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फसलों का सुरक्षा कवच है प्लास्टिक मल्चिंग

देश में मौजूदा समय में जिस अनुपात में जनसंख्या दर में बढ़ोत्तरी हो रही है। उसी अनुपात में खाद्यान्न की पैदावार भी जरूरी है। इसलिए खेतीबाड़ी में रोजगार के साथ व्यापार की भरपूर संभावनाएं हैं। इसी के चलते ये क्षेत्र मौजूदा समय में इनोवेटिव आइडिया लेकर आगे बढ़ रहा है। कम खर्च और कम समय में अधिक उत्पादन लेने के लिए किसान कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के साथ ही साथ खेती में अत्याधुनिक तकनीक अपना रहे हैं। और इन तकनीकों में एक तकनीक प्लास्टिक मल्चिंग भी है, जिसे अपनाकर किसान खेत में बंपर पैदावार के साथ चांदी काट रहे हैं। सबसे बड़ी बात इस तकनीक में पानी और समय की बचत होती है।

आपको बता दें भारत विविध जलवायु वाला देश है। देश में कई प्राकृतिक आपदाओं में जैसे- बाढ़, सूखा, पाला, ओला इत्यादि से हर साल खाद्यान्न सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है। किसानों को अब ऐसी तकनीक का इस्तेमाल करना होगा। जिससे कि अन्न की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। इसका विकल्प प्लास्टिक मल्चिंग तकनीक है। इस बेहतरीन तकनीक को अपनाकर किसान सब्जी उत्पादन और बागवानी में अच्छा परिणाम पा सकते हैं। और इस तकनीक से 10 से 80 फीसदी तक अधिक पैदावार बढ़ा सकते हैं।

दरअसल किसान अपने खेतों में फसलों की बुवाई काफी अरमानों के साथ करता है। वह चाहता है कि खेत में बोई गई फसल अधिक से अधिक उत्पादन दे, जिससे कि मार्केट में इसका सही मूल्य पाया जा सके। लेकिन फसल बुवाई के दौरान किसानों के लिए खरपतवार सबसे बड़ा सिर दर्द बना रहता है। और फसल को बचाने के लिए किसान निराई गुड़ाई कराते हैं। इस पर उन्हे काफी लागत लगानी पड़ती है। वहीं कई किसानों के सामने ये समस्या रहती है कि उनके खेत में फसलों की उत्पादकता धीरे धीरे कम हो रही है, ऐसे में किसानों के लिए प्लास्टिक मल्चिंग का उपयोग वरदान साबित हो सकता है।

प्लास्टिक मल्चिंग तकनीक असल में है क्या

आपको बता दें जब खेत में लगाए गए पौधों की जमीन को चारों तरफ से प्लास्टिक फिल्म के माध्यम से अच्छी तरह ढक दिया जाता है, तो इस प्रक्रिया को प्लास्टिक मल्चिंग तकनीक कहा जाता है। और इस तरह पौधों की सुरक्षा होती है औऱ फसल उत्पादन भी बढ़ जाता है। आपको बता दें खेतीबाड़ी में ये बहुत ही पुरानी तकनीक है। दरअसल कई सालों से खेतों में मल्चिंग तकनीक का प्रयोग किया जाता रहा रहा है। बस फर्क इतना था कि पहले खेतों में फसल अवशेषों से ही मल्चिंग की जाती थी। जबकि मौजूदा समय में अब कई रंग की पॉलीथीन शीट्स का उपयोग किया जाता है। बता दें कि ये प्लास्टिक फिल्म बाजार में कई प्रकार और कई रंग में उपलब्ध हैं। प्लास्टिक मल्चिंग खेती करने का वो आधुनिक तरीका है जिसके जरिए खेत में पानी को अधिक समय तक रोका जा सकता है इससे खेत की नमी बनी रहती है। जिसके चलते खेत में सिंचाई की जरूरत कम होती है। और फसल की उपज और क्वालिटी भी बेहतर हो जाती है। और तो और इस तकनीक को अपनाने से खरपतवार की समस्या से काफी हद तक निजात मिल जाती है।

प्लास्टिक मल्चिंग चुनाव किस काम के लिए कैसे करते हैं

आपको बता दें बाजार में प्लास्टिक फिल्म लाल, सफेद, काले, सिल्वर युक्त पारदर्शी, प्रतिबिम्बित, नीले रंग में उपलब्ध हैं। काले रंग की फिल्म खेत में नमी संरक्षण, खरपतवार से बचाने और मिट्टी के तापक्रम को नियंत्रित करने के लिए लगाई जाती है। वहीं बागवानी में भी अधिकतर काले रंग की प्लास्टिक फिल्म उपयोग में लाई जाती है। जबकि सफेद या सिल्वर युक्त प्रतिबिम्बित फिल्म मिट्टी में नमी संरक्षण, खरपतवार नियंत्रण के साथ-साथ भूमि का तापमान कम करती है। और पारदर्शी फिल्म अधिकतर मिट्टी के सोलेराइजेशन में उपयोग की जाती है। इसका इस्तेमाल सर्दियों के मौसम में किया जा सकता है।

प्लास्टिक मल्चिंग का चुनाव किस फसल के लिए कैसे करते हैं

बता दें प्लास्टिक मल्चिंग के उपयोग के लिए फिल्म का चुनाव करते समय उसकी चौड़ाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए। जिससे ये खेती में भरपूर सहायक हो सके। सामान्यत 90 सेंटीमीटर से लेकर 180 सेंटीमीटर तक की चौड़ाई वाली फिल्म ही उपयोग में लाई जाती है। और फिल्म की मोटाई प्लास्टिक मल्चिंग में फिल्म की मोटाई फसल के प्रकार और आयु के मुताबिक होनी चाहिए और इस तकनीक से खेत में पानी की नमी और वाष्पीकरण को रोका जाता है। ये तकनीक खेत में मिट्टी के कटाव को भी रोकती है। और खेत को खरपतवार से बचाया जाता है। यह तकनीक बागवानी में होने वाले खरपतवार नियंत्रण और पौधों को लम्बे समय तक सुरक्षित रखने में बहुत सहायक होती है। क्योंकि इससे मिट्टी में नमी बनी रहती है जिससे कि पौधों की जड़ों का विकास अच्छे से हो पाता है।

खेत में प्लास्टिक मल्चिंग करते समय किस बात का ध्यान रखना चाहिए

कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक इसका इस्तेमाल जिस खेत में करना होता है उस खेत में सबसे पहले खरपतवार और घास को अच्छी तरह से उखाड़ उसकी सफाई कर लेना चाहिए। खेत की अच्छे से जुताई करा लेनी चाहिए और मिट्टी के परीक्षण के बाद उस में उचित मात्रा में खाद मिला देनी चाहिए। प्लास्टिक फिल्म खेत में हमेशा सुबह या शाम के समय लगानी चाहिए और फिल्म में ज्यादा तनाव नहीं रखना चाहिए। फिल्म में जो भी सिलवट हो उसे निकालने के बाद ही खेत की मिट्टी पर चढ़ाना चाहिए और फिल्म लगाते समय उसमें छेद सावधानी से करना चाहिए जिससे कि फिल्म फटे न और इसका इस्तेमाल दूसरी बार भी किया जा सके। फसल को पानी देने के लिए सिंचाई नली का ध्यान रखना चाहिए। छेद एक जैसे करें और मिट्टी चढ़ाने में दोनों साइड एक जैसी ही रखनी चाहिए। फिल्म की घड़ी हमेशा गोलाई में करनी चाहिए और फिल्म शीट को किनारों से कम से कम 4-6 इंच जमीन के नीचे गाड़ देना चाहिए ताकि फिल्म के अन्दर से पानी उत्सर्जन न हो पाये और हवा से शीट न फटे।

बता दें प्लास्टिक मल्चिंग के बाद खेत और बागीचों में सिंचाई और खाद डालने का सर्वोत्तम साधन ड्रिप सिंचाई प्रणाली ही है और जहां पर ड्रिप सिंचाई प्रणाली न हो वहां पर एक तरफ से फिल्म को खुला छोड़ कर नाली के सहारे सिंचाई करना चाहिए। इसके प्रबंधन से उत्पादन में 10 से 80 फीसदी से अधिक वृद्धि होती है। प्लास्टिक फिल्म का उपयोग कई प्रकार की फसलों में किया जा सकता है। जिसमें फलदार, सब्जियां, कंद वर्गीय और कद्दू वर्गीय सब्जियां, व्यवसायिक फसलें, चारा फसलें, पुष्प, बागवानी फसलें, औषधीय और सुगंधीय पौधे आदि प्रमुख हैं।

इसको लगाने में लागत कितनी आती है

खेत में लगाई जाने वाली फसल के प्रकार और बुवाई विधि के मुताबिक प्लास्टिक मल्चिंग की लागत कम या अधिक हो सकती है। आमतौर पर सब्जी वाली फसलों में 80 फीसदी वाले क्षेत्र में प्लास्टिक फिल्म बिछाने की अनुमानित लागत 20-22 हजार प्रति हेक्टेयर यानी 2 से ढाई रुपये प्रति मीटर आ सकती है। ठीक इसी प्रकार फल वाली फसलों में 40 फीसदी क्षेत्र वाले के आवरण के आधार पर इसकी अनुमानित लागत 14 से 15 हजार यानि 1.5 प्रति मीटर तक आ सकती है। और इससे आप फसल की निराई-गुड़ाई का ही 20 से 22 हजार रुपए प्रति एकड़ बचा सकते हैं। और इस तकनीक से 60 से 65 फीसदी तक पानी की बचत की जा सकती है। और फसल में लगने वाले कीट-रोग और खरपतवारों पर रोक लगाई जा सकती है।

वहीं मल्चिंग तकनीक को बढ़ावा देने के लिए सरकार की ओर से अनुदान मिलता है। जो कि 50 फीसदी से लेकर 16000 रूपये प्रति हेक्टेयर तक दिया जाता है। ये अनुदान पाने के लिए किसानों को जिले के विकास खंड में वरिष्ठ उद्यान विकास अधिकारी के पास आवेदन जमा करवाना पड़ता है। और इसके बाद आपको लागत पर अनुदान मिलता है

आपको बता दें खेतीबाड़ी में जहरीले रासायन, खरपतवार नाशी रासायन, कीट रोग नाशी रासायन का प्रयोग न केवल हमारी बल्कि पशु-पक्षियों की सेहत भी खराब कर रहे हैं। और तो और जहरीले रासायन के प्रयोग से खेत से जीवांशों और केचुओं की संख्या में दिन पर दिन कमी होती जा रही है। और पर्यावरण दूषित हो रहा है। इसके लिए प्लास्टिक मल्चिंग का उपयोग वरदान साबित हो रहा है।