ब्लॉग विवरण

Blog

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की 158 वीं जयंती समारोह में 9 जुलाई को सम्मानित होंगे डॉ. राजाराम त्रिपाठी

हिंदी के प्रथम आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की 158वीं जयंती के अवसर पर राइटर्स एंड जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन, दिल्ली और आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति के संयुक्त प्रयास से 09 जुलाई 2022 को गांधी शांति प्रतिष्ठान, आईटीओ, नई दिल्ली में शाम 5:00 बजे से एक समारोह आयोजित किया जा रहा है। ये बड़ा संयोग है कि इसी साल आचार्य स्मृति अभियान का रजत जयंती वर्ष भी आरंभ हो रहा है। जिसकी पहली कड़ी यह समारोह है। इसके बाद देश के अन्य हिस्सों में साल भर अन्य कई आयोजन होंगे।

इस भव्य राष्ट्रीय समारोह में साहित्य और मीडिया जगत की देश की गणमान्य विभूतियां शामिल होंगी। समारोह में साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में देश की 7 चयनित महानुभावों को सम्मानित किया जा रहा है।

दोनों संस्थाओं के पदाधिकारियों की ओर से तय शीर्ष निर्णायक मंडल ने "मामा बालेश्वर दयाल पुरस्कार-2022" से छत्तीसगढ़ कोंडागांव के डॉ. राजाराम त्रिपाठी को सम्मानित करने का फैसला किया है। यह अवार्ड उनके द्वारा पिछले तीन दशकों में कृषि क्षेत्र में जनजातीय समुदायों के जीवन में उन्नयन के लिए किए गए सतत् अनूठे और अनुकरणीय कार्यों के लिए दिया जा रहा है। बस्तर के ही आदिवासी वन ग्राम ककनार में जन्में तथा पले-बढ़े राजाराम के मन में अपनी मातृ-भूमि बस्तर के लिए कुछ कर गुजरने की बचपन से ही इच्छा थी। अंततः मित्रों परिजनों के लाख मना करने के बावजूद प्रतिष्ठित बैंक के उच्चाधिकारी की नौकरी को छोड़कर पिछले तीन दशकों से वे बस्तर के आदिवासियों के बीच जैविक तथा वनौषधियो की खेती में लगातार नवाचार करते हुए खेती को लाभदायक उद्यम बनाने में लगे हुए हैं। डॉ. त्रिपाठी कृषि क्षेत्र में ज्वलंत विषयों को विभिन्न मंचों पर लगातार उठाने वाली देश की चुनिंदा प्रभावशाली आवाजों में से एक रहे हैं।

इन्होंने अपनी कॉलेज शिक्षा के दिनों में ही कुछ अभिन्न मित्रों के साथ मिलकर बेहद प्रखर तेवर का "बस्तर टुडे" साप्ताहिक समाचार पत्र भी प्रकाशित किया था, जो कि जल्द ही अर्थाभाव के कारण बंद हो गया। वर्तमान में डॉ. त्रिपाठी दिल्ली से प्रकाशित जनजातीय चेतना, कला, संस्कृति एवं समाचार की मासिक पत्रिका "ककसाड़" के संपादक हैं। वे ग्रामीण अर्थशास्त्र, कृषि, रोजगार आदि विषयों पर देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लगातार लिख रहे हैं। इनकी अधिकांश कविताएं बस्तर के सरोकारों पर केंद्रित हैं तथा बस्तर को समर्पित हैं। इसीलिए इन्हें "बस्तर का सुर सप्तम" कवि कहा जाता है। वे बस्तर तथा बस्तर की स्थानीय बोली हल्बी की प्रबल पक्षधर हैं। डॉ. त्रिपाठी को यह प्रतिष्ठित राष्ट्रीय सम्मान मिलने की घोषणा से बस्तर सहित पूरा छत्तीसगढ़ गौरवान्वित महसूस कर रहा है। डॉ. त्रिपाठी को मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के सभी सदस्यों, छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य परिषद अखिल भारतीय किसान महासंघ आईफा, संपदा समाज सेवी संस्थान, आदिवासी शोध तथा कल्याण संस्थान सहित देश-विदेश के कई सामाजिक संगठनों तथा गणमान्य विभूतियों के बधाई संदेश लगातार प्राप्त हो रहे हैं। डॉक्टर त्रिपाठी ने अपना यह अवार्ड बस्तर की माटी, अपने आदिवासी साथियों, गुरूजनों, समस्त परिजनों, मित्रों, शुभचिंतकों, स्थानीय प्रशासन के सभी अधिकारियों व कर्मचारियों, मीडिया के सभी साथियों तथा मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के सभी सदस्यों को समर्पित किया है और कहा कि इस अवार्ड को लेने वाले हाथ भले मेरे होंगे पर, यह अवार्ड दरअसल आप लोगों का ही है और आपको सादर समर्पित है।