नमस्कार, गंगा की अविरलता और निर्मलता को लेकर हम अपने ब्लॉग के जरिए लगातार आपको जानकारी दे रहे हैं, गंगा के उद्गम से लेकर गंगा की धारा में मिलने वाली अनेकों नदियों की धारा को गंगा अपने में समेटते हुए गंगा सागर तक ले जाती हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि लोग सबकुछ जानते हुए भी अनजान बनें बैठें हैं, वो गंगा ही है जिसकी जरुरत हमें जीने के लिए भी है और मरने के बाद भी है....सवाल ये है कि गंगा जब हिन्दुस्तान की आत्मा है हमारे जीवन-मरण का आधार है तो फिर गंगा के प्रति इतनी उदासिन हम क्यों हैं..अलग-अलग ब्लॉग में हमने आपको बताया कि किस तरह से गंगाजल को विभिन्न तरीकों से दूषित किया जा रहा है, गंगा सफाई के नाम पर अबतक हजारों करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन परिणाम अपेक्षा के अनुकुल नहीं रहा है.... ऐसे में अपने अगले ब्लॉग में हम आपको बताने जा रहे हैं....कि 2014 में नई सरकार बनने के बाद गंगा सफाई को लेकर क्या-क्या उपाय किए गए हैं।
सबसे पहले उन महान आत्माओं को आइपा की तरफ से विशेष श्रद्धांजलि जिन्होंने गंगा की अविरलता और निर्मलता को लेकर अपने प्राण तक त्याग दिए हैं, खासकर आईआईटी कानपुर से रिटायर्ड प्रोफेसर प्रख्यात पर्यावरण विद् जीडी अग्रवाल हैं...जिन्होंने अनवरत 112 दिनों तक आमरण अनशन पर बैठे थे, गंगा को अविरल बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तीन बार पत्र भी लिखा था, बार- बार उनको उस वादे की याद दिलाते रहे, जब मोदी जी ने वर्ष 2014 में बनारस में कहा था कि मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है. हालांकि आमरण अनशन की जानकारी के बाद भी प्रधानमंत्री कार्यालय से प्रोफेसर जी. डी. अग्रवाल के पत्र का कोई जवाब नहीं दिया गया, आखिरकार उन्होंने गंगा की निर्मलता और अविरलता के लिए अपने प्राण त्याग दिए. अब सवाल ये उठता है कि 2014 में गंगा सफाई के वादे के साथ सत्ता में आई मोदी सरकार के समय में गंगा कितनी साफ हुईं
मिली जानकारी के मुताबिक पहले की तुलना में गंगा किसी भी जगह पर साफ नहीं हुई है, बल्कि पहले के अपेक्षा और ज्यादा दूषित हुई है…. गंगा सफाई के नाम 2014 से लेकर जून 2018 तक गंगा सफाई के नाम पर 5,523 करोड़ रुपये जारी किए गए, जिसमें से 3,867 करोड़ रुपये खर्च भी किए जा चुके हैं।
गंगा नदी की सफाई के लिए मई 2015 में नमामी गंगे को मंजूरी दी गई थी....इसके तहत गंगा नदी की सफाई के लिए कई योजना बनाई गई थी. जैसे शहरों से निकलने वाले सीवेज का ट्रीटमेंट, औद्योगिक प्रदूषण का उपचार, नदी की सतह की सफाई, ग्रामीण स्वच्छता, रिवरफ्रंट विकास, घाटों और श्मशान घाट का निर्माण, पेड़ लगाना और जैव विविधता संरक्षण इत्यादी.
इस कार्यक्रम के तहत 22 हजार 2 सौ 38 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से कुल 221 परियोजनाओं को स्वीकृति दी गई थी. इसमें 17 हजार 4 सौ 85 करोड़ रुपये की लागत से 105 परियोजनाओं में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट को मंज़ूरी दी गई है…जिसमें अभी तक 26 परियोजनाएं ही पूरी हो पाई हैं. वहीं 67 परियोजनाओं को रिवरफ्रंट बनाने, घाट बनाने और श्मशान घाट का निर्माण करने और नदी की सतह की सफाई के लिए आवंटित किया गया था, जिसमें से 24 परियोजनाएं ही पूरी हो पाई है।
गंगा की सफाई के लिये नई गतिविधियों को लाने की आवश्यकता है जैसे कि नदी में नालों का कचरा डालने पर रोक लगाया जाए, शवों और मृत पशुओं को नदी में प्रवाहित ना किया जाए, वहीं गंगा के किनारे शवों को लकड़ी से जलाने के स्थान पर विद्यूत शवदाह गृहों को स्थापित करने की आवश्यकता है. नदियों में जमा गाद को प्रभावी रूप से हटाना तथा प्रवाह क्षेत्र को नियमित करना है। नदियों को प्रभावित करने वाले क्षेत्र में निर्माण की उन्नत विधियों का प्रयोग करना है। वहीं दूसरी तरफ निर्माण के बाद कचरे को समुचित प्रबंधन करना है, जिससे कि इस कचरे से नदियों पर दुष्प्रभाव न पड़े..वहीं बता दें कि पूर्व निर्मित कंक्रीट ब्लॉक्स आदि का प्रयोग करके निर्माण क्षेत्र के कचरे को नियंत्रित किया जा सकता है. ऐसी पद्धतियों के प्रयोग को बढ़ावा देना आवश्यक है। नदियों में प्राकृतिक रूप से जलीय जीवों का संतुलन बनाना जिससे कि परिस्थितिक के अनुसार प्राकृतिक सन्तुलन कायम रह सके। जैविक एवं पारिसिथितिक सन्तुलन बनाने की जरूरत है। नदियों में प्राकृतिक प्रवाह क्षेत्र में निर्माण गतिविधियों से होने वाली रुकावटों को दूर करना है। वहीं बरसात के दिनों में नदियों की ओर आने वाले जल प्रवाह क्षेत्र में उस स्थल के उपयुक्त वृक्षों और वनस्पतियों का उचित रोपण और प्रसार करना है, जिससे कि भूमि का कटाव कम से कम हो। भूमि कटाव को रोकने से भू-संरक्षण के साथ ही जल संरक्षण का भी निहित है, अत: ऐसा प्रयास बाढ़ से होने वाली विपदा का भी समाधान करेगा।
खेतों में धीरे-धीरे रसायनिक खादों का उपयोग कम करके जैव आधारित उर्वरकों के प्रयोग पर जोर दिया जाये जिससे ये लाभ होंगे। बता दें स्थानीय स्तर पर उत्पन्न ठोस व्यर्थ सामग्री के सुरक्षित निपटान में सहायता मिलेगी - उदाहरण के तौर पर, घरेलू व्यर्थ पदार्थ, स्थानीय ठोस व्यर्थ सामग्री जैव घटकीय है तथा पशुओं के पालन से उत्पन्न व्यर्थ सामग्री का कम्पोस्ट खाद बनाकर निस्तारण करना परिस्थितिकी सन्तुलन बनाए रखने में सहायक होगा। खेतों में रासायनिक उर्वरकों के अन्धाधुन्ध प्रयोग से और कीटनाशकों के प्रयोग से जहरीले पदार्थों का पानी के साथ बहकर नदी जल में मिलना बड़ा घातक है। इससे जल प्रदूषण तो होता ही है और हानिकारक पदार्थों का नदी जल में प्रवाह बढ़ता है जिससे नदी में उपस्थित सूक्ष्म जीवाणु भी नष्ट हो जाते हैं। वास्तव में जल की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिये हमें प्रकृति के इन प्राकृतिक सफाई कर्मियों सूक्ष्म जीवाणुओं का संरक्षण करना अति आवश्यक है। अतः इस बारे में एक नई सोच की जरूरत है।
गंगा सफाई अभियान एक राष्ट्रीय महत्त्व का विषय है। प्रत्येक मनुष्य को अपने स्तर पर गंगा को साफ-सुथरा रखने के प्रयास में अपना योगदान देना चाहिए जैसे कि गंगा में पूजा-पाठ का सामान, फूल-पत्ते आदि न बहाएँ, ऐसे प्रयास करने होंगे। गंगा में नहाते समय या कपड़े धोते समय साबुन-शैम्पू का उपयोग न करें। गंगा में मूर्तियों को प्रवाहित न किया जाये।
कुम्भ मेले के समय गंगा तट के किनारे बनाए गए अस्थायी निवासों एवं अपशिष्ट पदार्थ को गंगा में न डाला जाये। उसको नष्ट करने के कुछ दूसरे उपाय किये जाएँ।
ग्लोबल वार्मिंग की वजह से भी गंगा का जल कम हो रहा है जिससे उसमें गंगा का शुद्ध जल कम, परन्तु नालों का गन्दा पानी ज्यादा बहता है। सोचो अगर गंगा ही नहीं रहेगी तो कितने ही लोगों को पीने का पानी नहीं मिल पाएगा और न ही खेतों की ठीक प्रकार से सिंचाई हो पाएगी। बिना अन्न-जल के व्यक्ति के जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। अतः गंगा का संरक्षण व इसकी पवित्रता बनाए रखना सरकार व समाज सभी का उत्तरदायित्व है। हम कई वर्षों से गंगा को दुषित करते आ रहे हैं, यदि गंगा की दयनीय स्थिति को इसी तरह नजरअन्दाज किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब गंगा नदी सिर्फ इतिहास बनकर रह जाएगी। जिसके बारे में हमारी आने वाली पीढ़ियाँ केवल किताबों में ही पढ़ा करेंगी।
आज हमारे समाज में इस ओर ध्यान देना चाहिए। इसके लिये शिक्षित वर्ग हो या अशिक्षित वर्ग, गाँव के लोग हों या शहर के, सबको जागरुक होना चाहिए व गंगा सफाई के महाअभियान में योगदान देना चाहिए।
आज पूरे समाज को यह प्रण लेना चाहिए कि जिस तरह कई वर्षों की तपस्या के बाद गंगा पृथ्वी पर आई थी ठीक उसी तरह यह पावन और निर्मल रूप में अनन्तकाल तक बहती रहे और हमारी आने वाली पीढ़ी इससे पोषित होती रहें। यही हम सबके हित में है। गंगा की स्वच्छता व संरक्षण की समस्या किसी एक वर्ग या एक व्यक्ति की समस्या नहीं है, सवाल राष्ट्रीय धरोहर, हमारी सभ्यता, हमारी अर्थव्यवस्था को आधार प्रदान करने वाली सम्पत्ति की सुरक्षा का है, इस तथ्य को ध्यान में रखा जाये तो सभी का हित है। समग्र प्रयास से ही गंगा सफाई का महान लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। अगले ब्लॉग में हम बतायेंगे कि आखिर गंगा सफाई के नाम पर 1980 से 2022 तक कितने पैसे खर्च हुए।