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गैप पीरियड में हरी खाद लगाएं खेतों को उपजाऊ बनाएं

फसल में रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से न केवल हमारी सेहत खराब हो रही हैबल्कि इसके चलते मिट्टी की उपजाऊ क्षमता भी दिन पर दिन घट रही है। किसानों के फसलों के आय का ज्यादा हिस्सा पैसा रासायानिक उर्रवकों पर खर्च हो रहा है.इसलिए अब जरूरी हो गया है कि,किसान रासायनिक उर्वरकों के विकल्प की ओर जाएं. किसान वो तरीके अपनाएं जिससे मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बढ़े और ज्यादा लागत भी न लगे। मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए हरी खाद एक अच्छा विकल्प है। हरी खाद से मिट्टी की उपजाऊ क्षमता तो बढ़ती ही है. साथ ही साथ अगली आने वाली पीढ़ी के लिये इसको खेती की मिट्टी के उपजाऊ क्षमता को बरकरार रखा जा सकता है।हरी खाद के इस्तेमाल से किसान न केवल फसलों की अच्छी पैदावार को बढ़ा सकते हैं..बल्कि अपनी आय में बढ़ोत्तरी भी कर सकते हैं ।

दरअसल गेहूं की कटाई के बाद, लगभग मई-जून के महीने में, अमूमन खेत खाली रहते हैं। इस बीच इसमें कई तरह के नुक़सानदेह खर-पतवार अपना अड्डा जमा लेते हैं, जो खेतों से पोषक तत्व चुरा लेते हैं। साथ ही खेती में लगातार असंतुलित खाद-फर्टीलाइजर देने के कारण भी, खेतों का स्वास्थ्य काफी ख़राब हो जाता है। आगे आप जो भी फ़सल लगाएंगे, उसमें आपको मुश्किल होगी। लेकिन इन तमाम समस्याओं से निपटने का एक आसान हल है ग्रीन मेन्यूरिंग, यानी हरी खाद,.जिसके तहत खेतों में इस खाली टाइम में कुछ ऐसी मोटी पत्तीदार फ़सलें लगाई जाती हैं, जो जल्द पनप जाती हैं, खरपतवारों को बढ़ने नहीं देतीं, और खुद जल्द वृद्धि करती हैं। तब डेढ़-दो महीने की इन लहलहाती फ़सलों को, खेतों में जुताई कर मिला दिया जाता है। इससे खेतों को हरी खाद मिल जाती है। और उनका स्वास्थ्य सुधर जाता है। आसान भाषा में कहें तो हरी खाद के उपयोग से रासायनिक उर्वरकों से होने वाली लागत को कम किया जाता है। हरी खाद उस सहायक फसल को कहते हैं । जिसकी खेती मिट्टी में पोषक तत्वों को बढ़ाने और उसमें जैविक पदाथों को पूरा करने के लिए की जाती है। इससे उत्पादकता तो बढ़ती ही है,ये खेत में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ाकर उसकी भौतिक दशा में सुधार करती है।

कैसे लगाएं हरी खाद फसलें ?

आने वाले खरीफ सीजन के लिए किसान हरी खाद के लिए सनई, ढैंचा, लोबिया, मूंग और ग्वार इत्यादि हरी खाद की अच्छी फसलें हैं जहां अधिक वर्षा होती है। उन इलाकों में सनई की बोआई की जाती है .ढैंचा को कम बारिश वाले इलाकों में उगाया जा सकता है..ग्वार का उपयोग भी कम वर्षा वाले यानी रेतीली मिट्टी वाले और कम उपजाऊ इलाकों में किया जा सकता है।लोबिया को अच्छे जल निकास वाले.मूंग और उड़द को खरीफ या गर्मी के मौसम में उपयोग किया जाता है.ढैंचा की हरी खाद फसल के लिए25 किलो प्रति एकड़ बीज की जरूरत होती है और सनई के लिए 32 से 36 किलो प्रति एकड़ बीज जरूरत होती है।और मिश्रित फसल में बीज 12 से 16 किलो प्रति एकड़ की जरूरत होती है।

कृषि वैज्ञानिक के अनुसार हरी खाद वाली फसलों की बुवाई खेत में हल्की सिंचाई या हल्की बारिश के बाद बुवाई करें,हरी खाद फसलों की बुवाई का सही समय अप्रैल से जुलाई है बुवाई से पहले खेत को अच्छी तरह जोतकर भुरभुरा कर लें और बुवाई करने से पहले जमीन में अच्छी नमी होनी ज़रूरी है.फसल के लिए बीज बोने के समय पंक्ति से पंक्ति का फासला 45 सेंटीमीटर रखना चाहिए। बीज की गहराई 3-4 सेंटीमीटर होनी चाहिए, वहीं बीज को बोने से पहले उसे एक रात के लिए पानी में भिगोकर रखें। और हरी खाद के लिए फास्फोरस 16 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से डालें। इसमें नाइट्रोजन वाली खाद का प्रयोग नहीं किया जाता है। लेकिन अगर पहली बार फसल के विकास के लिए 4 से 6 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से नाइट्रोजन का प्रयोग कर सकते हैं।

कम लागत में मिले ज्यादा खाद

ढैंचा की फसल को लगाकर जुलाई के पहले हफ्ते तक जोत कर इसे खेत में मिलाकर धान की अच्छी पैदावार ली जा सकती है.इनकी पत्तियां वजनदार और घनी होती है. फसल तैयार होने में लगभग 40-50 दिनों का समय लगता है.फूल आने से पहले यानि फसल की लंबाई ऐसी तीन फिट की हो जाती है। तो खड़ी फसल को हैरो से बारीक काट कर मिट्टी में मिला देना चाहिए। इसके कटाई के समय खेत में पानी लगा देना चाहिए। पानी लगने से बहुत जल्दी सड़कर ये मिट्टी में मिल जाता है। मिट्टी की भौतिक संरचना यानी उपज क्षमता को बढ़ाता है। ये प्रक्रिया बहुत ज्यादा खर्चीली भी नहीं है. इसके बीज और जुताई की लागत लगाकर डेढ़ हजार प्रति एकड़ से ज्यादा का खर्चा नहीं आता है। लेकिन इससे सैकड़ों कुंतल हरी खाद मिलती है। उन्होंने ने बताया कि इन फसलों को हल या कल्टीवेटर से खेत में पलट कर पाटा से कर सकते है.अगर खेत में पांच-छह सेमी पानी भरा रहता है.तो पलटने और मिट्टी में दबाने में कम मेहनत लगती है.जुताई उसी दिशा में करनी चाहिए जिस तऱफ से पौधों को गिराया गया हो.इसके बाद खेत में आठ-दस दिन तक चार-छह सेमी पानी भरा होना चाहिए।जिससे पौधों के अपघटन में सुविधा होती है

हरी खाद 'पोषक तत्वों को करेगा भरपाई

कृषि वैज्ञानिक के अनुसार इस तरह ढैंचा से प्रति एकड़ से 34-42 किलो नाइट्रोजन प्रति एकड़ प्राप्त की जा सकती है.इसी तरह सनई के 35-52 किलो नाइट्रोजन प्रति एकड़, लोबिया से 30-35 किलो नाइट्रोजन प्रति एकड़, ग्वार से 27-35 किलो नाइट्रोजन प्रति एकड़, मूंग से 14-20 किलो नाइट्रोजन प्रति एकड़ प्राप्त किया जा सकता है.दलहनी फसलों वाली हरी खादे जड़ों में गांठे होती है.जो मिट्टी को बांटने का काम करती है.और इन गांठों में पौधे से वायुमंडल से अवशोषित नाइट्रोजन इकट्ठा होती है।.जो की आगामी फसल के लिए जमीन में फिक्स हो जाती है.खेत में हरी खाद पलटने के बाद जो भी फसल ली जाएगी.उसके पौधों का विकास अच्छा होगा..और उसकी गुणवत्ता अच्छी होगी, फसल में रोग संक्रमण भी कम रहेगा.

दरअसल गेहूं और धान फसल चक्र के चलते जमीन की उपजाऊ क्षमता में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है.किसी जमाने में बेहतर फसल चक्र के क्रम में साल में कम से कम एक दलहनी फसल हर खेत में ली जाती थी.वर्तमान में फसलें तो 3 से 4 तक लेने की कोशिश रहती है.लेकिन बदले में जमीन को देने के नाम पर केवल डीएपी यूरिया जैसे रासायनिक उर्वरक ही बचे हैं..अब जरूरत जमीन से लेने के साथ उसे कुछ वापस देने की भी हरी खाद देश की खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सघन कृषि को अपनाना आवश्यक हो गया है, जिसके फलस्वरूप फसलों का उत्पादन बहुत तेजी से बढ़ा