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समेकित कृषि प्रणाली से कैसे करें पशुपालन

IARI पूसा नई दिल्ली के प्रधान कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह का मानना है कि ग्रामीणों की आमदनी का मुख्य स्रोत कृषि है। लेकिन महंगाई के इस दौर में कई बार केवल खेती करने से किसानों को अपेक्षित आमदनी नहीं हो पाती है। ऐसे में अधिक लाभ के लिए खेती के साथ पशु पालन एक बेहतर विकल्प है। खेती के साथ पशु पालन करने वाले किसान पूरे साल अच्छे मुनाफे के साथ अपनी आमदनी को बढ़ा सकते हैं। समेकित कृषि प्रणाली प्रबंधन पार्ट-3 के जरिए आइए हम आपको बताते हैं कि खेती के साथ पशुपालन कैसे करें और इससे क्या लाभ होगा।

ICAR पूसा नई दिल्ली के प्रधान कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह के मुताबिक प्राचीन समय में पशुओं की मदद के बिना खेती करना संभव नहीं था। खेती के अधिकांश काम पशुओं से ही लिए जाते थे। लेकिन बदलते परिवेश में आज पशुपालन की ओर से किसानों का रुझान कम होता जा रहा है। जिसकी वजह से उनकी आय में भी कमी आई है। डॉ. राजीव कुमार सिंह का कहना है कि पशुपालन को भले ही खेती से अलग माना जाता रहा है लेकिन सच ये है कि पशुपालन पूरी तरह से खेती का ही हिस्सा है। पशुपालन का अर्थ सिर्फ़ दुग्ध उत्पादन से नहीं बल्कि इसके अलावा, अंडे, मांस, जैविक खाद आदि से भी है। आज भी खेती के साथ पशुपालन के कई लाभ हैं। ये एक प्रकार से समेकित कृषि प्रणाली यानी (Integrated farming) का हिस्सा है, जिसमें फसलों और जानवरों दोनों को लाभ मिलता है। खेत की उपजाऊ क्षमता को बढ़ाने के लिए और फसल की अच्छी पैदावार के लिए किसानों को गोबर की खाद की आवश्यकता होती है। ऐसे में आप पशुओं के गोबर की बिक्री करके भी अच्छी कमाई कर सकते हैं। इतना ही नहीं गाय से मिलने वाले गोबर का इस्तेमाल वर्मी कम्पोस्ट और गोबर गैस बनाने के लिए भी किया जा सकता है।

आपको बताते हैं कि आप कौन-कौन से पशुओं को पाल सकते हैं

पशुपालन में गाय, भैंस, भेड़, बकरी, सूअर जैसे कई पशुओं का पालन कर सकते हैं। इसके लिए आप आधुनिक तकनीक और तरीकों का इस्तेमाल कर सकते हैं। इन दिनों तो ऐसी तकनीक भी आ गई है जिसमें गाय सिर्फ बछिया को ही जन्म देगी। डॉ. राजीव कुमार सिंह बताते हैं कि पशुपालन सामान्य तरीके से न करके सोची-समझी रणनीति के तहत वैज्ञानिक तरीके से की जाए तो यह अच्छा सौदा साबित हो सकता है। पशुपालन के तहत किसी भी पशु को खरीदते समय उसकी नस्ल का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। ये पशुपालन की श्रेणी में पहली सीढ़ी है, जिस पर चढ़कर ही आप ऊपर पहुंच सकते हैं।

अब आपको बताते हैं कि पशुओं को खरीदते समय किन बातों का ध्यान रखें

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डॉ. राजीव कुमार सिंह बताते हैं कि मवेशी की खरीदारी करते समय आपको किसी पशु चिकित्सक से बात करने के साथ ही उसकी वंशावली के बारे में भी पता करना चाहिए। अब जब आप पशुओं को खरीदकर घर ले आते हैं तो उन्हें अच्छे किस्म का चारा खिलाने की ज़रूरत पड़ती है। अच्छा पोषण देंगे तो परिणाम भी अच्छा मिलेगा। अच्छा और पौष्टिक चारा पशुओं को सेहतमंद करता है और उनकी उत्पादक क्षमता बेहतर होती है। इसके लिए भी आप किसी पशु चिकित्सक की सलाह ले सकते हैं। डॉ. राजीव कुमार सिंह के मुताबिक मौसम के अनुसार जिस तरह आप अपना ध्यान रखते हैं, वैसे ही उनका ध्यान रखना भी जरूरी है। जैसे गर्मी हो तो उन्हें पर्याप्त पानी पिलाएं, उनके रहने की जगह को ठंडा रखें। उन्हें रोजाना नहलाएं। उनके रहने की जगह को साफ रखने और खुला वातावरण देने से उनमें बीमारी का खतरा कम रहेगा। सफाई के लिए आप किसी कीटनाशक का इस्तेमाल कर सकते हैं। ताजा हवा और पर्याप्त रोशनी भी पशुओं के लिए बेहद जरूरी है।

अब आपको बताते हैं कि स्वस्थ और दुधारू पशु के क्या हैं लक्षण

डॉ. राजीव कुमार सिंह का कहना है कि दुधारू पशु पहली नजर में स्वस्थ और फुर्तीला होते हैं। उनकी चमड़ी पतली हो, ज्यादा मांस न हो, क्योंकि मोटी चमड़ी के पशु अधिक दूध नहीं देते हैं। मोटी चमड़ी और चर्बी वाले पशुओं में प्रजनन की समस्या आती है। पशु सिर की तरफ पतला और पीछे से चौड़ा हो, चौड़ी छाती हो और उसकी हड्डियां भी दिखाई न दें। पशु के पैर सीधे, चलने पर लगड़ाता न हो। आंखें चमकदार साफ स्वच्छ हों। कान चौकन्ने हों और बहते न हों। मुंह से लार न गिरती हो। पशु सामान्य स्वभाव से खाता और जुगाली करता हो।

डॉ. राजीव कुमार सिंह के मुताबिक जैसे किसानों द्वारा एक जैसी फसल न करके अपने खेत में चार- पांच तरह की फसलें उगाना कमाई का बढ़िया और सुरक्षित स्रोत साबित हो सकता है। जिसमें अगर एक फसल अच्छी न हो तो अन्य फसलें तो अच्छी होंगी। एक पर घाटा हो तो उसकी भरपाई दूसरी फसलों से की जा सके। इसी तरह पशुपालन के तहत भी आप अलग- अलग नस्ल के पशु रखें। उदाहरण के लिए, अगर आप गाय पाल रहे हैं तो एक ही नस्ल की गाय के बजाय अलग-अलग नस्ल की गायें रखें। इससे यदि एक में कोई खामी आती है तो बाकी तो ठीक रहेंगी। वहीं किसानों को आकस्मिक धन की आवश्यकता पड़ने पर वह अपने एक या दो पशु को किसी भी मौसम अथवा माह में बेचकर अपनी आवश्यकता की पूर्ति कर सकता है। क्योंकि इनका बाजार पूरे साल ही रहता है। सब्जियां तथा अन्य फसलों की तरह इनको स्टोर करने के लिये खर्चीले कोल्ड स्टोरेज अथवा गोदाम बनाने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

हमारे देश की सरकार सहित कई राज्य सरकारें खेती के साथ ही पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की स्कीम लेकर आई हैं। इसका नाम किसान क्रेडिट कार्ड है। इसके तहत न सिर्फ़ गाय- भैंस पालन बल्कि भेड़-बकरी पालन, मुर्गी पालन, मछली पालन आदि के लिए भी किसानो को कर्ज दिया जाता है। यह कर्ज 10 लाख रुपये तक का हो सकता है। इन योजनाओं में ब्याज दर पर सरकार सब्सिडी भी देती है। यानी कि इन योजनाओं के तहत लिए गए कर्ज पर ब्याज बहुत कम चुकाना पड़ता है। इस तरह के कर्ज के लिए किसान को पशुपालन और डेयरी विभाग के उपनिदेशक का एफिडेविट देने की ज़रूरत पड़ती है। साथ ही अपने पशु का बीमा भी कराना पड़ता है, जिसका खर्च बहुत कम है। साथ ही कर्ज लेने वाले को एनओसी, बिजली का बिल, आधार कार्ड जैसे कागजात भी जमा कराने होते हैं।

पशुपालन में उत्तर प्रदेश की बात करें तो पश्चिम उत्तर प्रदेश में मुख्यतौर पर भैंसें पाई जाती हैं लेकिन जैसे ही आप पूर्व की ओर बढ़ेंगे तो वहां गायों की संख्या बढ़ती जाएगी। साल 2019 की पशुगणना के मुताबिक आगरा में 10 लाख 67 हजार, बुलंदशहर में 9 लाख 72 हजार और अलीगढ़ में 9 लाख 42 हजार भैंस थीं। वहीं इन जिलों में अन्य पशुओं की संख्या क्रमश: 2 लाख 83 हजार, 3 लाख 4 हजार और 3 लाख 11 हजार थी।वहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों में भैसों की संख्या अन्य पशुओं से कम है। गोरखपुर में 2 लाख 53 हजार भैंस तो 2 लाख 87 हजार अन्य पशु हैं, देवरिया में 1 लाख 91 हजार भैंस और 2.88 हजार अन्य पशु हैं और मिर्जापुर में 2 लाख 88 हजार भैंस तो 5 लाख 11 हजार अन्य पशु हैं।

आपको बता दें खेती के साथ पशुपालन में संभावनाएं लगातार बढ़ रही हैं। दूध, दही, घी, मठा, अंडा, फल एवं चमड़े पर आधारित उद्योग सीधे पशुओं पर निर्भर करते हैं। पशुओं से प्राप्त ऊन से उत्तम गुणवत्ता के ऊनी वस्त्र, कंबल, शाल तथा कालीन बनाकर उनकी बिक्री कर लाभ प्राप्त किया जा सकता है। पशुपालन ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार का एक लाभदायक एवं उत्तम स्रोत है, विशेष रूप से लघु एवं सीमांत कृषकों तथा कृषि श्रमिकों को वर्षभर रोजगार प्रदान करता है, जबकि वे कृषि कार्य में पूरे वर्ष रोजगार प्राप्त नहीं कर सकते। पढ़-लिखकर ज़रूरी नहीं कि युवा नौकरी के लिए शहरों में पलायन करे। बल्कि अपनी शिक्षा का लाभ उठाकर नित नई तकनीक के साथ स्व-रोजगार किया जा सकता है। अपनी जड़ों तक लौटकर विकसित भारत का सपना साकार किया जा सकता है।