धान यानी चावल खरीफ सीजन की एक प्रमुख फसल है। देश के अधिकतर किसान धान की खेती करते हैं। धान की रोपाई करने में अधिक संख्या में मजदूरों की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे में किसानों का समय और लागत दोनों अधिक लगता है। इसी को देखते हुए IARI पूसा नई दिल्ली के कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को धान की रोपाई के लिए एक नई तकनीक विकसित की है और इस तकनीक को श्री विधि का नाम दिया गया है। इस विधि की खास बात ये है कि इस तकनीक से प्रति एकड़ में धान की रोपाई करने के लिए सिर्फ 2 किलो बीज की आवश्यकता होती है और इस विधि में रोग और कीट लगने का खतरा कम रहता है, क्योंकि पौधों की दूरी ज्यादा होती है। इस विधि में जैविक खाद का उपयोग ज्यादा किया जाता है।
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर किसान खरीफ के मौसम में धान की खेती में श्री विधि का उपयोग करते हैं, तो इससे खाद, पानी, बीज और श्रम की लागत कम हो जाती है। खरीफ मौसम की मुख्य फसल होने के कारण इसकी खेती देश के हर राज्य में की जाती है। इसमें कोई शक नहीं कि धान की बुवाई की इस आधुनिक तकनीक से किसान बंपर मुनाफा कमा सकते हैं। इसलिए आज हम आपको धान की खेती में एसआरआई तकनीक के बारे में पूरी जानकारी देने जा रहे हैं कि आप धान की नर्सरी कैसे तैयार कर सकते हैं और उसके माध्यम से उत्पादन कैसे ले सकते हैं।
श्री विधि में एक एकड़ खेत में धान रोपने के लिए सिर्फ 2 किलो बीज की आवश्यकता होती है। क्योंकि एक किलोग्राम धान में लगभग चालीस हजार दाने होते हैं। इस तरह 2 किलो बीज में अस्सी हजार दाने होते हैं| एक एकड़ खेत में दस इंच की दूरी पर एक-एक पौधा लगाने में लगभग चौंसठ हजार पौधों की आवश्यकता पड़ती है जिसके लिए 2 किलो बीज पर्याप्त हैं और इसकी नर्सरी के लिए 10 डिसमिल भूमि की आवश्यकता होती है। ध्यान रहे कि रासायनिक खाद का इस्तेमाल श्री विधि की नर्सरी में नहीं करना चाहिए और इसके खेत की तैयारी करते समय 60 से 80 क्विंटल कम्पोस्ट या गोबर खाद प्रति एकड़ के हिसाब से डालना चाहिए, कोशिश करें कि रासायनिक खाद न डाली जाए या कम से कम डाली जाए।
धान के खेत की तैयारी परंपरागत तरीके से ही करते हैं लेकिन इस विधि में पौध लगाते समय खेत मे पानी ज्यादा नहीं रखा जाता है। उर्वरक डालने के बाद खेत को जुताई करके समतल कर लिया जाता है। इस विधि में एक एकड़ के लिए दो किलो बीज पर्याप्त रहता है। अच्छी क्वालिटी के बीज का चयन कीजिए उसके बाद एक बाल्टी में पानी भरकर उसमें नमक डालतें हैं। पानी में इतना नमक मिलाते हैं कि उसमें बीज तैरने लगे। फिर बीज पानी में डालकर तैरने वाले बीजों को हटा देते हैं। बचे हुए बीजों को धोकर फिर दूसरे पानी में रात भर भिगो कर रख दिया जाता है और अगले दिन पानी निकाल कर जूट के बोरे से ढककर रख दिया जाता है, आठ से दस घंटे में बीज अंकुरित होने लग जाते हैं तब इसे कार्बेन्डाजाईम से उपचारित कर लेते हैं। उपचारित करने के बाद बीज को एक बार फिर से गीले बोरे से 10-12 घंटे के लिए ढककर रख देते हैं। जिससे यह अच्छी तरह से अंकुरित होकर बोने के लिए लिए तैयार हो जाते हैं।
श्री विधि का प्रयोग खरीफ, रबी और गर्मी सभी मौसम में किया जा सकता है। श्री विधि से धान की सभी किस्मों की खेती की जा सकती है। इस विधि का उपयोग अधिकतर बिहार, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा आदि राज्यों में अधिक किया जाता है। इस विधि में खेत में पानी ज्यादा नहीं रखा जाता बल्कि उतना ही पानी भरा जाता है जिससे खेत में नमीं बनी रहे। इससे पौधों में कल्ले अच्छे फूटते हैं देखा गया है कि एक पौधे में 50 कल्ले तक हो जाते हैं। जिससे पैदावार ज्यादा होती है। इस विधि से धान की खेती में रोग और कीट-पतंगो का प्रभाव कम होता है। जिससे कीटनाशकों का खर्च बचता है और इस विधि से धान के खेत में मीथेन गैस का निर्माण नहीं होता है जिससे पर्यावरण भी शुद्ध रहता है।
कृषि वैज्ञानिक के मुताबिक आमतौर पर परंपरा के अनुसार 20 से 25 दिन में तैयार होने वाली धान की नर्सरी की सामान्य तरीके से खेतों में रोपाई की जाती है। जहां पानी की कमी होती है वहां किसान पानी के अभाव में खेती से वंचित ही रह जाते हैं, ऊपर से उन्हें बीज और खाद की मात्रा भी अधिक लगानी पड़ती है। इसके मद्देनजर कृषि वैज्ञानिक धान की खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को श्री विधि को अपनाने के लिए जागरूक कर रहे हैं। इस विधि को अपनाने से छोटे और मझोले किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं और उन्हें पानी की कमी से भी नहीं जूझना पड़ेगा।
आपको बता दें पूरी दुनिया में भारत दूसरा सबसे बड़ा धान उत्पादक देश है लेकिन प्रति हेक्टेयर के औसत उत्पादन में बहुत पीछे है। इसकी वजह यह है कि जमीन तो वही है, लेकिन जनसंख्या निरन्तर बढ़ रही है, उसको देखते हुए हमें नई तकनीक से खेती करनी ही पड़ेगी क्योंकि नई तकनीक से ही उत्पादन में बढ़ोतरी हो सकती है। ऐसे में उत्पादन को बढ़ाने के लिए किसानों को वैज्ञानिक तरीके से धान की खेती करनी होगी। धान की फसल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए किसान को जमीन तैयार करने से लेकर रोपाई और कटाई तक छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देना होगा।