लोबिया एक ऐसा पौधा है जिसकी फलियां पतली और लंबी होती हैं। इसकी सब्ज़ी बनाई जाती है। इसे दलहनी सब्ज़ी कह सकते हैं। दरअसल लोबिया एक तरह का बोड़ा है। जिसे कई अलग-अलग जगहों पर फलियां, बोरो, चौला, चौरा या फिर बरबिट्टी आदि नामों से जाना जाता है। इसमें पोषण के लिए प्रचुर प्रोटीन के साथ अन्य आवश्यक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसकी खेती बहुत सरल है।
लोबिया बारिश और गर्मी में उगाई जाने वाली फसल है। गर्मी के मौसम में इसकी बुआई फरवरी-मार्च में और वर्षा के मौसम में जून अंत से जुलाई तक की जाती है। उत्तर भारत का मौसम इसकी खेती के लिए बेहद माकूल है। क्योंकि इसकी खेती के लिए 12 से 15 डिग्री सेल्सियस तापक्रम चाहिए, जबकि फसल की अच्छी बढ़वार के लिए 27 से 35 डिग्री सेल्सियस तापक्रम बेहतर होता है। इसके अलावा लोबिया में मक्का की अपेक्षा सूखा और गर्मी सहन करने की क्षमता ज्यादा होती है। लगभग सभी तरह की भूमि में लोबिया की खेती की जा सकती है। मिट्टी का पीएच मान साढ़े 5 से साढ़े 6 तक हो तो बेहतर है। क्षारीय भूमि इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है।
यूं तो लोबिया की अहम किस्मों में पूसा कोमल, अर्का गरिमा, पूसा बरसाती, पूसा फाल्गुनी, अम्बा और स्वर्ण जैसी अहम किस्में मौजूद हैं, लेकिन भारतीय सब्ज़ी अनुसंधान संस्थान वाराणसी की तरफ से विकसित किस्में, काशी कंचन, काशी उन्नत और काशी निधि जैसी किस्में खास हैं।
विशेषज्ञ बताते हैं कि लोबिया की बुआई बहुत कुछ भिंडी की तरह होती है। लेकिन इसमें बीज की मात्रा थोड़ी ज्यादा रखनी चाहिए। खेत में अच्छी नमी हो तो बेहतर है, नहीं तो बीज को रात भर भिगो कर सुबह बुआई करें। मेड़ बना कर लोबिया की बुआई करेंगे तो खेती करने में आसानी होगी। फसल के मैनेजमेंट में किसी तरह की दिक्कत नहीं होगी। इसलिए कतार से कतार और पौध से पौध की दूरी जरूर मेंटेन करें। साथ ही हरा तेला या चूसक कीटों के प्रकोप से बचने के लिए, बीजोपचार कर लें, तो बेहतर है।
लोबिया लेग्यूमिनस कुल का पौधा है इसलिए इसकी जड़ की गाठें खुद मिट्टी और वायुमंडल से नाइट्रोजन सोख लेती हैं, इसलिए इसमें ज्यादा नाइट्रोजन की जरूरत नहीं होती, लेकिन फिर भी 30-40 किलो नाइट्रोजन, और 40 किलो पोटाश और फॉस्फोरस देना चाहिए। इसमें नाइट्रोजन की आधी मात्रा खेत की तैयारी के वक्त ही खेत में मिला दें। बाकी बचे नाइट्रोजन की मात्रा गुड़ाई करने के बाद दें।
लोबिया की बुआई के बाद खेत में हल्की सिंचाई करें। लेकिन ये ध्यान जरूर रखें कि मेड़ आधी से ज्यादा न भीगे। पौधों में 3-4 पत्तियां निकलने पर गुड़ाई जरूर करें। 5-6 दिन पर हल्की सिंचाई करते रहें।
लोबिया की खेती आसान इसलिए कही गई है, क्योंकि इसमें कीट-रोगों की आशंका बहुत कम रहती है। लेकिन अच्छी उपज के लिए, इनकी रोकथाम, वक्त रहते जरूरी है। इसलिए बुआई के 35-40 दिन बाद दवाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं।
दरअसल लोबिया एक ऐसा पौधा है, जिसकी फलियां तो काम की हैं हीं, इसके पौधे आपके खेत की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में सक्षम हैं। कुछ तुड़ाई के बाद, इनके पौधों को खेत में जोत देने पर, ये हरी खाद का भी काम करते हैं।
इस तरह, आप भारतीय सब्ज़ी अनुसंधान संस्थान के विशेषज्ञ की तरफ से बताए गए सुझावों को अपनाकर लोबिया की खेती करेंगे तो निश्चित ही बेहद लाभ में रहेंगे।