भागदौड़ भरी इस जिंदगी में शुद्ध फल और सब्जियां शहरवासियों के लिए तो दुर्लभ हैं ही आने वाले समय में ग्रामीण लोगों के लिए भी ये मुश्किल हो जाएंगी। आबादी का दबाव खेती लायक ज़मीन पर लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसे में हमेशा बेहतर विकल्प खोजने वाला इंसान, भला क्यों पीछे रहता। इसलिए आधुनिक दौर में खेती को लेकर दुनिया में कई तरह के नए प्रयोग किए जा रहे हैं।
इनमें हाइड्रोपोनिक यानी जलीय खेती काफी तेजी से प्रचलन में आ रही है। भारत में गांव के हालात तो कुछ ठीक हैं, लेकिन शहरों में स्थिति विस्फोटक होती जा रही है। बड़े-बड़े अपार्टमेंट्स में रहने वाले लोगों के लिए ताज़े फल-सब्ज़ियों की उपलब्धता एक बड़ा सवाल है। हाइड्रोपोनिक खेती इन समस्याओं का समाधान हो सकती है ।
हाइड्रोपोनिक खेती बिना मिट्टी के की जाती है इस तकनीक में पौधे के लिए जरूरी पोषक तत्वों की आपूर्ति पानी के माध्यम से की जाती है, जो पानी में घुलनशील होते हैं।
हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में पौधों को एक मल्टी लेयर फ्रेम के सहारे टिके पाइप में उगाया जाता है। इनकी जड़ें पाइप के अंदर पोषक तत्वों से भरे पानी में छोड़ दी जाती हैं। इस फार्मिंग की खास बात यह है कि इस तकनीक के जरिए परंपरागत खेती की तुलना में 20 से 25 गुना ज्यादा पैदावार मिलती है।
इस तरह खेती की कुछ ख़ास क्रियाओं के ज़रिए, भरपूर उपज ली जा रही है। इसमें पोषक तत्वों से घुले हुए पानी को पौधों तक एक पाइप के द्वारा पहुंचाया जाता है। नियमित अंतराल पर पौधों को पानी देने के लिए एक हाइड्रोपोनिक पंप लगाया जाता है। जरूरी पोषक तत्वों को पानी में पंप द्वारा निर्धारित अनुपात में मिलाकर पौधों के जड़ो तक पहुंचाया जाता है। इसके वजह से गुणवत्ता युक्त निर्धारित उपज मिलती है। अपने स्थान की उपलब्धता और अन्य प्राथमिकताओं के अनुसार अन्य मॉड्यूल जैसे ज़िग-ज़ैग, रेन टावर मॉड्यूल आदि के साथ भी काम कर सकते हैं। ये खेती बहुमंज़िली इमारतों में, घरों के अंदर, छतों पर यानी शहरों में आसानी से की जा सकती है। जहां खेती योग्य ज़मीन नहीं है,वहां भी लोग इस विधि से फल और सब्जियां उगा रहे हैं ।
हाइड्रोपोनिक तकनीक में पंप के जरिए पौधों तक काफी कम मात्रा में पानी पहुंचाया जाता है। इस पानी में पोषक तत्व पहले ही मिला दिए जाते हैं। अगर कमरे में करते हैं तो एलईडी बल्बों से कमरे में रोशनी की जाती है। इस प्रणाली में मिट्टी की जरूरत नहीं होती। इस तरह से उगाई गई सब्जियां और फल, खुले खेतों में ली गई उपज की तुलना में ज्यादा पोषकयुक्त और ताजा होते हैं।
एक अंदाज़ा है कि एक साल में 1000 स्क्वॉयर फीट में 35 से 40 टन तक फल और सब्ज़ियां उगाई जा सकती हैं। अगर ये खेती छत पर की जाती है, तो इसके लिए तापमान को नियंत्रित करना होता है। हाइड्रोपोनिक तकनीक में कार्बन के कम उत्सर्जन के साथ 80-90 प्रतिशत जल की बचत होती है। पारम्परिक खेती में जितने पानी की जरूरत होती है उतने ही पानी में हाईड्रोपोनिक तकनीक से 30 गुना अधिक फसल उगा सकते हैं।
जब वर्टिकल फार्मिंग और हाइड्रोपोनिक्स खेती को ज्वाइंट किया जाता है तब इसके परिणाम अधिक प्रभावी और लागत भी कम हो सकती है। उदाहरण के लिए हाइड्रोपोनिक खेती में आप कृत्रिम प्रकाश से सीमित क्षेत्रों में खेती शुरू कर सकते हैं। इसलिए प्रकृति पर निर्भरता बिल्कुल खत्म हो जाती है। हाइड्रोपोनिक खेती संरक्षित संरचना बनाकर की जा सकती है। इसके लिए शेड नेट, पॉलीहाउस, नेटहाउस का प्रयोग करते हैं। 1000 वर्ग मीटर की संरचनाओं के लिए लगभग एक लाख का खर्च आता है। हाइड्रोपोनिक तकनीक से उद्यानिकी उच्च वैल्यू वाली फसलें उगाई जा सकती है। यह तकनीक लीफी वेजिटेबल ल्यटूस, पाकचोई, ककड़ी, टमाटर, शिमला मिर्च, मिर्च और फ्रेंच बीन्स जैसी बेल की फसल उगाने के लिए काफी बेहतर और फायदे मंद होती है।
बड़े-बड़े शहरों में इस तकनीक का इस्तेमाल करके इसे कृषि उद्योग के रूप में विकसित कर सकते हैं जिसको बहुत से पढ़े-लिखे युवा कर भी रहे हैं औऱ अच्छा लाभ कमा रहे हैं इससे एक ओर जहां लोगों को पौष्टिक औऱ ताजा साग-सब्जियां खाने के लिए मिलेंगी तो दूसरी तरफ लोगों को रोजगार भी मिलेगा। इस तकनीक से प्रकृति औऱ मनुष्य दोनों ही स्वस्थ रहेगें।