढ़ती आबादी के लिए पर्याप्त भोजन मुहैया करवाना है। तो हमें ऐसी फसलों का उत्तम उत्पादन करना होगा। जो प्रतिकूल यानी विपरीत दशा में भी हमें खाद्य सुरक्षा दे सके। इसी को लेकर देश में किनोवा की मांग तेजी से बढ़ रही है। इसकी खेती में लागत काफी कम और मुनाफा कई गुना ज्यादा है। और इसके पोषक तत्व में इतने गुण हैं जिसे जानकर आप चौंक जाएंगे। दरअसल हमारे पोषक अनाजों में से एक किनोवा चमत्कारिक गुणों से भरपूर ‘सुपर फूड या सुपर ग्रेन’ है।

कम ही लोगों को पता होगा कि, संयुक्त राष्ट्र संघ के कृषि और खाद्य संगठन (FAO) ने साल 2013 को अंतरराष्ट्रीय किनोवा वर्ष घोषित किया है। ताकि हर किसान इस फसल के महत्व को समझ सके। इसे मदर ग्रेन भी कहते हैं..और इसमें अंडा और गाय के दूध से भी अधिक आयरन होता है। कृषि विशेषज्ञ किसानों को किनोवा खेती के लिए जागरूक कर रहे हैं।

आपको बता दें आधुनिकता की दौड़ में हमारी सेहत अच्छी रह सके। इसके लिए हमें बेहतर अनाज किनोवा यानी सुपर ग्रेन की जरूरत है। किनोवा एक हाईजैनिक फूड है। किनोवा में भरपूर विटामिन्स होता है। इसमें मैगनीज, फास्फोरस, मैग्नेशियम, फोलेट, कॉपर, आयरन, जिंक, पोटेशियम आदि की अच्छी मात्रा होती है। और इसके अलावा विटामिन B1, B2 और B6 का ये अच्छा स्रोत है। इसमें थोड़ी मात्रा में विटामिन E, विटामिन B3, कैल्शियम और ओमेगा 3 फटी एसिड भी पाई जाती है। और ये हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद है। इसमें सबसे अधिक प्रोटीन पाया जाता है जो हमारे पाचनतंत्र को मजबूत रखता है. इसे कई लोग सुपरफूड भी कहते हैं। इसका रोजाना सेवन करने पर हार्टअटैक, कैंसर, सांस सम्बन्धित बीमारियों में लाभ मिलता है और ये शरीर में खून की कमी को दूर करता है। किनोवा को भविष्य का बेहतर अनाज (सुपर ग्रेन) माना जा रहा है। किसान किनोवा को वैकल्पिक फसल के रूप में अपना कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। क्योंकि इसकी पैदावार कम पानी में होती है और इसमें लागत खर्च भी कम आता है।

बता दें किनोवा, जो रामदाना (चौलाई) के परिवार से ताल्लुक रखता है। और ये दिखने में ये हल्के गेहूंए और सफेद रंग का होता है। ये आकार में छोटा, यानी राई के दाने के बराबर होता है। इसका स्वाद हल्का कुरकुरा होता है। किनोवा के छिलकों में मौजूद ‘सैपोनिन’ नामक पदार्थ के कारण इसका स्वाद हल्का कड़वा होता है। किनोवा को चावल की भांति उबाल कर खाया जा सकता है। इसके दानों से आटा और दलिया बनाया जाता है। किनोवा से स्वादिष्ट नाश्ता, शूप, पूरी, खीर, लड्डू आदि विविध मीठे और नमकीन व्यंजन बनाये जा सकते हैं। इसके अलावा गेहूं और मक्का के आटे के साथ किनोवा का आटा मिलाकर ब्रेड, बिस्किट, पास्ता आदि बनाये जाते हैं। जिससे देश में बढ़ते कुपोषण की समस्या से निजात मिल सकती है.

कुपोषण की समस्या से निजात मिल सकती है.

आपको बता दें किनोवा की खेती के लिए किसी खास तरह की मिट्टी की जरूरत नहीं होती है। इसकी खेती बंजर, मैदानी और पथरीली यानी सभी तरह की जमीनों पर की जा सकती है। इसकी खेती के लिए भूमि में जल निकासी की सुविधा अच्छी होनी चाहिए। अधिक जल भराव वाली जमीन इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है।किनोवा की बुवाई अक्टूबर, फरवरी, मार्च और कई जगह पर जून-जुलाई के समय भी की जा सकती है।

किनोवा के खेत को तैयार करने के लिए सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हलों से खेत की गहरी जुताई कर ली जाती है। इसके बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है। इसके बाद खेत में जैविक खाद के रूप में 10 से 12 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को देना होता है। खाद को खेत में मिलाने के लिए कल्टीवेटर के माध्यम से दो से तीन तिरछी जुताई कर देनी चाहिए। इससे खेत की मिट्टी में गोबर की खाद अच्छे से मिल जाती है। इसके बाद खेत में पानी लगा कर पलेवा कर दें। इसके बाद जब खेत की भूमि ऊपर से सूखी दिखाई देने लगे तब रोटावेटर लगाकर जुताई कर दी जाती है। इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है। खेत की मिट्टी को भुरभुरा करने के बाद खेत में पाटा लगाकर समतल कर दें। इससे खेत में जलभराव की समस्या नहीं होती है। यदि आप खेत में रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो उसके लिए आपको एक बोरी डीएपी खाद की मात्रा का छिड़काव एक हेक्टेयर खेत में करना होता है....

किनोवा का बीज काफी छोटा होता है। इसलिए एक बीघे में 400 से लेकर 600 ग्राम की मात्रा पर्याप्त होती है। इसकी बुवाई किसान कतारों में या सीधे खेत में बिखेर कर भी कर सकते हैं। इसका बीज मिट्टी में 1.5 से 2 सेंटीमीटर तक गहराई में लगानी चाहिए और जिस समय किनोवा के पौधे 5 से 6 इंच के हो जाए तब पौधे से पौधे के बीच की दूरी 10 से 14 इंच रखते हुए क्यारी बना लेनी चाहिए। किनोवा की बुवाई के तुरंत बाद सिंचाई कर देना चाहिए । किनोवा के पौधे को बहुत कम सिंचाई और पानी की आवश्यकता होती है। फसल को लगाने से लेकर काटने तक केवल 3 से 4 बार पानी देना ही इसके लिए पर्याप्त रहता है और जब पौधे छोटे रहें तभी इसमें से खरपतवार को निकलवा देना चाहिए। किनोवा में रोगों और कीटों से लड़ने की अच्छी क्षमता होती है। ये पाले और सूखे की मार को भी आसानी से झेल लेता है। किसानों को किवोना में लगने वाले रोग और कीट के प्रबंधन के बारे में चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। इस तरह किनोवा की बुवाई आप कर सकते हैं।

बता दें किनोवा की फसल 100 दिनों में आसानी से तैयार हो जाती है और अच्छी फसल की ऊंचाई 4 से लेकर 6 फीट तक होती है। इसको सरसों की तरह आसानी से थ्रेसर से काटकर निकाल सकते हैं और इसके बीज को निकालने के बाद अन्य फसलों की तरह इसे भी धूप की आवश्यकता होती है। इस फसल का उत्पादन प्रति बीघा 5 से 8-9 क्विंटल तक होता है और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसका भाव 500 से 1 हजार रूपये किलो तक है। वहीं विदेशी देश इजराइल में किनोवा की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। देश के कई शहरों में किनोवा की खेती की मांग तेजी से बढ़ रही है। फिलहाल, देश में करीब 5 करोड़ रुपये के किनोवा का आयात हो रहा है।