राष्ट्रीय फल आम का भारतीय संस्कृति से गहरा संबंध है। आम का नाम सुनते ही मुंह में अनोखा रस घुल जाता है। इसीलिए आम को फलों का राजा कहा जाता है। आम की 1 हजार 500 से अधिक प्रजातियां पूरे विश्व में पाई जाती हैं। जिनमें से 1 हजार प्रजातियां भारत में ही पाई जाती हैं। आम का काजू और पिस्ता की प्रजातियों से सम्बंध है। आम का पेड़ 100 फिट तक बड़ा हो सकता है। अपने स्वाद के कारण देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी इसकी बहुत मांग है। पूरे विश्व में आम के उत्पादन में से भारत पहले स्थान पर है। आम की प्रमुख किस्मों में दशहरी, लंगड़ा, फजली, सुंदरी, मालदा और चौंसा हैं। ये हरे, पीले और नारंगी रंग में पाये जाते हैं। आम एक मीठा फल है। स्वाद के साथ-साथ गुणों की खान है आम। अगर आप भी आम की खेती कर अच्छी कमाई करना चाहते हैं। तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में पूरी जानकारी देंगे।
आम स्फूर्तिदायक और ताजगी देने वाला फल है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट (Antioxidant), एंटी लिपिड पेरोक्सीडेशन(anti-lipid peroxidation), कार्डियोटोनिक (cardiotonic), हाइपोटेंशन (Hypotension) एंटी डिजनरेटिव (anti- Degenerative) और एंटीडायबिटिक (Anti-Diabetic) जैसे गुण मौजूद होते हैं। आम में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट (Antioxidant) कोलोन कैंसर (Colon cancer), ल्यूकेमिया (Leukemia) और प्रोस्टेट कैंसर (Prostate cancer) से बचाते हैं। इसमें क्यूर्सेटिन, एस्ट्रागालिन और फिसेटिन जैसे भी कई तत्व पाये जाते हैं। जो कि हमारे शरीर को कैंसर से बचाव करते हैं। आम में विटामिन ए भरपूर होता है, जो कि आंखों के लिए वरदान है। इससे आंखों की रोशनी बनी रहती है। आम में फाइबर और विटामिन सी भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। साथ ही संक्रमण से भी बचाव करता है। इसके सेवन से बैड कोलेस्ट्रॉल (Bad Cholesterol) को कंट्रोल किया जाता है। आम के गूदे का पैक लगाने या फिर उसे चेहरे पर मलने से चेहरे पर निखार आता है। आम में ऐसे कई एंजाइम्स (Enzyme) होते हैं, जो कि प्रोटीन को तोड़ने का काम करते हैं। जिसके चलते भोजन जल्दी पच जाता है। साथ ही इसमें मौजूद टरटैरिक एसिड (tartaric acid), साइर्टिक एसिड (citric acid) हमारे शरीर के अंदर क्षारीय तत्वों का संतुलन बनाने में सहायक होते हैं।
आम से आप अपना मोटापा कम कर सकते हैं। दरअसल आम की गुठली में मौजूद रेशे शरीर की अतिरिक्त चर्बी को कम करने में फायदेमंद होते हैं। आम खाने के बाद भूख कम लगती है, जिससे ओवर ईटिंग(Overeating) का खतरा कम रहता है। आम खाने से शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता में भी इजाफा होता है। जिन लोगों को भूलने की बीमारी है, उन्हें आम का सेवन करना चाहिए। इसमें पाया जाने वाला ग्लूटामिन एसिड (Glutamine acid) नामक तत्व स्मरण शक्ति को बढ़ाता है। साथ ही इसके सेवन से रक्त कोशिकाएं यानि blood cell भी सक्रिय रहती हैं। इसीलिए गर्भवती महिलाओं को आम खाने की सलाह दी जाती है। गर्मियों में अगर आपको दोपहर में घर से बाहर निकलना है तो एक गिलास आम का पना पीकर जरूर निकलिए। इससे न तो आपको धूप लगेगी और न ही लू। दरअसल आम का पना हमारे शरीर में पानी के स्तर को संतुलित रखता है। एक कप मैंगो शेक में 100 कैलोरी (Calorie) की मात्रा पाई जाती है। आयुर्वेद में भी आम का विशेष महत्व है। आम के पेड़ के अलग-अलग भागों में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं आम के पौधे की छाल में टैनिन(Tannin) नामक पदार्थ पाया जाता है, जिसका उपयोग रंगाई के लिए किया जाता है।
देश में आम की 250 से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं, लेकिन 40 किस्म के ही आम देश के ज्यादातर हिस्सों में पाये जाते हैं। इनमें दशहरी, लंगड़ा, हिमसागर, चौंसा, लाल पट्टा, बादामी, तोता परी, नीलम, केसर और अल्फांसो आम आदि किस्में मुख्य हैं। जिसमें से चौंसा, लाल पट्टा, दशहरी,लंगड़ा आदि आम की किस्में मई मध्य तक बाजार में आ जाती हैं। ताजा आंकड़ों के मुताबिक देशभर में कुल 2 हजार 516 हेक्टेयर में आम की पैदावार होती है। जिससे 18 हजार 431 हजार मिट्रिक टन आम का पैदा होता है। भारत में आम उत्पादकता 7.3 टन प्रति हेक्टेयर है। देश में आम उगाने वाले राज्यों में से उत्तर प्रदेश में 2 लाख 59 हजार 800 हेक्टेयर, बिहार में 1 लाख 46 हजार 200 हेक्टेयर, आन्ध्र प्रदेश में 2 लाख 7 हजार 600 हेक्टेयर, उड़ीसा में 53 हजार 200 हेक्टेयर, केरल में 75 हजार 500 हेक्टेयर, पश्चिम बंगाल में 55 हजार 100 हेक्टेयर, तमिलनाडू में 55 हजार 800 हेक्टेयर, कर्नाटक में 80 हजार 800 हेक्टेयर, पंजाब में 12 हजार 200 हेक्टेयर, मध्य प्रदेश में 20 हजार 700 हेक्टेयर, गुजरात में 3200 हेक्टेयर और महाराष्ट्र में 49 हजार 900 हेक्टेयर में आम की पैदावार होती है। देश के उत्तरी भाग में दशहरी, लंगड़ा, चौसा, बम्बई हरा, मलिका और आम्रपाली की पैदावार की जाती है। पूर्वी भाग में हिमसागर, फजरी, लंगड़ा, जरदालू, कृष्ण भोग और गुलाबखास की पैदावार होती है। पश्चिमी भाग में अलफैजो, पैरी, केसर, राजापुरी और जमादार और दक्षिणी भाग में बंगलौरा, नीलम, स्वर्णरखा, पैरी, मलगोवा और अलफैजो की बंपर पैदावार होती है।
आम की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। जबकि अधिक बलुई, पथरीली, क्षारीय और जल भराव वाली भूमि में इसकी पैदावार नहीं होती है। आम की खेती के लिए भूमि का पीएच. मान सामान्य होना चाहिए क्योंकि अधिक क्षारीय भूमि यानि शुष्क जलवायु वाली भूमि में इसकी पैदावार कम ही देखने को मिलती है। आम के पौधे को शुरुआत में विकास करने के लिए 20 डिग्री के आसपास तापमान की आवश्यकता होती है, उसके बाद पौधे पर फूलों से फल लगने और उनके विकास के लिए 27 डिग्री के आसपास तापमान की जरुरत होती है।
आम के पौधे को शुरुआत में अच्छे विकास के लिए उचित मात्रा में उर्वरक की आवश्यकता होती है। इसके लिए खेत में सबसे पहले गड्ढे तैयार करते हैं और प्रत्येक गड्ढे में 25 किलो पुरानी गोबर की खाद को डालकर मिट्टी में मिला देते हैं। इसके अलावा उसमें 150 ग्राम एनपीके की मात्रा को तीन बराबर भागों में बांटकर 1 साल के अंतराल में तीन बार दिया जाता है। और जब पौधा तीन साल का हो जाए और फल देना शुरू कर दें तब उर्वरक की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए। इससे पौधे का अच्छे से विकास होता है और फल भी अधिक मात्र में लगते हैं।
आम के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। शुरुआत में 1 साल के अंतराल में इसके पौधे को 12 से 15 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है। पौधे की पहली सिंचाई पौध रोपण के तुरंत बाद करनी चाहिए। उसके बाद पौधे के विकास करने तक नमी बनाये रखने के लिए पौधों को समय-समय पर पानी देते रहना चाहिए। पौधे को गर्मियों में सप्ताह में एक बार पानी जरूर देना चाहिए और सर्दियों में 15 से 20 दिन के अंतराल में पानी देते रहना चाहिए। जैसे-जैसे पौधे का विकास होता है वैसे-वैसे पौधों की सिंचाई करने का समय भी बढ़ा देना चाहिए। जब पौधा पूर्ण रूप से बड़ा हो जाए, तो साल में दो से तीन बार ही सिंचाई की जरूरत होती है। जब पौधे पर फूल लग जाएं तो पौधों की सिंचाई नहीं करना चाहिए। क्योंकि इस दौरान पानी देने पर पौधे से फूल झड़ जाते हैं, और पैदावार भी कम हो जाती है। जब फल आ जाएं तो फल के विकास के लिए पौधों को समय-समय पर पानी देते रहना चाहिए।
आम के पूर्ण विकसित एक पौधे से एक बार में 100 से 150 किलो तक फल प्राप्त कर सकते हैं। एक एकड़ में लगभग 400 पौधे आसानी से लगाए जा सकते हैं और इन पौधों के पूर्ण विकसित होने के बाद किसान 40 से 60 हजार किलो तक पैदावार ले सकता है। बाजार में इन्हे 20 से 50 रूपये प्रति किलो के हिसाब से आसानी से बेचा जा सकता है। इस हिसाब से किसान पूर्ण विकसित पौधों से एक बार में 8 से 10 लाख तक कमा सकते हैं। साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी अच्छी कीमत मिलती है।
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक देश में आम की खेती तो बहुत से किसान करते हैं, लेकिन कई बार आम की फसल रोग और कीट की चपेट में आ जाती है। इससे फसल को भारी नुकसान होता है। ऐसे में किसानों को इसकी रोकथाम सही समय पर कर लेना चाहिए। आम के फलों का झड़ना एक गंभीर समस्या है। अनुमान के मुताबिक आम के पौधे से लगभग 99 फीसदी फल कई चरणों में गिर जाते हैं और मात्र 1 फीसदी फल ही परिपक्व अवस्था तक पहुंच पाते हैं। अत्यधिक फलों का गिरना आम की उत्पादकता पर विपरीत असर डालता है। तो क्यों न आप अभी से अपने बगीचे में ऐसा प्रबंधन करें, जिससे आपको आम की बंपर उपज के साथ बेहतरीन क्वालिटी भी मिले। इसके लिए कुछ तकनीकों को अपनाकर आप आम की बंपर पैदावार कर सकते हैं।
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक जब आम के फल, मटर के दाने के बराबर हो जाएं तो पेड़ों की हल्की सिंचाई करनी चाहिए, उसके बाद अप्रैल के दूसरे सप्ताह में आधा किलो डीएपी और 200 ग्राम पोटाश यानि रासायनिक उर्वरक प्रति पौधे को देनी चाहिए। इसके बाद 50 ग्राम SOP यानि सलफेट ऑफ पोटाश को मई के पहले सप्ताह और तीसरे सप्ताह में दो ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर घोल तैयार कर लें, और उस घोल का आम के पौधे पर छिड़काव करें, इससे आम के फल की गुणवत्ता बेहतर होगी, अगर आपके पास ड्रीप सिंचाई की सुविधा हो तो समय-समय पर सिंचाई जरूर करें, और पौधे थाला यानि क्यारी बनाकर पुआल या फसल अवशेष से ढक देना चाहिए। जिससे थालों में नमी बनी रहे। इसके अलावा मधुमक्खियां आम की पैदावार के लिए काफी अहम हैं। इसके लिए मधुबक्से को अपने आम के बाग के पास रखें, या प्राकृतिक तौर पर मधुमक्खियों का छत्ता लगा हो तो उन मधुमक्खियों के छत्ते की देखभाल करें, इससे आम की पैदावार अच्छी होती है।
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक आम में जब बौर खिल जाएं यानि मौर लग जाएं या 50 फीसदी तक फूल आ जाएं, तब रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। नहीं तो फायदे की जगह नुकसान होने की संभावना ज्यादा रहती है। जब फल सरसों के दाने के बराबर दिख रहे हों, तभी कीट-रोगों के बचाव का इंतजाम कर लें, आम के फल पर फफूंद रोग के आने पर उसके नियंत्रण के लिए डाइथीन एम-45 (Dithane M-45) नामक दवा का छिड़काव करें। इससे आम के फल को काफी लाभ मिलता है। इसके अलावा 1 ग्राम डाइथीन एम-45 (Dithane M-45) एक लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। अगर इन उपायों के बावजूद भी आम के पेड़ से कीटों की परेशानी न जाए, और मंजर आने में देर हो, तो किसी परसिस्टेंट इनसेक्टीसाइड (persistent insecticide) की 2 मीलीलीटर दवा, एक लीटर पानी में मिलाकर इसका घोल तैयार कर लें, और इस घोल को आम के पौधे पर नींचे तने से लेकर पत्तियों पर इसका छिड़काव करें। जिसे आम भाषा में पेड़ों की धुलाई कहते हैं। इससे आम के पौधे रोग-कीट मुक्त हो जाएंगे और फलों का अच्छे से विकास होगा। अगर आम पौधे पर मिली बग कीट यानि दहिया लग जाए तो 2 ग्राम सल्फास एक लीटर पानी में मिलाकर इसका छिडकाव करें, इसके अलावा आप इसके नियंत्रण के लिए इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट यानी IPM तकनीक भी अपना सकते हैं। जैसे- नीम की पत्तियों का चूरा या करंज की खली को आम के पेड़ के एक मीटर दायरे में मिट्टी में मिला दें। जिससे जमीन में रहने वाले मिली बग कीट यानि दहिया का प्रकोप नहीं होता है। इसके अलवा पेड़ पर चढ़ने वाले कीटों को रोकने के लिए जले हुए ग्रीस या डीजल में Insecticide यानि (कीटनाशक) का चिपचिपा पेस्ट बनाकर आम के तने के चारों ओर इसका लेप लगा दें। इस तरह की कई विधियों को आप जरूरत के मुताबिक़ अपना कर आम के बगीचे को रोग और कीटों से मुक्त कर सकते हैं।
धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी आम का खासा महत्व है। इसकी पत्तियां और लकड़ी विशिष्ट अवसरों पर प्रयोग में लायी जाती हैं। इसकी पत्तियां, छाल, गोंद, फूल और फलों से अनेक प्रकार की दवाइयां भी बनाई जाती हैं। और तो और इसकी लकड़ी से फर्नीचर बनाये जाते हैं। बता दें अतीतकाल से ही आम की बराबरी कोई फल नहीं कर पाया है। इसी के चलते आम आज हर घर में अपनी उपस्थिति रखता है। किसान आम की बागवानी कर अच्छी आमदनी कमा सकते हैं।