देश में स्थानीय स्वशासन को मजबूत करने और विकास की अनोखी लकीर खीचने के उद्देश्य से पंचायती राज प्रणाली को अपनाया गया। हालांकि इस कार्यक्रम को सफल बनाने में कई परेशानियां भी सामनें आईं। इन सबके बावजूद तमिलनाडु के एक छोटे से गांव ओडनथुरई ने सही मायने में इस कार्यक्रम को सफल करके दिखाया है। यह गांव पवन, सौर और बायोगैस ऊर्जा को शामिल करने वाला क्षेत्र का पहला गांव है। इस गांव की कहानी न सिर्फ देश के विकास में अहम योगदान दे रही है बल्कि लोगों को प्रेरित भी कर रही है। भारत में आमतौर पर बिजली पैदा करने के लिए कोयले और पानी जैसे संसाधनों की जरूरत पड़ती है लेकिन सौर ऊर्जा का उपयोग करने से दीर्घावधि में अर्थव्यवस्था को बेहतर करने में मदद मिल रही है। सौर ऊर्जा का उपयोग करने से ओडनथुरई जैसे कई गांवों को बिजली मिलने लगी है जिससे वहां की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल रही है परिणाम स्वरूप इलाके में सम्पन्नता आ रही है।
1986 से 1991 तक आर. षणमुगम के पिता के. षणमुगम गांव के सरपंच थे उस वक्त गांव में झोपड़ी के मकान हुआ करते थे। क्षेत्र के लोगों ने सरपंच से पक्के घर की मांग की। पंचायत ने ग्रामीणों की मांग मानते हुए प्रस्ताव पास किया। 1996 में आर. षणमुगम ओडनथुरई गांव के मुखिया चुने गए। मुखिया चुने जाने के बाद आर. षणमुगम ने गांव से सारी झोपड़ी हटाकर पंचायत फंड से पक्के मकान बनाने का निर्णय लिया। इसके साथ ग्रामीणों की सभी बुनियादी जरूरतों की पूर्ति की गई। परिणाम यह हुआ कि कभी गांव से पलायन कर गए लोग गांव वापस लौटने लगे। सभी लोगों की सहभागिता से गांव विकास के पथ पर चल पड़ा जिसका परिणाम यह है कि ओडनथुरई गांव भारत का स्मार्ट गांव बन गया। गांव के मुखिया षणमुगम ने स्वच्छ पानी के साथ बेहतर स्वच्छता और अच्छी सड़कों के लिए भी काफी काम किया। गांव के निरंतर होते विकास से उन्होंने महसूस किया कि स्ट्रीट लाइट, पीने के पानी के प्लांट और फिल्टरिंग पॉइंट जैसी व्यवस्थाओं के चलते गांव के बिजली के बिल में भी बढ़ोतरी हो रही है। इंडिया क्लाइमेट डायलॉग इंटरव्यू में आर. षणमुगम बताते हैं कि "जब उन्होंने पंचायत का दायित्व संभाला तो बिजली का बिल केवल 2,000 रूपए आता था लेकिन यह केवल दो वर्षों में बढ़कर 150,000 रूपए हो गया। षणमुगम ने महसूस किया कि व्यापक बिजली बिलों के बिना ओडनथुराई के विकास को बनाए रखने के लिए परिवर्तन आवश्यक है इसलिए उन्होंने ऊर्जा के वैकल्पिक साधनों की तलाश शुरू की।
ओडनथुरई में बिजली से चलने वाले पानी के पंप को हटाकर बायोगैस से चलने वाले पानी के पंप लगाए गए। इसके अलावा ओडनथुराई में दो सोलर लाइटें स्थापित की गईं। यह अक्षय ऊर्जा की दिशा में एक कदम था जिससे गांव को कुल 5000 रुपये की बचत हुई। बायोगैस और सौर ऊर्जा की सफलता ने बिजली उत्पादन के विकल्प तलाशने में रुचि बढ़ाई। आखिरकार पंचायत ने एक पवन चक्की खरीदी। पवन चक्की द्वारा उत्पादित बिजली से गांव तो जगमग हुआ ही साथ ही राज्य सरकार को बिजली बेंच कर जो धन प्राप्त होता उससे गांव के विकास के लिए बैंक द्वारा लिए गए ऋण को चुकाने में काफी मदद मिली। आज ओडनथुराई गांव पूरे देश के लिए प्रेरणास्रोत बन चुका है।