अन्नदाता देश की जीवन रेखा है। किसी भी देश का विकास खेतीबाड़ी के विकास के बिना अधूरा है। देश की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने का पूरा श्रेय हमारे किसानों यानी अन्नदाता को ही जाता है। एक समय था, जब हम अनाज के लिए पश्चिमी देशों पर निर्भर थे। देश में हरित क्रांति के बाद हालात तेजी से बदले। आज देश की तुलना दुनिया के बड़े अन्न उत्पादक देशों से हो रही है। इसमें काफी हद तक अत्याधुनिक तकनीकों का भी योगदान है। इसलिए खेतों में उन्नत पैदावार के लिए अब किसान समेकित कृषि प्रणाली यानी इंट्रीग्रेटेड फार्मिंग की तरफ रूख कर रहे हैं। और इसमें सफल होकर दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहे हैं।
एक अनुमान के मुताबिक मौजूदा समय में दुनिया की आबादी 7.7 अरब से ज्यादा है। इस दशक के अंत तक ये आंकड़ा बढ़कर क़रीब साढ़े आठ अरब होने का अनुमान है। वहीं आने वाले चार दशकों में भारत की आबादी 1.7 अरब के आंकड़े को पार कर सकती है। आने वाले समय में विश्व के सामने सबसे बड़ी चुनौती अनाज जुटाने की होगी। बता दें जनसंख्या जिस रफ्तार से बढ़ती है, उस रफ्तार से अनाज का उत्पादन नहीं होता, इसलिए दुनिया में आबादी के अनुपात में खाद्यान की हमेशा कमी रहती है। एक अनुमान के मुताबिक जनसंख्या वृद्धि की रफ़्तार एक से दो, दो से चार, चार से आठ और फिर आठ से सोलह होती है, वहीं खाद्यान्न उत्पादन की गति एक से दो, दो से तीन, तीन से चार और फिर चार से पांच होती है। यानी सौ साल बाद देश की आबादी को खिलाने के लिए अनाज कम पड़ने लगेगा।
देश में किसान जब से आधुनिक तरीके से समेकित कृषि प्रणाली से खेती करने लगे हैं, खेती में घाटे का रोना थमने लगा है। दरअसल, कृषि के कई उद्यमों जैसे फसल उत्पादन, मवेशी पालन, फल तथा सब्जी उत्पादन, मछली पालन, वानिकी इत्यादि का एक दूसरे के पूरक के रूप में एक साथ समायोजन कर तेजी से किसान समन्वित कृषि प्रणाली अपनाते जा रहे हैं। चूंकि ये स्व-सम्पोषित प्रणालियां अवशेषों के चक्रीय प्रवाह के साथ ही साथ जल और पोषक तत्वों आदि के निरंतर प्रवाह पर आधारित हैं, इसलिए इससे कृषि लागत में कमी आ रही है और दूसरी ओर लगातार आमदनी और रोजगार में बढ़ोत्तरी हो रही है।
IARI पूसा नई दिल्ली के कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि किसानों को खेती के घाटे से उबरने के लिए नई कृषि प्रणालियों को अपनाना होगा। इससे उनकी आय दोगुनी हो सकती है। इस दिशा में सरकार भी मदद का हाथ बढ़ा रही है। हमारे देश में समेकित कृषि प्रणाली का प्रयोग सफल हो रहा है। खासकर छोटे किसान समेकित कृषि प्रणाली के माध्यम से अच्छी कमाई कर सकते हैं। समेकित कृषि प्रणाली अपनाकर किसान अपने खेतों में संग्रहित जल से फसल आच्छादन बढ़ा सकते हैं। और उपलब्ध संसाधनों का भरपूर दोहन करते हुए अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं। इसके लिए ये आवश्यक हो गया है कि कृषि में फसल के साथ-साथ अन्य घटकों को भी समेकित किया जाए। जिससे किसान को हर साल आय मिलती रहे साथ ही कई घटकों के अवशेषों को भी संसाधनों के रूप में पुनर्चक्रण किया जाए जो पर्यावरण की दृष्टि से भी लाभकारी हो।
आच्छादन हमारे द्वारा पहने हुए उन कपड़ों की तरह हैं जो हमें गर्मी-सर्दी, धूप-ठण्ड से बचने में सहायता करते हैं। ठीक उसी प्रकार आच्छादन भूमि की भी रक्षा करता है। इस आच्छादन में विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तु निवास करते हैं। यही जीव-जन्तु आच्छादन के साथ मिलकर भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
आच्छाजन करने से खेत में नमी संरक्षित रहती है, जिससे सिंचाई के अंतराल को बढ़ाये जाने पर भी फसल को पानी मिलता रहता है। साथ ही यह घास नहीं उगने देता एवं खरपतवार नियंत्रित करता है। मिट्टी मुलायम रहने से जड़ों का विकास अच्छा होता है और बिना वीडर चलाए मिट्टी में हवा पानी का संचरण सही होता है। फसल उगाने में लागत भी कम लगती है और उपज भी सामान्य विधि की अपेक्षा अधिक होती है। सूखी जलवायु में सभी किसानों को ये तकनीक अपनाने की आवश्यकता है। धान के नीचे का भाग छोड़कर काटने पर उसमें तुरंत ही गेहूं की बुआई करनी होती है। सिंचाई जब कलियां निकलते समय और बालियां निकलते समय करनी होती है। इसकी पहली सिंचाई 20 से 25 दिन पर और दूसरी सिंचाई बालियां निकलने के समय करना चाहिए।
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के इस दौर में किसानों को खेती में समस्या उत्पन्न हो रही है। असमय, अनियमित और अपर्याप्त बारिश होने से छोटे एवं सीमान्त किसानों को रबी मौसम में गेहूं की खेती करने में समस्या हो रही है। इसके लिए आच्छाजन यानि मल्चिंग एकीकृत गेहूं की खेती किसानों के लिए लाभकारी है। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि गेहूं अंकुरण के तुरंत बाद, धान पुआल या अन्य फसलों के अवशेषों की कतारों से जमीन को ढक देने से भी जमीन से नमी का हृास कम होता है और सिंचाई कम करनी पड़ती है। इसके लिए धान की कटाई के पहले किसानों को ये सुनिश्चित करना होगा कि धान की फसल जड़ से न काटी जाए, लगभग 10 इंच नींचे से छोड़ कर कटाई की जाये। 10 इंच नीचे से छोड़ देने पर बिना जुताई इन-क्लाइंड प्लेट यानी श्रीविधि ट्रेक्टर ड्रान सीड ड्रिल से बीज की बुआई करने से कम पानी में भी गेहूं की अच्छी पैदावार होती है।
आपको बता दें मसाला उत्पादन में भारत दुनिया में सबसे आगे है। हर साल यहां 1.5 मिलियन टन मसालों का उत्पादन होता है। दुनिया भर में भारत से भेजी हुई चाय पी जाती है। भारत की 50 फीसदी चाय की खेती असम में होती है। चावल की खेती करने वाले देशों में चीन के बाद भारत सबसे ज़्यादा चावल का प्रोडक्शन करता है। भारत एक ऐसा देश है, जहां से केले पूरी दुनिया में भेजे जाते हैं। गन्ने की पैदावार के मामले में भारत विश्व में दूसरे स्थान पर है। भारत को जितनी विदेशी आय आईटी क्षेत्र से प्राप्त होती है उसके बराबर ही कृषि क्षेत्र से भी प्राप्त होती है। भारत विश्व में उर्वरक (फर्टिलाइजर) का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता देश है। आम, केला, चीकू, खट्टे नींबू, काजू, नारियल, काली मिर्च, हल्दी के उत्पादन में भारत पहले नंबर पर है। फलों और सब्जियों के उत्पादन में भारत का स्थान दुनिया में दूसरा है।
आपको बता दें तेज धूप, बारिश और जाड़े में खेतों में हाड़ तोड़ मेहनत करने वाले किसानों को उतना लाभ नहीं मिल पाता जितना उन्हें मिलना चाहिए। कृषि विभाग खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के साथ ही गेहूं, धान, दलहन व तिलहन जैसी परंपरागत खेती के साथ ही पशुपालन, मुर्गी पालन, मछली पालन, मधुमक्खी पालन करने के प्रति किसानों को जागरूक करता है। बता दें कृषि में हमारे पूर्वजों ने कभी भी सिर्फ एक फसल उपजाने की कल्पना की ही नहीं। आज भले ही यह प्रचलन-सा हो गया है कि धान बोओ और काटो, फिर गेहूं बोओ और काटो। इसलिए अब अपने खेत में सब कुछ उगाओ जैसे अन्न भी, सब्जी फल और मसाला भी। और यही समय की मांग भी है।