गर्मी के मौसम में सबसे ज्यादा असर फसलों पर पड़ता है। ज्यादातर फसलों में बढ़ती गर्मी के साथ ही सिंचाई भी बढ़ानी पड़ती है। जिससे किसानों को खेती में ज्यादा लागत आती है। अगर आप गर्मियों में अनार की खेती करेंगे तो इसका बहुत फायदा मिलता है। दरअसल, अनार की फसल को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती। वहीं, अनार की खेती गर्म मौसम में अच्छे से होती है। भारत में अनार की खेती मुख्य रूप से महाराष्ट्र में की जाती है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, आंध्रप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, कर्नाटक, गुजरात में भी छोटे स्तर में इसके बगीचे देखने को मिलते हैं। अनार स्वादिष्ट होने के साथ-साथ गुणों से भरपूर होता है। अनार को सबसे ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक और पोषक तत्वों से भरपूर फल माना जाता है। इस फल में फाइबर, विटामिन सी भरपूर मात्रा में होता है। वैसे तो लगभग सभी फलों का रस लाभकारी है लेकिन अनार का रस खासतौर पर वजन घटाने में मदद करता है, आपको अनार अपने आहार में शामिल करना चाहिए।
अनार सब-ट्रॉपिकल जलवायु का पौधा है, यह अर्द्ध शुष्क जलवायु में अच्छी तरह उगाया जा सकता है। फलों के विकास एवं पकने के समय गर्म एवं शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। अनार के फल के विकास के लिए 38 डिग्री सेल्सियस तापमान चाहिए होता है।
अनार की खेती करने के लिए जल निकास वाली रेतीली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। फलों की गुणवत्ता और रंग भारी मिट्टी की अपेक्षा हल्की मिट्टी में अच्छा होता है।
सुपर भगवा: इस किस्म के फल भगवा रंग के चिकने चमकदार और बड़े आकार के होते हैं। इसके बीज मुलायम होते हैं। अच्छे से प्रबंधन करने पर हर पौधे से करीब 40 - 50 किलोग्राम उपज प्राप्त की जा सकती है। यह किस्म राजस्थान और महाराष्ट्र में बहुत उपयुक्त मानी जाती है।
ज्योति: इस किस्म के फल मध्यम से बड़े आकार के चिकनी सतह और पीलापन लिए हुए लाल रंग के होते हैं। इसके बीच एरिल गुलाबी रंग के होते हैं। खाने में बहुत मीठे लगते हैं।
मृदुला: इस किस्म के फल मध्यम आकार के चिकनी सतह वाले गहरे लाल रंग के होते हैं। गहरे लाल रंग के बीज मुलायम, रसदार और मीठे होते हैं। इस किस्म के फलों का औसत वजन 250-300 ग्राम होता है।
अरक्ता: यह अधिक उपज देने वाली किस्म है। इसके फल बड़े आकार के, मीठे, मुलायम बीजों वाले होते हैं। एरिल लाल रंग के और छिल्का आकर्षक लाल रंग का होता है। सही से खेती करने पर हर पौधे से 25 से 30 किलोग्राम उपज प्राप्त की जा सकती है।
कंधारी: इसका फल बड़ा और अधिक रसीला होता है, लेकिन बीज थोड़े से सख्त होते हैं।
अनार के पौधों को लगाने का उपयुक्त समय अगस्त या फरवरी से मार्च तक होता है।
कलम द्वारा: एक साल पुरानी शाखाओं से 20 से 30 सेंटीमीटर लंबी कलमें काटकर पौधशाला में लगा दी जाती हैं। इन्डोल ब्यूटारिक अम्ल (आई.बी.ए.) 3000 पी.पी.एम. से कलमों को उपचारित करने से जड़ें शीघ्र और अधिक संख्या में निकलती हैं।
गूटी द्वारा: अनार का व्यावसायिक प्रर्वधन गूटीद्वारा किया जाता है। इस विधि में जुलाई-अगस्त में एक साल पुरानी पेन्सिल समान मोटाई वाली स्वस्थ, ओजस्वी, परिपक्व, 45 से 60 सेंटीमीटर लंबाई की शाखा का चयन करना होता है। चुनी गई शाखा से कलिका के नीचे 3 सेंटीमीटर चौड़ी गोलाई में छाल पूर्णरूप से अलग कर दें। छाल निकाली गई शाखा के ऊपरी भाग में आई. बी.ए.10,000 पी.पी.एम. का लेप लगाकर नमी युक्त स्फेगनम मास घास चारों ओर लगाकर पॉलीथीन शीट से कवर करके सुतली से बांध दें। जब पालीथीन से जड़ें दिखाई देने लगें उस समय शाखा को स्केटियर से काटकर क्यारी या गमलों में लगा दें।
पौधा लगाने से एक महीने पहले 60 X 60 X 60 सेंटीमीटर (लंबाई, चौड़ाई और गहराई) का गड्ढा खोद कर 15 दिनों के लिए खुला छोड़ दें। उसके बाद गड्ढे की ऊपरी मिट्टी में 20 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद 1 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट, 50 ग्राम क्लोरो पायरीफास चूर्ण मिट्टी में मिलाकर गड्डों को सतह से 15 सेंटीमीटर ऊंचाई तक भर दें। गड्ढे भरने के बाद सिंचाई करें ताकि मिट्टी अच्छी तरह से जम जाए उसके बाद पौधों का रोपण करें और रोपण के तुरन्त बाद सिंचाई करें।
अनार की फसल एक सूखा सहनशील फसल है। मृग बहार की फसल लेने के लिए सिंचाई मई के महीने से शुरु करके मॉनसून आने तक नियमित रूप से करनी चाहिए। बरसात के मौसम के बाद फलों के अच्छे विकास के लिए नियमित सिंचाई 10 से 12 दिन के अन्तराल पर करनी चाहिए। बूँद - बूँद सिंचाई अनार के लिए उपयोगी साबित हुई है, इसमें 43 प्रतिशत पानी की बचत और 30-35 प्रतिशत उपज में बढ़त देखी गई है। अनार के पौधों में बेहद कम काट-छांट की जरूरत है और इसकी टहनियों को इतना ही काटें कि इसकी झाडियां न बनें। इसके अलावा तने के आस-पास पैदा होने वाली सकर्स निकाल देनी चाहिए क्योंकि यह मुख्य पौधे के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं और उसकी क्षमता को कम कर देते हैं।
अनार में एक साल में तीन बार फूल आते हैं, जून-जुलाई (मृग बहार), सितम्बर-अक्टूबर (हस्त बहार) और जनवरी-फरवरी (अम्बे बहार) में फूल आते हैं। व्यवसायिक रूप से केवल एक बार की फसल ली जाती है और इसका निर्धारण पानी की उपलब्धता और बाजार की मांग के अनुसार किया जाता है। जिन क्षेत्रों मे सिंचाई की सुविधा नहीं होती है, वहां मृग बहार से फल लिए जाते हैं, तथा जिन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा होती है वहां फल अम्बे बहार से लिए जाते हैं। बहार नियंत्रण के लिए जिस बहार से फल लेने हों, उसके फूल आने से दो माह पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए।
पौध रोपण के 3 साल के बाद अनार के पेड़ में फल आने शुरू हो जाते हैं, लेकिन व्यावसायिक रूप से उत्पादन रोपण के 5 साल बाद ही फल लेना चाहिए। अच्छी तरह से विकसित पौधा 25 से 30 साल तक 60 से 80 फल हर साल तक देता है। अनार के बाग लगाने पर लगभग 480 टन उपज हो सकती है, जिसमें एक हैक्टेयर से आठ-दस लाख रुपये सालाना आय हो सकती है। नई विधि को काम में लेने से खाद व उर्वरक की लागत में महज 15 से 20 फीसदी की बढ़ोतरी होती है, जबकि पैदावार 50 फीसदी बढ़ने के अलावा दूसरे नुकसानों से भी बचाव होता है।