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किसानों के लिए वरदान है हाइड्रोजेल

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की अर्थव्यवस्था खेती पर निर्भर है। देश में जल की कमी के चलते फसल की सिंचाई करना गंभीर समस्या है। मौजूदा समय में कई राज्यों में जल की कमी के चलते, फसल को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। ये बात हम यूं ही नहीं कह रहे हैं। दरअसल पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में जहां कभी हरियाली लोगों का मन मोह लेती थी। वहीं आज आलम ये है कि ये डार्क जोन की श्रेणी में शामिल हो चुके हैं, यहां जमीन से पानी निकालना काफी मुश्किल हो गया है, और अगर इसी तरह चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं, जब आने वाले समय में पानी की कमी के चलते, खेती करना मुश्किल हो जाएगा। लेकिन इस विराट समस्या का समाधान संभव है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) पूसा नई दिल्ली के कृषि वैज्ञनिकों ने, जल संकट के लिए नई तकनीक विकसीत की है, जिसका नाम हाइड्रोजेल है। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर किसान इस नई तकनीक हाइड्रोजेल का खेती में इस्तेमाल करेंगे, तो कम पानी में फसलों से अच्छी पैदावार ले सकेंगे।

हाइड्रोजेल से कम पानी में करें बंपर पैदावार

खेती में पानी के बेहतर इस्तेमाल की बात यहां हम इसलिये हम कर रहे हैं, क्योकि एक अनुमान के मुताबिक देश में पानी की जितनी खपत होती है, उसका 85 फीसदी हिस्सा खेती के काम में लिया जाता है। औद्योगिक क्षेत्रों में 15 फीसदी और घरेलू क्षेत्रों में 5 फीसदी पानी का इस्तेमाल होता है, लेकिन जिस तरह देश की आबादी में बढ़ोत्तरी हो रही है, और कल कारखाने खुल रहे हैं, उससे आने वाले समय में पानी की खपत बढ़ जाएगी। जिसका परिणाम ये होगा कि खेती के लिये किसानों के सामने पानी की विकट समस्या खड़ी हो जाएगी। आपको बता दें देश में जितनी खेती होती है उसमें से 60 फीसदी खेती ऐसे इलाकों में की जाती है जहां पर पानी का संकट बरकरार रहता है। और तो और 30 फीसदी इलाकों में पर्याप्त वर्षा भी नहीं हो पाती है। हालांकि ऐसा नहीं है, कि जलसंकट केवल भारत में ही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्व के 181 देशों में जलसंकट है, और भारत का स्थान इस सूची में 41वां है। इसलिये अब किसानों को सिंचाई में ऐसी तकनीक का इस्तेमाल करना होगा, जिससे पानी का बेहतर-से-बेहतर इस्तेमाल किया जा सके, और हाइड्रोजेल इसी समस्या का एक विकल्प है। बस जरुरत है तो कृषि वैज्ञानिकों की ओर से बताई गई इस तकनीक को अपनाने की।

जानिए हाइड्रोजेल क्या है और ये कैसे काम करता है ?

कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक हाइड्रोजेल एक मिश्रित क्रॉस-लिंक पदार्थ है। जो कि परमाणुओं से बनाया गया है। हाइड्रोजेल एक सफेद अनाज जैसा दिखता है। इसका निर्माण रासायनिक प्रक्रिया से किया जाता है। पानी के संपर्क में आने के बाद ये जैल में तब्दील हो जाता है। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक हाइड्रोजेल का निर्माण ग्वार फली से किया गया है, जो कि पूरी तरह से प्राकृतिक पॉलिमर है। जिसमें पानी को सोख लेने की क्षमता अधिक होती है। लेकिन ये पानी में नहीं घुलता है। इसके अलावा हाइड्रोजेल बायोडिग्रेडेबल होता है। जिसे सुपर एब्सॉर्बेंट पॉलिमर, वॉटर जेल, एसएपी यानि सुपर एब्सॉर्बेंट पॉलिमर और अन्य कई नामों से भी जाना जाता है। हाइड्रोजेल पानी को सोखकर 10 मिनट में ही फूल जाता है, और ये जैल में तब्दील हो जाता है। जैल में बदला ये हाइड्रोजेल गर्मी या तापमान से भी नहीं सूखता है। जिसके काऱण प्रदूषण का भी कोई खतरा नहीं रहता है। इसका इस्तेमाल उस समय किया जाता है जब फसलों को पानी की ज्यादा जरूरत होती है। जब आप अपने खेतों में हाइड्रोजेल का इस्तेमाल करते हैं, तो हाइड्रोजेल के कण सिंचाई या बारिश के समय अपनी क्षमता से 350 से 500 गुना अधिक पानी सोख लेता है। और पानी को सोख कर पौधे की जड़ से चिपक जाता है। और जब खेतों में बारिश और सिंचाई की कमी होती है, तो हाइड्रोजेल के कण से पानी रिसकर खेत में नमी बनाये रखता है। अगर खेतों में दोबारा बारिश और सिंचाई की जाती है, तो ये हाइड्रोजेल के कण दोबारा पानी को सोख लेते हैं, और ये आवश्यकतानुसार फसल में नमी को बनाये रखते हैं।

हाइड्रोजेल कम खर्च में जल संकट से निपटरा

हाइड्रोजेल फसल के उत्पादन में लगने वाली लागत को कम करता है। हाइड्रोजेल के इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरा शक्ति पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है। ये फसल के विकास में मदद करता है। साथ ही अधिक समय तक भंडारण के लिए फसल में नमी को बनाये रखता है। ये पानी और पोषक तत्वों को 40 से 60 फीसदी तक बचाये रखता है। इतना ही नहीं ये पौधों को कवक और अन्य बीमारियों से भी बचाता है। एक बार इसका इस्तेमाल करने से ये पांच साल तक काम करता है। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक मक्का, गेहूं, आलू, सोयाबीन, सरसों, प्याज, टमाटर, फूलगोभी, गाजर, धान, गन्ना, हल्दी, जूट आदि अन्य फसलों में हाइड्रोजेल का इस्तेमाल करके पाया गया है, कि इससे फसल की उत्पादकता बढ़ती है

कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक बाजार में हाइड्रोजेल की कीमत 1 हजार से लेकर 1200 रुपये प्रति किलो के आस-पास है। किसानों को बुवाई के दौरान एक एकड़ के खेत में 1 से 1.5 किलोग्राम हाइड्रोजेल का इस्तेमाल करना होता है और रेतीली भूमि में इसकी मात्रा 2.5 किलोग्राम प्रति एकड़ दी जाती है। 1 किलो हाइड्रोजेल की 10 किलो मिट्टी में मिलाकर ये बीज के साथ बोया जाता है।

आपको बता दें बदलते परिवेश में हाइड्रोजेल अनियमित वर्षा के चलते फसल के नुकसान को रोकने के लिए वरदान साबित हो सकता है। हाइड्रोजेल खेती की प्रक्रिया के दौरान मिट्टी के कटाव और उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग को रोककर जल संरक्षण का काम कर सकता है, हाइड्रोजेल तकनीक भविष्य में खेतीबाड़ी के लिए अच्छी कारगर साबित हो सकती है, लेकिन वर्तमान में इसकी लागत अधिक होने के चलते इसका उपयोग सीमित है। फसलों के लिए इस तकनीक का सस्ता होना बहुत जरूरी है। अन्यथा इसके प्रयोग का कोई फायदा नहीं होगा, महंगी होने के चलते ये तकनीक अभी केवल महंगी फसलों के उपयोग में लिए लाई जा रही है।