कृषि देश की अर्थव्यवस्था की आधारशिला ही नही बल्कि देश की दो तिहाई आबादी की रोजी रोटी और आजीविका का साधन भी है। देश के विकास और प्रगति में कृषि और कृषि से जुड़े व्यवसायों का बड़ा योगदान है। देश का आर्थिक और समाजिक ढांचा कृषि पर ही टिका है। हमारी संस्कृति, सभ्यता औऱ जीवनशैली का कृषि ही आइना है। आज देश में आधे से अधिक आबादी की श्रम शक्ति कृषि में लगी हुई है। इसलिए हमें ऐसी खेती की जरूरत है जो प्राकृतिक संसाधनों की क्षमता में बढ़ोत्तरी के साथ किसानों की रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के साथ उनके परिवार के सदस्यों के लिए रोजगार के अवसर भी प्रदान कर सके। ऐसी स्थिति में बहुउद्देशीय कृषि मॉडल यानी समेकित खेती हमारे सामने उपयुक्त समाधान है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली पूसा ने समेकित कृषि प्रणाली को एक मॉडल के रुप में विकसित किया है।
ICAR पूसा नई दिल्ली के प्रधान कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह के मुताबिक integrated farming यानी समेकित कृषि प्रणाली आधुनिक तकनीक है। इस तकनीक में खेती के साथ-साथ बागवानी, पशुपालन, कुक्कुट पालन, मछली पालन को बढ़ावा दिया जाता है। जिसके चलते किसानों की आमदनी बढ़ाने में काफी मदद मिलती है। आसान भाषा में कहें तो समेकित कृषि में खेती के सभी घटकों को शामिल किया जाता है। जिससे किसानों को सालभर आमदनी होती रहे। दरअसल देश में खाद्य और पौष्टिक आहार सुरक्षा सुनिश्चित करने की कुंजी उन छोटे सीमांत किसानों के पास है जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम खेतीहर भूमि है। ग्रामीण क्षेत्रों में खुशहाली लाने के लिये खेती की टिकाऊ प्रणालियों के साथ उन्हें सही दिशा में विकसित होने का मौका देना भी अत्यन्त आवश्यक है।
डॉ. राजीव कुमार सिंह के मुताबिक इस तकनीक का मुख्य उद्देश्य यह है कि किसान मुख्य फसल के साथ-साथ मुर्गी पालन, मछली पालन, मधुमक्खी पालन, रेशम, सब्जी-फल, मशरूम की खेती को एक साथ एक ही जगह पर करते हैं। इसमें एक घटक दूसरे घटक के उपयोग में लाया जाता है। जिससे किसान अपनी एक फसल पर निर्भरता कम कर या उसके घाटे की संभावनाओं को भी कम कर सकते हैं। दरअसल देश में लगातार बढ़ती जनसंख्या और कम होते प्राकृतिक संसाधनों के कारण किसानों को भी अपने तरीके और तकनीक दोनों में बदलाव करने की आवश्यकता है। इस समेकित कृषि को (आईएफएस) मॉडल के नाम से भी जाना जाता है। इसे अंग्रेजी में इंटेग्रेटेड फार्मिंग (integrated farming) के नाम से जाना जाता है।
अब आइए समेकित कृषि प्रणाली तकनीक को एक उदाहरण के साथ समझते हैं। एक किसान जिसके पास 10 एकड़ भूमि है और वह सालों से पारंपरिक खेती करता आ रहा है और अभी तक उसके खेत में धान और गेहूं की खेती होती आ रही है। जिससे उसे साल में 3-5 लाख की आमदनी होती है। लेकिन यदि वहीं किसान पारंपरिक खेती को छोड़कर 1 एकड़ में बागवानी, 1 एकड़ में मछली पालन, 1 एकड़ में मुर्गी पालन, 1 एकड़ में बकरी पालन, 1 एकड़ में गौ पालन बाकी खेत में मधुमक्खी और गेहूं-धान जैसी पारंपरिक खेती करता है। तो उसे अब 10 एकड़ जमीन पर 25-30 लाख सालाना आमदनी हो सकती है, जो पारंपरिक खेती से 5 गुना ज्यादा है।
समेकित कृषि प्रणाली की खास बात है कि इससे किसानों को सालभर आमदनी होती रहती है और ये सभी एक दूसरे के पूरक भी हैं। पारंपरिक खेती से उसे पशुपालन के लिए चारा तो पशुपालन से दूध और मुर्गी पालन और मछली पालन से एक दूसरे के लिए फीड यानी चारे का इंतजाम हो जाता है। समेकित कृषि प्रणाली के लिए कुछ प्राथमिक चीजों का होना जरूरी है। समेकित कृषि प्रणाली यानी (Integrated farming) के लिए पानी की उपलब्धता आवश्यक है इसके लिए खेत की जमीन में ही पानी के लिए एक तालाब खोद सकते हैं इससे किसानों को तीन लाभ हो सकते हैं, जिसमें सिंचाई, मछली पालन और पशुओं के लिए पानी की उपलब्धता मुख्य हैं। संक्षेप में कहें तो समेकित कृषि (Integrated farming) करना किसानों के लिए बहुत लाभकारी है। इस विधि से कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है। इसमें आय के साथ-साथ रोजगार के अवसर बढ़ते है।
आपको बताते हैं कि समेकित कृषि प्रणाली से किस प्रकार कम लागत में अधिक पैदावार की जा सकती है। इसके आदर्श मॉडल में पानी की पर्याप्त मात्रा का होना जरूरी है, इसके लिए आप पानी का स्रोत बना सकते है। खेत के बीच में या अन्य जगह अपनी जरूरत के हिसाब से एक छोटा तालाब भी बना सकते हैं। तालाब के चारों तरफ लताओं वाले पौधे लगा सकते हैं जिससे उनकी पानी की आवश्यकता पूरी की जा सके। अमरूद, लीची, आम, सब्जियां आदि के पेड़ जगह के हिसाब से लगाए जा सकते हैं और खेत के ही पास में गौशाला बनाई जा सकती है जिसमें गाय-भैंस, बकरी का पालन कर सकते हैं। फॉर्महाउस में मुर्गियों के साथ-साथ बत्तखों का भी उत्पादन हो सकता है। इस तरह अब आप समझ सकते हैं कि ये सभी एक दूसरे के पूरक हैं। जैसे यदि आप सब्जियां उगाएंगे, या फल उगाएंगे तो उसके अवशेष जैसे गिरे हुए पत्ते, खराब सब्जियां, खर-पतवार आदि गाय बकरियों का चारा बनेगा, गाय के गोबर से जमीन को और उपजाऊ बनाया जा सकता है। ठीक इसी तरह मुर्गी पालन से मीट के साथ साथ अंडों की भी प्राप्ति होती है। मछलियों के लिए चारे का इंतेजाम भी इसी मॉडल से हो जाता है। बत्तख मछलियों को अपना आहार बनाती हैं और मछलियों जलीय जंतुओं को, जिससे कि इनमें सामंजस्य बना रहता है और जल शुद्ध रहता है। मछलियां आपको मांस के साथ मछली के बीज भी उपलब्ध कराती हैं जिससे आपको दोगुना मुनाफा होता है। इस तरह आप लाखों का मुनाफा कमा सकते हैं।
आपको बता दें देश के जीडीपी में लगभग 17.8 फीसदी का योगदान कृषि का है। लेकिन किसानों की हालत दूसरे सेक्टर की तुलना में काफी दयनीय है जिस पर ध्यान देने की जरूरत है। इसके लिए किसान की आय़ में बढ़ोत्तरी करने के लिए कृषि के बुनियादी ढांचे को मजबूत करना होगा। साथ ही कृषि में कम जोखिम, कृषि लागत में कमी, कृषि में नई तकनीकों का समावेश, कृषि क्षेत्र में निर्यात बढ़ाने जैसे विकल्पों को तलाश करना होगा।