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गोरखपुरिया पनियाला फिर से देगा रस !

गोरखपुर अपने बेहतरीन आम गवरजीत और काला नमक चावल के लिए ही नहीं,बल्कि यहां का मशहूर फल पनियाला के लिए भी जाना जाता है, इसका स्वाद इतना अच्छा होता है कि इसे देखते ही मुंह में पानी आ जाता है। इसका खट्टा मीठा स्वाद और सुंदर चटखदार जामुनी रंग लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए मजबूर कर देता है। इसके सेवन से कई फायदे होते हैं। बरसात के मौसम में लोगों को इसका बेसब्री से इंतजार रहता है, क्योंकि ये बरसात के मौसम में ही पाया जाता है। आमतौर पर लोग नहीं जानते हैं कि ये लजीज़ और मिठास से भरपूर फल पनियाला धीरे-धीरे अब गायब हो रहा है।

पनियाला जैसा इसका नाम ठीक वैसा ही इसका स्वाद

गोरखपुरिया पनियाला, ये नाम गोरखपुर के लिए नया नहीं है, लेकिन आज गोरखपुर के ज्यादातर लोग इस नाम को भूल चुके हैं। खाने में स्वादिष्ट, गूदेदार, औषधीय गुणों की खान और बेहद पौष्टिक पनियाला गोरखपुर की ही देन है। बता दें पनियाला फल आज से 20-25 साल पहले सभी जगह मिला करता था, लेकिन अब बड़ी मुश्किल से मिल पाता है। इसका पेड़ 20-30 फुट ऊंचा होता है यानी इसके पेड़ों की ऊंचाई करीब नौ मीटर होती है। लिहाजा इसका रखरखाव भी आसान होता है। जिसका फूल सफेद रंग का होता। ये फल मुख्यतः गोरखपुर के तराई इलाके में पाया जाता है।

गोरखपुर से भी विलुप्त होता नज़र आ रहा है पनियाला

गोरखपुर में पनियाला के कुछ ही पेड़ बचे हैं। किसानों का रुझान दूसरी फसलों की ओर बढ़ने की वजह से उनका ध्यान पनियाला की तरफ से हटने लगा है। हालांकि इसको विलुप्त होते देख सरकार ने इसे विलुप्त प्रजाति की श्रेणी में रखा है और इसके संरक्षण का बीड़ा उठाया है। इसके लिए वन विभाग के जैव विविधता बोर्ड गोरखपुर विश्वविद्यालय में पनियाला पर शोध चल रहा है। कोशिशें रंग लाईं तो गोरखपुरिया पनियाला फिर से रस देने को तैयार हो जाएगा...

जानकार बताते हैं कि पूरे उत्तर भारत में ये केवल गोरखपुर में पाया जाता है। ये फल केवल जल जमाव वाले तराई क्षेत्रों में उपजता है। एक समय था, जब गोरखपुर और आस-पास के इलाके के जंगल इसके वृक्षों से भरे रहते थे। इसके बीज से बने पौधों की अपेक्षा कलम से तैयार पौधों में मूल गुण ज्यादा सुरक्षित रहते हैं। जिसके चलते उनसे बनने वाले वृक्षों में उत्पादन अधिक होता है। जिससे प्राकृतिक मिठास भी बनी रहती है। व्यवसाय की दृष्टि से भी कलमी पनियाला सबसे अच्छा है।

औषधीय गुणों की खान है पनियाला

आपको बता दें पनियाला को आंवले की प्राचीनतम प्रजाति के रूप में भी जाना जाता है। इसका पौराणिक नाम आम्लिक है। पनियाला अपने औषधीय गुणों की वजह से भी जाना जाता है। इसमें लाभकारी पोलीफेनोल और फ्लावोनोइड बड़ी मात्रा में पाए जाते हैं। भारत के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में पनियाला के पेड़ों के औषधीय गुणों पर निर्भरता बहुत अधिक है। पारंपरिक औषधि के रूप में पनियाला का उपयोग हाजमा ठीक करने, भूख बढ़ाने के साथ-साथ बढ़ी हुई तिल्ली और पीलिया के उपचार में भी किया जाता रहा है।

पनियाला के चर्चे देश और विदेश तक

साल 2010 में अमेरिकन यूरेशियन जर्नल ऑफ साइंटिफिक रिसर्च में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि पनियाला के पत्तों में बड़ी मात्रा में एंटी ऑक्सिडेंट मौजूद है, जो बुढ़ापे को कम करने के साथ ही तनाव को भी कम करता है। उसी साल जर्नल ऑफ एथनोफारमाकोलोजी में प्रकाशित एक शोध के अनुसार पनियाला के पत्तों में मलेरियारोधी तत्व पाए जाते हैं। वर्ष 2011 में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ ड्रग डेवलपमेंट एंड रिसर्च में प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कि पनियाला के पत्तों में सूक्ष्म जीवरोधी और बैक्टीरियारोधी गुण भी पाए जाते हैं। अफ्रीकन जर्नल ऑफ बेसिक एंड अप्लाइड साइंसेस में प्रकाशित एक शोध पनियाला के दमारोधी होने की भी पुष्टि करता है।

महापर्व छठ के प्रसाद होकर भी उपेक्षित है पनियाला

पनियाला जैसा नाम वैसा स्वाद करीब जामुन के साइज और उसी रंग का खट्टा-मीठा फल जिसको देखते ही मुंह में पानी आ जाता था। उत्तर भारत के लोक आस्था का महापर्व छठ के प्रसाद के रूप में पनियाला का इस्तेमाल किया जाता है। हममें से बहुतों ने इसके स्वाद को कब चखा था, याद करना होगा। पर आने वाली पीढ़ियां इसके बारे में शायद किताबों से ही जान सकें हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि अब जब पेड़ ही नहीं रहे तो फल और उसके स्वाद की बात करना बेकार है।