आपको बता दें कि पहले के समय में हमारी पारम्परिक खेती में कचरा, गोबर, दुधारू पशुओं का मलमूत्र और अन्य वनस्पति कचरे को इकठ्ठा करके खाद बनाने की प्रथा प्रचलित थी। जिसमें पौधे के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्व और मिट्टी में जैविक पदार्थों का विघटन करने वाले सभी प्रकार के सूक्ष्मजीव अधिक मात्रा में होते थे। इस प्रकार जैविक खाद के इस्तेमाल से मिट्टी की प्राकृतिक उपजाऊ शक्ति बरकार रहती थी और फसलों से लगातार उपज भी मिलती रहती थी। इससे किसानों पर ज्यादा खर्च भी नहीं आता था। जैविक खाद किसानों के लिए बेहतर फसल पैदावार के साथ मिट्टी के उपजाऊपन औऱ किसानों की कम लागत के नजरिये से काफी लाभदायक है।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान यानि IARI पूसा नई दिल्ली बायोमास यूटलाइजेशन यूनिट ने कृषि अवशेषों और अन्य सड़ने-गलने वाले अवशेषों का उपयोग कर समय की बचत के साथ कम लागत में अधिक गुणवत्ता वाली कम्पोस्ट यानि जैविक खाद बनाने की विधि विकसित की है। ये विधि सभी स्तरों पर बहुत उपयोगी साबित हो रही है। IARI बायोमास यूटिलाइजेशन यूनिट के कोआडिनेटर औऱ प्रिसिंपल साइंटिस्ट डॉ शिवधर मिश्रा ने इसकी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि किसान खेत के कृषि अवशेषों, धान, सोयाबीन, लोबिया, मक्का ज्वार, बाजरा, सहित खरपतवार फल और सब्जियों के छिलके, बाग-बगीचों की पत्तियां, फूल आदि से कम्पोस्ट यानि जैविक खाद बना सकते हैं।
डॉ शिवधर मिश्रा के अनुसार वायवीय विधि यानि विंड्रोव विधि से कम समय में बड़े पैमाने पर कम्पोस्ट खाद बनाई जाती है। उन्होंने कहा कि सबसे पहले फसल के अवशेषों का ढेर बना लिया जाता है। इस प्रकार के बने ढेर को ‘विंड्रोव’ कहते हैं। इसकी ऊंचाई और चौड़ाई 2 से 2.5 मीटर और इसकी लंबाई उपलब्ध जगह के अनुसार 10 से 100 मीटर या उससे अधिक रख सकते हैं। इन ढेरों में जैविक कल्चर मिलाकर उचित मात्रा में नमी रखकर समय-समय पर मशीन द्वारा उल्टाई पल्टाई की जाती है, इस प्रोसेस में सभी पदार्थ समान रुप से मिल जाते हैं और ढेरों में वायुसंचार भी हो जाता है। इस प्रकार तीन से चार पल्टाई में प्रकृति के अनुसार तीन से नौ सप्ताह में उत्तम खाद तैयार हो जाती है। इस तकनीक से पांच प्रकार की खाद तैयार की जाती है। पहला- फसल अवशेष खाद, इसमें एक साथ कई फसलों के अवशेषों को मिलाकर या अलग-अलग फसल की खाद तैयार की जाती है।
दूसरा तरीका फसल अवशेष और गोबर खाद विधि है। इस विधि में विभिन्न अनुपातों में गोबर और फसल अवशेषों को मिलाकर खाद बनाई जाती है। इस विधि में फसल के अवशेषों को 80 फीसदी और 20 फीसदी ताजे गोबर को मिलाते हैं। धान, गेहूं और अन्य फसलों जैसे कपास, अरहर, आदि के अवशेषों को भी श्रेडर मशीन से 8 से 10 सेंटीमीटर छोटा कर लेते हैं और दोनों को मिलाकर अच्छी जैविक और कम्पोस्ट खाद बनाई जाती है।
तीसरी खाद, यह गोशाला से प्राप्त गोबर औऱ बचे-खुचे चारे से बनाई जाती है। चौथे विधि से बनाई गई खाद को समृद्ध खाद कहते हैं। इस तकनीक में खाद बनाने के लिए फसल अवशेष और गोबर खाद दोनों का इस्तेमाल किया जाता है। इस खाद में जिस पोषक तत्व की मात्रा बढ़ानी ढेरों में उसकी मात्रा को बढ़ा दी जाती है। जैसे फास्फोरस की मात्रा बढ़ाने के लिए रॉक फास्फेट प्रयोग करके फास्फो कम्पोस्ट बनाते हैं। विंड्रोव तकनीक से पांचवीं तरह से जो खाद बनाई जाती है वह पत्तियों से बनती है । इसमें पौधों और वृक्षों की पत्तियों और कटाई- छटाई से प्राप्त छोटी-मोटी टहनियों इत्यादि से खाद बनाई जाती है। इस प्रकार की खाद नर्सरी और गमलों में लगे पौधों के लिए बेहतर होती है।
डॉ. शिवधर मिश्रा के अनुसार विंड्रोव तकनीक से खाद बनाने में कूड़ा-कचरा और फसल के अवशेषों को डालने के तुरंत बाद पहली पलटाई की जाती है। जिससे कि कूड़े-कचरे और फसल के अवशेष के अच्छे से मिल जाएं। उसके बाद दूसरी पलटाई 10 दिन बाद करते हैं। और तीसरी 25 दिन बाद, चौथी 40 दिन बाद और पांचवीं 55-60 दिन पर करते हैं। पलटाइयों के बीच अन्तर और इनकी संख्या प्रयोग में लाये जाने वाले अवशेषों के आधार पर कम या ज्यादा भी हो सकती है। पलटाइयों के बीच नमी के स्तर को बनाये रखने के लिए समय-समय पर पानी का छिड़काव भी आवश्यक है।
डॉ. शिवधर मिश्रा ने कहा कि जैविक खाद के प्रयोग से रोगों में रोधकता आने से मानव के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। प्रत्येक किसान, जिसके यहां गोबर उपलब्ध है, आसानी से अपने घर पर जैविक खाद बनाकर तैयार कर सकता है। किसान डीएपी, एसएसपी और यूरिया खरीदने में जितना पैसा खर्च करता है, उससे कम पैसे में विंड्रोव कम्पोस्टिंग से फसल अवशेष खर-पतवार, वनस्पति कचरा से खाद बनाकर भरपूर फसल पैदा कर सकते हैं। साथ ही मिट्टी को नरम बनाने के साथ-साथ पोषक तत्वों की उपलब्धता को भी लंबे समय तक बनाये रख सकते हैं। विंड्रोव कम्पोस्टिंग लवणीय और क्षारीय भूमि में भी प्रभावी रुप से काम करता है, जबकि डीएपी ऐसी भूमि में काम नहीं करता।