जल है तो जीवन है। कहा जाता है कि दुनिया के तीन भाग में सिर्फ पानी ही पानी है, मात्र एक भाग है जिसपर जीवन बसा है प्रकृति ने जीवन की संरचना पंचतत्व से की है लेकिन यही वो पंचतत्व है जिसके ईर्द-गिर्द पूरा ब्राह्मांड है। पृथ्वी, जल, अग्नि वायु और आकाश जीवन के लिए हर एक तत्व बहुत ही अनिवार्य है लेकिन जल जो जीवन का एक ऐसा हिस्सा है जिसकी मात्रा सबसे अधिक है आपको पता है कि आपके शरीर में भी 70 फीसदी जल ही मौजूद है ऐसे में अनंत काल से प्रकृति ने नदियों की संरचना को ऐसे गढ़ा कि पृथ्वी के किसी भी हिस्से में चले जाइए नदियां आपके जीवन को सुरक्षित करने के लिए निरंतर अपने लय में बह रही है। पूरे देश भर में 200 महत्वपूर्ण नदियां हैं जिनका संगम किसी ना किसी बड़ी नदियों के साथ होता है और अंत में सागर में समाहित हो जाते हैं ये अनंत काल से चल रहा है, चलता रहेगा क्योंकि ये सृष्टि भी उसी जल से गतिमान हो रही है ऐसी ही एक नदी है गंगा जो सिर्फ नदी ही नहीं बल्कि हमारी संस्कृति है आस्था का बड़ा केंद्र है, जीवन का आधार है, जो हिन्दुस्तान की पहचान है, सभ्यता का प्रतीक है, उनका जल अमृत के समान है, उनकी शीतलता मनमोहक है, लहरों की धारा में स्फूर्ति है, वो ना कभी थकती है, ना कभी रुकती है वो तो अविरल और अविनाशी है, वो पतित पावनी है, जिनके साये में हिन्दुस्तान की हर आत्मा है, आखिर क्या वजह है कि बिना बुलाये ही उनके तट पर असंख्य लोग अबतक पहुंच चुके हैं, क्योंकि वो मां गंगा है, जो लगभग 2500 किलोमीटर की दूरी तय करती है आज अपनी अस्मिता को खोती जा रही है। आखिर क्यों गंगा की हालत बद से बदतर होती जा रही है, गंगा हमारी मां है तो फिर गंगा के साथ इतना अत्याचार क्यों। क्यों गंगा की सफाई के लिए लोग जागरुक नहीं हैं, ये जानते हुए भी की गंगा है तो जीवन है,लेकिन फिर भी लोग बेपरवाह बने हुए हैं. गंगा के उद्गम से सागर में मिलने तक की कहानी हम अपने अलग-अलग ब्लॉग में आपको बतायेंगे,लेकिन सबसे पहले ये जानना जरुरी है कि आखिर गंगा का स्वरुप क्या है,गंगा कहां से शुरू होती है,गोमुख से गंगासागर तक हिन्दुस्तान की कितनी नदियां गंगा में समाहित होती हैं. उन नदियों की स्थिति क्या है,पौराणिक महत्व क्या है,उन योजनाओं का क्या हुआ जो नदियों को साफ करने के लिए बनाई गई थी,अलग-अलग ब्लॉग में सारी जानकारियां देने की कोशिश करेंगे,लेकिन पहले ब्लॉग में गंगा के अवतरण की कहानी.....
भागीरथी जो गंगा नदी की प्रथम शाखा है,कुमाऊं में गोमुख नामक स्थान पर गंगोत्री हिमनद से निकलती है.इनके उद्गम स्थल की ऊंचाई समुद्र तल से 3140 मीटर है जबकि 3892 मी. की ऊंचाई पर हिमनद का मुख है. यह हिमनद 25 कि.मी. लंबा वहीं 4 कि.मी. चौड़ा और लगभग 40 मीटर ऊंचा है.इसी ग्लेशियर से भागीरथी एक छोटे से गुफानुमा मुख से अवतरित होती है. इसका जल स्त्रोत 5000 मी. ऊंचाई पर स्थित एक बेसिन है.गोमुख के रास्ते में 3600 मी. ऊंचे चिरबासा ग्राम से विशाल गोमुख हिमनद के दर्शन होते हैं.इस हिमनद में नंदा देवी, कामत पर्वत एवं त्रिशूल पर्वत का हिम पिघल कर आता है.ऐसे में गंगा के आकार लेने में अनेक छोटी-छोटी नदियों की धाराओं का योगदान होता है,लेकिन 6 बड़ी और उनकी सहायक 5 छोटी धाराओं का भौगोलिक और सांस्कृतिक महत्व अधिक है.भागरथी जो देवप्रयाग में अलकनंदा से मिलकर गंगा का रुप लेती है.उससे पहले कई धाराएं हैं जो अलकनंदा से अलग-अलग स्थान पर मिलती हैं उन सभी स्थानों का बहुत ही महत्व है वो सभी स्थान पंच प्रयाग के तौर पर जाना जाता है.विस्तार से हम आपको बताते हैं इन सभी नदियों के मिलने की कहानी....
विष्णुप्रयाग - बद्रीनाथ के संतोपथ हिमानी से विष्णु गंगा निकलती है जबकि धौली गंगा का उद्गम स्थल नीती पास है.धौली गंगा अपने साथ ऋषि गंगा को भी लाती है जो नंदा देवी पर्वत की ढ़लानों पर स्थित उत्तरी नंदा देवी हिमानी से उत्पन्न होती है.यह नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान से गुजरकर रैणी गांव के समीप धौलीगंगा में विलय हो जाती है.धौली गंगा आगे बढ़ती है और विष्णुगंगा से 1372 मी. की ऊंचाई पर विष्णु प्रयाग में संगम होता है.यहां दोनों नदियों की धारा मिलकर अलकनंदा बनती है.पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी स्थान पर नारद मुनि ने भगवान विष्णु की तपस्या की थी.उन्होंने पंचाक्षरी मंत्र का जाप किया और स्वयं भगवान विष्णु उनको दर्शन देने के लिये यहां पधारे थे.विष्णुप्रयाग में भगवान विष्णु का मंदिर है जहां श्रद्धालु दर्शन करते हैं.
नंदप्रयाग - अलकनंदा अपनी तेज गति के साथ आगे बढ़ती है और नंदप्रयाग में नंदाकिनी नदी से मिलती है. नंदाकिनी नदी नंदादेवी पर्वत से निकलती है जो सागर तल से 2805 फीट की उंचाई पर स्थित है.पौराणिक कथाओं में इसका संबंध भगवान कृष्ण से जोड़ा जाता है,कहा जाता है कि राजा नंद ने पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिये इसी स्थल पर तपस्या की थी. भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि वह उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे. हालांकि विष्णु भगवान को जल्द ही अपनी गलती का अहसास हो गया क्योंकि वह ऐसा ही वचन देवकी और उनके पति वासुदेव को दे चुके थे,आखिर उन्होंने इस गलती का समाधान इस तरह से निकाला कि वह जन्म तो देवकी की कोख से लेंगे लेकिन उनका लालन पालन नंद और उनकी पत्नी यशोदा करेगी. यह भी कहा जाता है कि राजा नंद ने यहां पर महायज्ञ भी करवाया था और इसी वजह से इस स्थान का नाम नंदप्रयाग पड़ा.एक और कहानी के अनुसार ऋषि कण्व का आश्रम भी इस स्थान पर था और शकुंतला भी यहीं रहती थी. राजा दुष्यंत से उनका विवाह नंदप्रयाग में हुआ था. अलकनंदा अपने पूरे सौम्यता के साथ कर्णप्रयाग की तरफ बढ़ती हैं जहां पिंडर नदी से मिलन होता है बतायेंगे अपने अगले ब्लॉग में