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कैसे होगी गंगा साफ?

गंगा एक ऐसा शब्द है जिसे सुनते ही मन में पवित्रता की अनुभूति होती है, लेकिन क्या गंगा अब पवित्र रही ? हमारे लिए गंगा सिर्फ नदी ही नहीं बल्कि जीवन दायिनी है, सांस्कृतिक मान्यताओं से जुड़ी एक आस्था है, जिसमें डूबकी लगाने से इंसान के सारे पाप धुल जाते हैं। लेकिन हमने अपने पाप धुलने के अलावा इसमें सब कुछ प्रवाहित करना शुरू कर दिया है जिससे गंगा इतनी मैली हो गई है कि गंगा का अस्तित्व ही खतरे पड़ गया है। आज गंगा सिर्फ कूड़ा-कचरा बहाकर ले जाने वाला नाला बनकर रह गई है। जो हमारे पापों को धुलकर हमें शुद्धि प्रदान करती थी आज वो हमारे कारण खुद ही मैली हो गई है। जिस गंगा पर हमें गर्व होता था, आज उसी गंगा को हमारी वजह से लज्जित होना पड़ रहा है। आपको पता है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है, सिर्फ हम और आप। इसलिए गंगा के शुद्धिकरण के लिए हम सबको तुरंत ही बड़े कदम उठाने चाहिए।

हिमालय की चोटियों से गंगा का उद्गम होता है और यह पूरे उत्तर भारत को गंगा जल उपलब्ध कराते हुए बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। गंगा में अपने जल को साफ करने की खुद ही विशाल क्षमता है जिसका कारण है गंगा में उपलब्ध विषाणु-जीवाणु जो गंगाजल को हमेशा शुद्ध बनाए रखते हैं। इसी वजह से गंगाजल को वर्षों तक संरक्षित रखा जा सकता है और ये जल कभी खराब नहीं होता। लेकिन अब ऐसा नहीं है, क्योंकि गंगा में उपस्थित विषाणु-जीवाणु गंगा में मिलने वाले हानिकारक रसायनों की वजह से नष्ट होते जा रहे हैं। गंगा के अशुद्ध होने के पीछे बहुत से कारण हैं, इसलिये गंगा एक दिन में शुद्ध नहीं हो सकती। हमारी सरकारों ने गंगा शुद्धिकरण के लिये निरंतर प्रयास किये हैं जो लगातार जारी भी हैं, लेकिन इन प्रयासों का असर जमीन पर दिखाई नहीं दे रहा। दरअसल इस कार्य को एक सुनियोजित एवं व्यवस्थित ढंग से करने की जरुरत है। लेकिन सबसे पहले समस्या की जड़ को समझना होगा, फिर उसे कैसे ठीक किया जाए उस विषय में सोचना होगा। पहले हमें अत्यन्त आवश्यक समस्याओं का निवारण करना होगा- जैसे कि कारखानों से आने वाला व्यर्थ पदार्थ एवं दूषित जल प्रवाह जो गंगा में मिलता है उसको कैसे कम किया जा सकता है? प्लास्टिक कचरे को गंगा नदी से कैसे दूर रखा जाये, औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले अपशिष्ट को अलग-अलग बांटा जाये जैसे कि केमिकल अपशिष्ट, प्लास्टिक अपशिष्ट को अलग-अलग तरीकों एवं तकनीकों से अपघटित किया जाये, मानवीय अपशिष्ट को खाद में परिवर्तित किया जाये न कि गंगा में बहाया जाये।

हमारे देश में कोई पर्व हो गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है। देश भर के लोग गंगा स्नान करने के लिए अलग-अलग तटों पर जुटते हैं और स्नान करते हैं पर साबुन,शैम्पू के रुप में कई तरह के हानिकारक रसायन भी इसमें प्रवाहित कर देते हैं जिससे हमारी गंगा दूषित होती है। त्योहारों के मद्देनजर प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं फिर उसे गंगा या किसी नदी में विसर्जित किया जाता है जो गंगा के लिए बेहद ही हानिकारक है। ऐसा लगता है कि गंगा को हम मां तो कहते हैं लेकिन उनके साथ हम जो करते हैं उससे तो यही साबित होता है कि आपके मन में गंगा के प्रति ना तो श्रद्धा है और ना ही आप गंगा को साफ करना चाहते हैं, ऐसे में गंगा कैसे साफ होगी।

गंगा तथा अन्य नदियों की सफाई के लिए विभिन्न योजनाएं बनाई गईं जैसे कि गंगा एक्शन प्लान, यमुना एक्शन प्लान, नमामि गंगे और अन्य कई योजनाएं समय-समय पर कार्यान्वित होती रही हैं लेकिन इन सब योजनाओं का कोई विशेष प्रभाव गंगा की सफाई या अन्य नदियों की सफाई पर नहीं हो रहा है आखिर ऐसा क्यों?

गंगा दिन-प्रतिदिन इतनी मैली क्यों होती जा रही है? हम अपने पहले वाले ब्लॉग में बता चुके हैं लेकिन एक बार फिर इसके मुख्य कारणों को जान लेते हैं, तभी हम गंगा की वर्तमान स्थिति में कुछ सुधार की अपेक्षा कर सकते हैं। अगर ध्यानपूर्वक देखा जाये तो गंगा के प्रदूषण के दो ही मुख्य कारण हैं-

1. पहला कारण-गंगा में प्रदूषित पानी का छोड़ा जाना- सिर्फ गंगा नदी में ही गंदगी नहीं गिराई जाती है बल्कि जितने भी सहायक नाले व छोटी नदियां हैं उन्हें भी उतना ही दूषित किया जाता है और अंत में ये सभी नदियां गंगा में अपनी गंदगी के साथ मिल जाती हैं। इन नालों में शहर के घरों के सीवर का द्रव्य, कल-कारखानों से निकलने वाले हानिकारक रासायनिक पदार्थ, बरसात के दिनों में पानी के साथ बहने वाली गन्दगी जैसे कि पालिथीन, कागज, लकड़ी, प्लास्टिक व अन्य प्रकार का कूड़ा-करकट सभी कुछ बहता हुआ गंगा में समा जाता है और जल प्रदूषण का कारण बनता है।

2. दूसरा कारण-गंगा में पानी की कमी का होना- किसी भी नदी में जल प्रवाह के दो मुख्य स्रोत होते होते हैं। पहला बरसात का पानी व दूसरा पहाड़ों पर बर्फ के पिघलने से आने वाला जल। बरसात के दिनों में गंगा में प्रचुर मात्रा में पानी उपलब्ध रहता है, लेकिन गर्मियों में गंगा में जल सिर्फ ग्लेशियरों की बर्फ के पिघलने से ही आता है। इस पानी का उपयोग गंगा बेसिन में विभिन्न प्रयोजनों- जैसे पीने के लिये, सिंचाई के लिये, कारखानों के लिये, तापीय विद्युत संयंत्र आदि में होता है। जो पानी इस्तेमाल के बाद बचता है और विभिन्न नालों का पानी गंगा में प्रवाहित होता रहता है वह ही गंगा में जल की मात्रा के रूप में रह जाता है। यानि बारिश के दिनों के अलावा गंगा में पानी की उपलब्धता काफी कम हो जाती है और गंगा में हरिद्वार से लेकर पटना और उसके आगे भी केवल नालों का गन्दा पानी ही प्रवाहित होता रहता है। अतः गंगा में शुद्ध जल की अपेक्षा अपवित्र पानी की मात्रा अधिक हो जाती है।

गंगा की सफाई के लिये किये गए प्रयास एवं उनके परिणाम

1. सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट:सरकार की तरफ से जगह-जगह सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए हैं, जिस पर काफी बजट भी खर्च किया गया परन्तु परिणाम आशा के अनुसार नहीं निकल सका इसके कई कारण हैं- जिनमें से मुख्य है सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में आने वाले पानी का प्रदूषण स्तर डिजाइन किये गए पानी के स्तर के अनुरूप नहीं है। जिसके कारण या तो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट काम नहीं कर रहे हैं या अगर कर भी रहे हैं तो अपनी कार्यक्षमता से काफी कम पर कार्य कर रहे हैं। इस कारण से सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने से गंगा की सफाई में ज्यादा प्रगति नहीं हुई और व्यय किये गए धन का सदुपयोग नहीं हो पाया है।

2. नदी में कचरा फेंकने पर रोक:कई मुख्य पुलों पर जहां से लोग अपनी धार्मिक भावनाओं के कारण विभिन्न प्रकार के फूल, पत्ती, पॉलिथीन, मूर्तियां, अस्थियां, राख इत्यादि नदी में प्रवाहित करते हैं, को रोकने के लिये लोहे की जाली आदि लगाने का कार्य किया गया है, लेकिन यह भी अपेक्षित रूप से प्रभावी नहीं हुआ है। इस प्रथा को रोकने के लिये लोगों में जागृति पैदा करने की आवश्यकता है। इसमें कुछ हद तक सफलता प्राप्त हुई है, किन्तु अपेक्षित परिणाम नहीं निकल सके एवं गंगा में प्रदूषण कम नहीं हुआ।

3. नदियों के किनारे कंस्ट्रक्शन मेटीरियल फेंकने पर रोक:इसके तहत भी कुछ जगहों पर करवाई की गई किन्तु अपेक्षित परिणाम नहीं निकल सके ।

4. तालाबों का विकास:बाढ़ के पानी को छोटे-छोटे तालाबों में भरने के लिये किए गए प्रयास भविष्य में एक बड़ा कदम साबित हो सकते हैं । तालाब गांव की पारिस्थिति के अनुसार संतुलन बनाने के लिए आवश्यक अंग है अतः तालाबों को विकसित करने की आवश्यकता है। इस प्रकार जल संरक्षण का दायित्व भी पूरा हो सकेगा और स्थानीय गन्दगी तालाब में एकत्र होकर स्थानीय रूप से सुरक्षित तरीके से विघटित हो जाएगी तथा नालों के माध्यम से नदी में कम गन्दगी जाएगी।

5. रसायनिक पदार्थ पर रोक -गंगा नदी में जिस तरीके से उद्योगों व पॉवर प्लांट से रसायनिक पदार्थों को सीधे गंगा में फेंका जाता था उस पर रोक लगाई गई है जिससे कुछ सफलता मिली है किन्तु ज्यादातर उद्योगों से कुछ-न-कुछ रसायन नालों के जरिए नदी में फेंका जा रहा है जिसके कारण नदी में प्रदूषण बढ़ता है।

जैसा कि हम लगातार जिक्र कर रहे हैं कि गंगा की सफाई को लेकर किस तरीके से समय-समय पर प्रयास किए गए लेकिन उसका परिणाम देखने को नहीं मिल रहा है। 2014 में नई सरकार बनी, जिसमें गंगा सफाई को सबसे ज्यादा प्राथमिकता दी गई और नमामि गंगे जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय भी बनाये गए, लेकिन उसका भी बहुत ज्यादा असर नहीं दिखता है। अगले ब्लॉग में हम आपको बताएंगे कि 2014 के बाद अब तक गंगा सफाई को लेकर क्या-क्या प्रयास हुए हैं और उसका असर कितना है।
धन्यवाद