हमारा किचन मिर्च के बिना अधूरा माना जाता है। या यूं कहें तो मिर्ची हमारे व्यंजनों के आधार की धड़कन है। कुछ लोग अधिक मिर्च खाना पसंद करते हैं तो कुछ लोग कम मिर्ची से ही काम चला लेते हैं। कई लोग मिर्च का प्रयोग खाने में रंग लाने के लिए करते हैं तो कुछ लोगों को तीखेपन के बिना खाना बेस्वाद लगता है। इसलिए सभी के किचन में मिर्च जरूर पाया जाता है। वहीं आपने ये गाना उफ़्फ़-उफ़्फ़ मिर्ची, हाय-हाय मिर्ची तो सुना ही होगा। ये गाना भूत झोलकिया मिर्च पर सटीक बैठता है। ऐसा इसलिए क्योंकि सामान्य मिर्च की तुलना में भूत झोलकिया मिर्च में 400 गुना ज्यादा तीखापन होता है। ये मिर्च इतनी तीखी होती है कि जीभ पर इसका स्वाद लगते ही, व्यक्ति का दम घुटने लगता है और आंखों में तेज़ जलन होती है। ये न सिर्फ हमारे व्यंजनों का स्वाद और रंग बढ़ाता है बल्कि सेहत के लिए भी लाभदायक है ICAR पूसा नई दिल्ली के कृषि वैज्ञानिक किसानों को इसकी खेती के लिए जागरूक कर रहे हैं।
आपको बता दें वैसे तो मिर्च की खेती देशभर में की जाती है। लेकिन जब बात पूरी दुनिया की तीखी और तेज मिर्च की हो तो भूत झोलकिया मिर्च का नाम सबसे आगे आता है। भूत झोलकिया मिर्च की खेती अधिकतर पूर्वोत्तर से लेकर उत्तर- पश्चिमी इलाके में की जाती है। इसे अंग्रेजी में घोस्ट चिली भी कहा जाता है और इसके अलावा इसे नागा मिर्च, राजा मिर्च और भूत काली मिर्च के नाम से भी जाना जाता है। इसे खाने के बाद आप ऐसी हरक़त करेंगे कि जैसे आपके शरीर में भूत समा गया हो। इसे साल 2008 में जीआई सर्टिफिकेशन भी मिला चुका है और साल 2007 में इसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स का खिताब भी मिल चुका है। और तो और इसका इस्तेमाल हैंड ग्रेनेड जैसे छोटे बमों और आंसू गैस के गोले बनाने में भी किया जाता है। भूत झोलकिया मिर्च स्प्रे को महिलाएं आत्मरक्षा के लिए उपयोग कर सकती हैं। इतनी उपयोगी होने के चलते ये बाजार में काफी महंगी बिकती है।
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक भूत झोलकिया मिर्च जैविक तरीके से उगाई जाती है। वैसे तो इसकी खेती सभी तरह की मिट्टी और जलवायु में की जा सकती है। हालांकि इसकी सबसे अच्छी क्वालिटी की पैदावार के लिए रेतीली और लेटेरा मिट्टी अधिक उपयुक्त होती है। भूत झोलकिया की खेती धूप वाले इलाकों में करनी चाहिए और इसकी खेती की तैयारी के दौरान बीज की रोपाई के लिए बेड बनाना चाहिए। पूर्वोत्तर में रोपाई के लिए दो सीजन खरीफ और रबी का उपयुक्त माना जाता है। खरीफ की खेती फरवरी-मार्च में शुरू होती है, और मई-जून के बाद फसल की कटाई होती है। जबकि मैदानी इलाकों में ये सितंबर-अक्टूबर के दौरान रबी फ़सलों के रूप में उगाई जाती है। आपको बता दें रबी की पैदावार, खरीफ फ़सल की तुलना में अधिक होती है। इसके बीज की नर्सरी कुछ कृषि विज्ञान केंद्रों पर उपलब्ध हैं।
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक भूत झोलकिया का पौधा स्व-परागित पौधा होता है और इसकी पत्तियां अंडाकार होती हैं इसकी ऊपरी सतह झुर्रीदार होती है। इनका रंग हल्का लाल, गहरा लाल और नारंगी लिए होता है। पूरी तरह से परिपक्व फल और सूखे फल से ही बीज निकालना चाहिए। इसके बीज निकालते समय हाथों में दस्ताने जरूर पहनना चाहिए। इनके बीज के अंकुरण के लिए तकरीबन 15 से 20 दिन तक का समय लगता है। इसलिए बीज के अंकुरण के समय फंगस या कीट के प्रकोप के लिए फंजीसाइड और कीटनाशकों के साथ ही इसके बीजों का उपचार करना चाहिए। बीज की रोपाई के बाद जब मिट्टी ऊपर से 2 इंच सूखी रहे तो इसके पौधों को सुबह के समय पानी देना चाहिए और सामान्य मिर्च में इस्तेमाल होने वाले उर्वरक जैसे नाइट्रोजन की मात्रा 5, फॉस्फोरस की मात्रा 10 और पोटेशियम की मात्रा 10 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। आपको बता दें भूत झोलकिया मिर्च के पौधे की ऊंचाई 45 से 120 सेंटीमीटर तक होती है इसके पौधे में लगने वाली मिर्च की चौड़ाई 1 से 1.2 इंच के आसपास होती है जबकि पौधे की लंबाई 3 इंच से भी ज्यादा हो सकती है और बीज रोपाई के मात्र 75 से 90 दिनों में इसकी फसल तैयार हो जाती है और मसाले के रूप में इस मिर्च की पूरी दुनिया में जबरदस्त मांग है।
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक भूत झोलकिया के एक पौधे से एक सीजन में लगभग 15 से 20 पूर्ण आकार के और 10 से 14 छोटे आकार की मिर्च मिलती है। भूत झोलकिया मिर्च की औसत उपज प्रति हेक्टेयर 80 से 100 क्विंटल के आसपास होती है। जबकि इसे सुखाने पर इसकी औसत उपज प्रति हेक्टेयर 10 से 12 क्विंटल होती है। वहीं देश के कुछ इलाकों में इसकी सूखी उपज का कारोबार बड़े पैमाने पर किया जाता है और अच्छी क्वालिटी की सूखी भूत झोलकिया मिर्च काफी ऊंचे दाम पर बिकती है। जिसकी बाजार में औसतन कीमत 2 हजार रुपए प्रति किलो के आसपास होती है। इसलिए इसकी खेती करने वाले किसानों को कम लागत में अच्छा मुनाफा मिलने की पूरी गारंटी है।
आपको बता दें भूत झोलकिया मिर्च के मेडिसिनल फायदे भी हैं। इसमें मौजूद एक प्रमुख घटक कैप्साइसिन को स्वास्थ्य के लिए फायदेंद पाया गया है। इससे कैंसर का इलाज भी ढूंढ़ा जा रहा है। यहां तक कि देश के कई हिस्सों में इस मिर्च से बने पाउडर से पेट की कई बीमारियों का इलाज भी किया जाता है। और तो और एंटी ऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होने के चलते इसके सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इस मिर्च का इस्तेमाल कई प्रकार के व्यंजनों के बनाने में किया जाता है सब्जियों में तीखापन और तेजी लाने के लिए इसका इस्तेमाल खूब किया जाता है इसकी थोड़ी सी मात्रा सब्जी को चटपटा बनाने के लिए काफी है। इसलिए इसकी खेती करके अच्छा खासा मुनाफा कमाया जा सकता हैं क्योंकि बाजार में इसकी बहुत कम मात्रा देखने को मिलती है।