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समेकित कृषि प्रणाली से करें सघन बागवानी

अगर आपको प्रकृति से प्यार है और खेती-किसानी की चाह है तो आप भी सघन बागवानी में संभावनाएं तलाश सकते हैं। कुछ सालों में बागवानी फसलों के उत्पादन में काफी तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है। जैसा कि हम जानते हैं कि फलों की मांग बाजार में सालभर रहती है। फूलों की बात करें तो इसके उत्पादन में भी लगातार बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है। फलों के उत्‍पादन में भारत विश्‍व का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है, जबकि आम, केला, अमरूद, पपीता, नीबू जैसे फलों के उत्‍पादन में पहला स्‍थान है। बता दें बागवानी सुनने में जितना छोटा शब्द है लेकिन ये करोड़ों लोगों की जिंदगी बदल कर उनको लखपति बना रहा है। इसके फायदे और किफायत को देखते हुए बड़े-बड़े प्रोफेशनल के साथ कई युवा भी इस व्यवसाय में आगे आ रहे हैं और अपने करियर को इस क्षेत्र में आगे बढ़ा रहे हैं। तो चलिए जानते हैं कि बागवानी को नए युग का क्रांतिकारी क्षेत्र कैसे बनाएं ?

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा नई दिल्ली के कृषि वैज्ञानिक किसानों को परम्परागत खेती के साथ-साथ समेकित कृषि प्रणाली के तहत सघन बागवानी के लिए भी प्रेरित कर रहे हैं। मौजूदा समय की खेती में सघन बागवानी तेजी से उभरता हुआ कृषि व्यवसाय है और इस क्षेत्र में करियर की अपार संभावनाएं हैं। बागवानी को भविष्य की खेती भी कहा जाता है। किसान इसे एक बार लगाने के बाद कई सालों तक मुनाफा कमा सकते हैं। बागवानी अपने अंदर तमाम संभावनाएं समेटे हुए है। जो कि किसानों के लिए सुनहरे भविष्य के साथ-साथ उनके जीवनस्तर में सुधार ला सकता है।

ICAR पूसा नई दिल्ली के प्रधान कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह का कहना है कि जैसे सांस लेने के लिए हवा जरूरी है, ठीक उसी प्रकार वनस्पतियां भी हमारे लिए उतनी ही जरूरी हैं। बागवानी करना केवल शौकीनों का काम नहीं, बल्कि इसके कई फायदे भी हैं। बागवानी करते वक्त कुछ विशेष बातों का ध्यान रखा जाए तो इससे अच्छा लाभ कमाया जा सकता है।

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डॉ. राजीव कुमार सिंह का कहना है कि बागवानी एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें किसान फलों और फूलों की खेती, चाय बागान, मधुमक्खी पालन, मशरूम उत्पादन आदि की समेकित कृषि प्रणाली प्रबंधन से उसकी गुणवत्ता को बेहतर बना सकते हैं। बागवानी शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा से है, जिसका शाब्दिक अर्थ है उद्यान की खेती। बागवानी में फलों, सब्जियों, मशरूम, कट फूलों, सजावटी फूलों और पौधों, मसालों, औषधियों फसलों आदि कि खेती की जाती है। इससे किसानों को हर साल फायदा होता है। बागवानी के समग्र विकास के लिए आप भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा नई दिल्ली के कृषि वैज्ञानिकों, अधिकारियों, जिला स्तर पर जिला बागवानी अधिकारी और राज्य स्तर पर बागवानी निदेशालय से संपर्क करके इसकी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

अब आपको बताते हैं सघन बागवानी क्या है?

डॉ. राजीव कुमार सिंह का कहना है कि सघन बागवानी खेती की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत सभी प्रकार के सजावटी फूलों, सब्जियों, पौधों की खेती की जाती है। ये व्यावसायिक रूप से भी अति महत्वपूर्ण है। इसमें फायदे ही फायदे हैं। फल उगाना, उनके बीजों से मुनाफा कामना, फूलों से मुनाफा कामना और उसके साथ अन्य उत्पादों जैसे फूलों के सुगंधित इत्र, गजरे बुके सजावटी गमलों के द्वारा बड़ी कमाई की जा सकती है। बता दें, जो फसलें मुख्य रूप से बागवानी (उद्यान) में उगाई जाती हैं, उन्हें बागवानी फसलें कहा जाता है इनमें आम, केला, अनार, लौकी, कद्दू, आलू, सूरजमुखी, गुलाब, कॉफी, चाय, रबर आदि की खेती प्रमुख हैं।

अब आइये आपको इसके दैनिक लाभ के बारे में बताते हैं

डॉ. राजीव कुमार सिंह का कहना है कि हमारे शरीर का निर्माण प्रकृति के पांच तत्वों को मिलाकर हुआ है। उनमें से, पृथ्वी एक ऐसा तत्व है जो जीवन को स्थिरता प्रदान करता है। कितनी बार जब हम तनावग्रस्त, उदास या अवसाद महसूस करते हैं, तो हम एक ऐसी शांत जगह की यात्रा करना पसंद करते हैं जहां फूलों, पेड़ों, पक्षियों और घाटी के पास बहने वाली नदी, झरने की मनमोहक छटा हो। प्रकृति की गोद में आराम करना मन को शान्ति देता है। प्रकृति से जुड़ने के विभिन्न तरीकों में बागवानी भी एक प्रकृति की तकनीक है।

अब आपको बताते हैं सघन बागवानी में कमाई के फायदे

डॉ. राजीव कुमार सिंह का कहना है कि फूलों की पैदावार बढ़ाकर, बीज का उत्पादन करके और सब्जियों की उपज बढ़ाकर, ग्रीन डेकोर आदि आपके लिए बेहतर विकल्प साबित हो सकते हैं। सजावटी गमलों में फूल आदि की मांग काफी बढ़ी है। आजकल अधिकतर सौंदर्य और गिफ्ट की दुकानों में इसकी चमक देखी जा सकती है। सजावटी फूल शीशे के पॉट में बहुत आकर्षक लगते हैं और इन्हें मन की शांति के लिए भी उपयोग किया जाता है। जिसके कारण अधिकतर लोग इकोफ्रेंडली गिफ्ट और बुके को बढ़ावा दे रहे हैं। इतना ही नहीं सजावट के लिए शादी समारोहों, उद्घाटन समारोहों आदि में बिना गजरे और फूल के स्वागत संभव ही नहीं, आज कहीं भी कोई प्रोग्राम हो, उसमें फूल की आवश्यकता होती है। किसी अतिथि कि आवभगत भी इसके बिना पूर्ण नहीं। ऐसे में फूलों के व्यापार से एक बात साफ है कि इसमें घाटे के बहुत कम मौके हैं।

अब आपको बताते हैं कैसे लगाएं सघन बागवानी

डॉ. राजीव कुमार सिंह का कहना है कि मौसम के मुताबिक ही बागवानी का क्षेत्र चुनें, अधिक समय होने पर ही बड़ी जगह के बारे में सोचें। बागबानी वहीं करें जहां ताजी हवा, ताजा पानी और सूर्य की रोशनी आसानी से पहुंच सके। साथ ही साथ अलग-अलग वातावरण के लिए अलग-अलग फल फूल का चुनाव करें। उदाहरण के तौर पर गर्म और थोड़ी नमी वाली जगह पर केले की बागवानी और ठंडी जगहों पर सेब की बागबानी काफी फायदेमंद होती है।

डॉ. राजीव कुमार सिंह का कहना है कि मौजूदा समय में देश में 26.22 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में बागवानी फसलों के तहत खेती होती है। बागवानी फसलों के क्षेत्र और इसके उत्पादन का साल 2020-21 का तीसरा अग्रिम अनुमान जारी कर दिया गया है। सरकार की ओर से जो आकड़े पेश किये गये हैं उसके मुताबिक साल 2020-21 में बागवानी उत्पादन रिकॉर्ड 331.05 मिलियन टन होने का अनुमान है, जिसमें 2019-20 की तुलना में 10.6 मिलियन टन यानी 3.3 फीसदी बढ़ोत्तरी की संभावना है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार साल 2020-21 में फलों का उत्पादन 103 मिलियन टन होने का अनुमान है, जबकि साल 2019-20 में 102.1 मिलियन टन का उत्पादन हुआ था। वहीं सब्जियों के उत्पादन में पिछले साल के 188.3 मिलियन टन की तुलना में 197.2 मिलियन टन यानी 4.8 फीसदी की बढ़ोत्तरी होने का अनुमान है। साल 2019-20 में प्राप्त 26.1 मिलियन टन की तुलना में 26.8 मिलियन टन प्याज का उत्पादन होने की संभावना है। 2020-21 में आलू का उत्पादन रिकॉर्ड 54.2 मिलियन टन होने का अनुमान है, जो कि साल 2019-20 की तुलना में 5.6 मिलियन टन अधिक है। टमाटर का उत्पादन साल 2019-20 में प्राप्त 20.6 मिलियन टन की तुलना में 21.1 मिलियन टन होने का अनुमान है । सुगंधित और औषधीय फसलों में, साल 2019-20 में 0.73 मिलियन टन से साल 2020-21 में 0.78 मिलियन टन तक 6.2 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। वृक्षारोपण फसलों का उत्पादन साल 2019-20 में 16.1 मिलियन टन से बढ़कर साल 2020-21 में 16.6 मिलियन टन हो गया है। मसालों का उत्पादन साल 2019-20 में 10.1 मिलियन टन से 5.3 फीसदी बढ़कर साल 2020-21 में 10.7 मिलियन टन हो गया है।

आपको बता दें बागवानी भूमि के किसी हिस्से में फूलों-पौधों को उगाने की प्रथा है। इस प्रक्रिया के दौरान बगीचों में, सजावटी पौधे, जड़ वाली सब्जियां, पत्तेदार सब्जियां, फल और जड़ी-बूटियां आदि उगाई जाती हैं। सफल बागवानी के लिए इंसानों की सक्रिय भागीदारी जरूरी होती है, साथ ही ये श्रम प्रधान होती है, जो इसे खेती या वानिकी से अलग करता है। बागवानी के इतिहास को कला और प्रकृति के माध्यम से सौंदर्य की अभिव्यक्ति और कभी-कभी निजी स्थिति या राष्ट्रीय गौरव के प्रदर्शन के रूप में भी माना जा सकता है। ऋग्वेद, रामायण और महाभारत सहित कई प्राचीन हिंदू ग्रंथों में भारतीय उद्यानों का उल्लेख मिलता है।

अब आपको बताते हैं बागवानी के फायदे

बागवानी उद्यान-विद्या की एक शाखा है। बागवानी को एक थेरेपी के रूप में भी देखा जाता है जो हमारे शरीर में खुश होने वाले हार्मोन के स्तर को बढ़ाने में मदद करता है। बागवानी हमें उन सब्जियों को उगाने में मदद करती है जो हमारी जरूरतों के लिए पर्याप्त होते हैं। बगीचे में उगाई जाने वाली सब्जियां अधिक स्वस्थ, स्वादिष्ट, पौष्टिक और रासायनिक-मुक्त होती हैं और यहां पर हम अपनी पसंद के अनुसार सब्जियों को आसानी से उगा सकते हैं। सब्जियां उगाने के साथ, हम विभिन्न किस्मों के फूल भी लगा सकते हैं। जीवंत रंगों वाले फूल हमारी आंखों को शान्ति प्रदान करने के साथ हमारे घर में सकारात्मक उर्जा का प्रवाह करते हैं। बागवानी हमारे घर को सजाने और सुंदर बनाने में हमारी मदद करती है। इस व्यस्त जीवन शैली में, बागवानी सबसे अच्छी गतिविधि है जो हमें चुस्त और स्वस्थ रखती है। बागवानी करने से चयापचय के लिए हमारी ग्रंथियां नियंत्रित होती हैं। यह हमारे शरीर को सीरम विटामिन डी भी प्रदान करता है। विटामिन डी हमारी हड्डियों को कैल्शियम प्रदान करने का एक अच्छा प्राकृतिक स्रोत है, और हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को भी मजबूती देता है। बागवानी न केवल हमारी शारीरिक क्षमता को बढ़ाती है बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी ये बेहद अच्छा है। बागवानी अकेलेपन का मुकाबला करने में एक बहुत ही कारगर उपकरण के रूप में कार्य करता है जो आजकल आम है। बुजुर्ग लोग अक्सर अकेलेपन की बात करते हैं। तो, बागवानी की गतिविधियों में व्यस्त होना अकेलेपन की इस समस्या को हल कर सकता है।

अब आपको बताते हैं कि समेकित कृषि प्रणाली से बागवानी कैसे करें ?

डॉ. राजीव कुमार सिंह का कहना है कि बगीचा एक घेरी हुई वह भूमि है जो हमारे घर के सामने या पीछे स्थित होती है। हमारे घर के सीमित स्थान पर उर्वरकों, छोटे कृषि उपकरणों का उपयोग करके पेड़, फूल, घास, झाड़ियां और सब्जियां लगाने की कला को बागवानी कहा जाता है। बागवानी करना कुछ खास नहीं बल्कि केवल एक शौक है। बागवानी में कई गतिविधियों जैसे पौधारोपण से लेकर योजना बनाने तक की आवश्यकता होती है। बागवानी एक प्रकृति की तकनीक है जहां हम समेकित कृषि प्रणाली से बागवानी के लिए बगीचों में उपयोग की जाने वाली सब्जियों को मोटे तौर पर जड़ वाली सब्जियों, पत्तों वाली सब्जियों, जड़ी-बूटियों और फलों में बांट सकते हैं। जड़ वाली सब्जियां वे पौधे हैं जो मिट्टी के नीचे जड़ के रूप में खाद्य भाग को संग्रहीत करते हैं। जड़ वाली सब्जी की बागवानी आसानी से गमलों में या फिर सीधे मिट्टी में की जा सकती है। इसी तरह से, पत्ती वाली सब्जियां वो पौधे हैं जो पत्तियों को अपने खाद्य भाग के रूप में समाहित करती हैं। आमतौर पर वे झाड़ियों के हरे पत्ते होते हैं। जबकि फल और जड़ी-बूटियां मुख्य रूप से उपभोग, औषधीय लाभ, मसाले, रंजक और प्राकृतिक कॉस्मेटिक वस्तुओं के लिए उपयोग की जाती हैं। इन सभी सब्जियों की बागवानी से न केवल पैसे की बचत होती है, बल्कि 100 फीसदी जैविक सब्जियां भी मिलती हैं।

डॉ. राजीव कुमार सिंह का कहना है कि सघन बागवानी में पौधों को उर्वरकों, कीटनाशकों, यूरिया या किसी अन्य रासायनिक सामग्री के उपयोग के बिना ही उगाया जाता है। ये पौधे हमारे घर के खाली पड़े हिस्से में स्व-निर्मित खाद के साथ उगाए जाते हैं। ये खाद हमारे बगीचे में मिट्टी के साथ मिलाई जाती है। खाद में उच्च पोषक तत्व युक्त सूक्ष्म जीव होते हैं जो मिट्टी को उपजाऊ और रासायन मुक्त बनाते हैं। भूमि की बिना कोई विशेष तैयारी के भी, जुताई रहित बागवानी की जाती है। बागवानी में 'खुदाई रहित' या 'जुताई रहित' की अवधारणा लागू की जा रही है। जुताई रहित गार्डनिंग का मूल उद्देश्य ये है कि कैसे बिना किसी भारी-भरकम मेहनत या खुदाई के भूमि को उपजाऊ बनाए रखना है। घास-पात से ढकने के लिए पुराने पत्तों, पौधों और फूलों का उपयोग किया जाता है जो बागवानी के लिए एक परत के रूप में काम करता है। परत सतह को उपजाऊ बनाती है, जल स्तर को बनाए रखती है और पौधों को अवांछित खरपतवारों से भी बचाती है।

बागवानी फसलों पर जलवायु का गहरा प्रभाव पड़ता है। जैसे किसी भी फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए उस फसल के लिए एक निश्चित जलवायु क्षेत्र का होना जरूरी होता है। इसी प्रकार बागवानी फसलों के लिए भी उचित जलवायु का होना उतना ही आवश्यक होता है। इसलिए सफल बागवानी फसलों के लिए उचित जलवायु को देखते हुए फलों की किस्म एवं जातियों का चुनाव करना चाहिये। बागवानी फसलों को प्रभावित करने वाले मुख्य सात जलवायु कारक हैं, जिसमें तापमान, सूर्य का प्रकाश, वर्षा की मात्रा, हवा, पाला और ओला बागवानी के लिए उचित जलवायु क्षेत्र हैं। उदाहरण के लिए बिहार के हाजीपुर और महाराष्ट्र का केला, कश्मीर और कुल्लु का सेब, नागपुर का सन्तरा, बनारस का आंवला, बिहार के मुजफ्फरपुर की लीची, इलाहाबाद का अमरूद लखनऊ के मलिहाबाद का दशहरी आम आदि। यदि फलों की किसी किस्म या जाति को उसके प्रतिकूल जलवायु में उगाया जाता है, तो या तो इसकी पैदावार नहीं होती या गुणवत्ता और इसकी मात्रा में अच्छा परिणाम नहीं मिलता। उदाहरण के लिये जैसे बम्बई क्षेत्र में आम की सफलतापूर्वक होने वाली ऑलफैजो, प्यारी और आलमपुर बेनिशान जातियां, उत्तरी भारत में और उत्तरी भारत की दशहरी, लंगडा और चौंसा बम्बई क्षेत्र में सफलता पूर्वक नहीं उगाई जा सकतीं।

आपको बता दें, बागवानी में तकनीक और मेहनत हमेशा से कमाल करती है। जरूरत है केवल किसानों को सही दिशा देने की। अब तो सरकार भी इस क्षेत्र में रुचि दिखाने लगी है और बागवानी करने के लिए कृषि वैज्ञानिक भी जागरूक कर रहे हैं। बागवानी के क्षेत्र में अवसर ही अवसर हैं। बस पुराने मिथकों से नाता तोड़कर एक नई उन्नत तकनीक और ऊर्जा से काम करें। कृषि में केवल एक ही प्रकार या प्रजाति का बड़ी मात्रा में उत्पादन किया जाता है, जबकि बागवानी अपने अंदर सभी प्रजातियों को समेटे हुए है।